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    भारत के फार्मा सेक्टर को बड़ा झटका दे सकता है 'ट्रंप टैरिफ', अमेरिका में भी बढ़ेंगी मुश्किलें; रिपोर्ट में खुलासा

    Updated: Sat, 09 Aug 2025 08:21 AM (IST)

    अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर 50% टैरिफ लगाने से भारतीय दवा कंपनियों की आय में 5-10% की गिरावट आ सकती है क्योंकि भारत के कुल दवा निर्यात का लगभग 40% अमेरिकी बाजार को जाता है। इससे अमेरिका में भी दवाइयों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। वित्त वर्ष 2025 में भारत के करीब 40 फीसदी दवा निर्यात अमेरिका को किया गया।

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    भारत के फार्मा सेक्टर्स के लिए बोझ बनेगा ट्रंप का टैरिफ। (फाइल फोटो)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भले ही भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने का एलान किया हो। हालांकि, इसका गहरा असर केवल भारत ही नहीं बल्कि अमेरिका पर भी देखने को मिलेगा।

    दरअसल, एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अगर वास्तव में 50 प्रतिशत का टैरिफ भारत से आयात सामानों पर पड़ता है, तो इसका सबसे अधिक प्रभाव भारतीय दवा कंपनियों की आय पर भी पड़ेगा। इतना ही नहीं अमेरिका में भी दवाईयों को लेकर मुश्किले देखनी पड़ सकती हैं। आइए आपको बताते हैं रिपोर्ट क्या कहती है?

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    SBI की रिपोर्ट में किया गया बड़ा दावा

    हाल के दिनों में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट सामने आई। इस रिपोर्ट में दावा किया गया कि अमेरिका द्वारा टैरिफ लगाए जाने के कारण दवा व्यापार पर काफी गहरा असर होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत के कुल दवा निर्यात का लगभग 40 प्रतिशत अमेरिकी बाजार को जाता है।

    इसके अलावा रिपोर्ट में बताया गया है कि अगर अमेरिकी राष्ट्रपति भारतीय दवा निर्यात पर भी 50 प्रतिशत टैरिफ लगाते हैं, तो अगले वित्त वर्ष में दवा कंपनियों की आय में 5 से 10 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है। बता दें कि भारत की कई ऐसी बड़ी कंपनियां हैं, जो अपने कुल राजस्व का 40 से 50 प्रतिशत अमेरिकी बाजार से प्राप्त करती हैं।

    क्या कहते हैं आंकड़े?

    रिपोर्ट्स के अनुसार, वित्त वर्ष 2025 में भारत के करीब 40 फीसदी दवा निर्यात अमेरिका को किया गया। वहीं, वित्त वर्ष 2024 में अमेरिका के कुल दवा आयात में भारत की हिस्सेदारी 6 प्रतिशत रही।

    माना जा रहा है कि ट्रंप द्वारा भारत पर थोपा गया 50 प्रतिशत का संभावित टैरिफ दुनिया के सबसे बड़े दवा बाजार में भारतीय उत्पादों की प्रतिस्पर्धात्मकता को भी कम करेगा और लाभ मार्जिन पर दबाव बढ़ाएगा। ऐसा इसलिए क्योंकि कंपनियां बढ़ी हुई लागत का बोझ उपभोक्ताओं पर नहीं डाल पाएंगी। 

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