अस्थमा: सावधानी में ही बचाव
विश्व के लगभग 30 करोड़ लोग अस्थमा [दमा] की समस्या से ग्रसित है। इसके बावजूद इस पर नियंत्रण पाने मे ज्यादातर देश विफल है। अस्थमा [दमा] की बीमारी व्यक्तिगत, पारिवारिक तथा सामुदायिक तीनो स्तरो पर लोगो को प्रभावित करती है।
विश्व के लगभग 30 करोड़ लोग अस्थमा [दमा] की समस्या से ग्रसित हैं। इसके बावजूद इस पर नियंत्रण पाने में ज्यादातर देश विफल हैं। अस्थमा [दमा] की बीमारी व्यक्तिगत, पारिवारिक तथा सामुदायिक तीनों स्तरों पर लोगों को प्रभावित करती है।
अस्थमा या दमा को यदि काबू में रखा जाए और चंद बातों पर विशेष ध्यान दिया जाए, तो नि:संदेह इस पर नियंत्रण संभव है:-
सांस फूलना
यूं तो सांस फूलने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे:-
- हृदय रोग
- फेफड़ों का रोग [जैसे न्यूमोनिया]
- एनीमिया [खून की कमी]
- हिस्टीरिया, नर्वसनेस आदि मानसिक रोग
लेकिन सबसे प्रमुख कारण है, अस्थमा या दमा।
अस्थमा क्या होता है?
यह श्वास नलियों का ऐसा रोग है जिसमे श्वास नालिया सिकुड़ जाती हैं और उनमें सूजन आ जाती है। इससे सांस लेने में रुकावट होने लगती है। अक्सर इसके अटैक आते हैं।
अस्थमा क्यों होता है?
आमतौर अस्थमा जन्मजात होता है, यानि अस्थमा एक अनुवाशिक रोग है। हालांकि, अस्थमा कब शुरू होगा, यह बताना मुश्किल होता है। अक्सर यह बचपन में ही शुरू हो जाता है। यदि घर में माता-पिता या किसी अन्य संबंधी को अस्थमा है तो अगली पीढ़ी में च्च्चों को होने की संभावना रहती है।
ट्रिगर एजेंट्स
अस्थमा हमेशा नहीं होता। आरंभ में अक्सर अस्थमा के एक या दो अटैक पड़ते हैं, लेकिन उचित इलाज न किए जाने पर अटैक की संख्या बढ़ती जाती है। अक्सर अटैक आने के लिए कुछ तत्व जिम्मेदार हैं जैसे वाइरल इन्फेक्शन, ज्यादा ठंडे पदार्थो का सेवन, अत्याधिक व्यायाम, पोलेन, धूल, धुआं, फेब्रिक आदि वायु में महीन कण। इनको ट्रिगर एजेंट्स कहते हैं। इसीलिए अस्थमा से बचने के लिए इनसे बचाव रखने की सलाह दी जाती है।
लक्षण:
अस्थमा का अटैक आते ही सांस लेने में कठिनाई होने लगती है। सांस फूलने लगती है। बेचैनी, घबराहट, मुंह का सूखना और लगता है जैसे दम निकल जाएगा। यदि समय पर चिकित्सा उपलब्ध न हो तो यह घातक भी हो सकता है और इसमें मरीज की मृत्यु भी हो सकती है।
उपचार
अस्थमा के उपचार में ऐसी दवाएं इस्तेमाल की जाती हैं जिनसे स्वास नालिया खुल सकें और उनमे सूजन कम हो सके।
ब्रोंकोडाईलेटर्स -ये दवाएं सांस की नालियों को फैलाकर खोल देती हैं जिसे रुकावट कम हो जाती हैं। इन्हें गोली, शरबत, इंजेक्शन, इन्हेलर और नेबुलाइजर के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है।
-गोली और शरबत आदि से ओपीडी में उपचार किया जाता है और इन्हें हलके अटैक में प्रयोग किया जाता है।
-इमरजेंसी में इंजेक्शन और नेबुलाइजर का प्रयोग किया जाता है। आजकल इन्हेलर्स का प्रयोग बहुत बढ़ गया है।
इनहेलर्स: इसके लिए दो तरह के इनहेलर्स इस्तेमाल किए जाते हैं।
एक वो जो शवास नालियों को खोलते हैं जैसे- सालबूटामोल इनहेलर और दूसरे वो जो सूजन कम करते हैं जैसे स्टेरॉयड इनहेलर।
इनहेलर्स का सबसे ज्यादा फायदा यह है कि दवा सीधे सांस की नालियों में पहुंच जाती है और रक्त में बहुत कम जाती है। इसलिए साइड इफेक्ट्स का खतरा न के बराबर होता है।
रोटाहेलर्स:
इसमें दवा कैप्सूल फॉर्म में होती है। उसे एक मशीन में लगाकर धीर-धीरे सूंघा जाता है।
नेबुलाइजर:
इसमें दवा एक मशीन द्वारा जो बिजली या बैटरी से चलती है, आक्सीजन में मिला कर दी जाती है। इसे मुंह पर मास्क लगाकर दिया जाता है जिससे दवा सूक्ष्म मात्रा में सीधे श्वास नालियों में लगातार मिलती रहती है। इससे तुरंत आराम आने की संभावना काफी ज्यादा रहती है। यह इमरजेंसी में राम बाण का काम करती है।
अन्य दवाएं-
अस्थमा के गंभीर अटैक में मरीज को अस्पताल में भर्ती करना अनिवार्य होता है। उसे ऑक्सीजन, स्टेरॉयड, नेबुलाइजर और आईवी ड्रिप की भी जरुरत पड़ सकती है। कभी कभी एंटीबायोटिक्स भी देनी पड़ती हैं।
रोकथाम:
दमा एक ऐसा रोग है जिसे पूर्णतय: रोकना संभव नहीं होता। एक दो अटैक प्रतिवर्ष होने की संभावना बनी रहती है। फिर भी खानपान और दिनचर्या में बदलाव से इसे काम किया जा सकता है। जिन वस्तुओं या खान पान की चीजों से एलर्जी हो, उनसे परहेज रखना चाहिए। धुएं, धूल मिट्टी, धूम्रपान से बचना चाहिए। नित्य प्रति इनहेलर लेने से अटैक पड़ने से बचा जा सकता है।
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