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    जानवरों का महासंग्राम रोकने अफ्रीका गए थे छत्तीसगढ़ के ये महाराज, पढ़िए ये दिलचस्प कहानी

    By Arti YadavEdited By:
    Updated: Tue, 08 Jan 2019 02:52 PM (IST)

    महाराज रघुनाथ शरण सिंह देव की एलिफेंट कैचर के रूप में पूरी दुनिया में ख्याती फैली थी। उनके बेटे रामानुज देव जानवरों का महासंग्राम रोकने के लिए अफ्रीका ...और पढ़ें

    जानवरों का महासंग्राम रोकने अफ्रीका गए थे छत्तीसगढ़ के ये महाराज, पढ़िए ये दिलचस्प कहानी

    रायपुर, हिमांशु शर्मा। आज छत्तीसगढ़ में हाथी दलों का हमला जनता के लिए बड़ी समस्या बना हुआ है। राज्य के कई जिले हाथियों की हिंसा से प्रभावित हैं। आए दिन लोगों की मौतें हो रही हैं और उनके खेत-खलिहान उजड़ रहे हैं। यह समस्या आज की नहीं है। प्रदेश के उत्तरी सरगुजा, जशपुर, कोरबा सहित महासमुंद और धमतरी जिलों में पिछली कई शाताब्दियों से हाथियों और मानव के बीच द्वंद्व जारी है। एक समय था जब छत्तीसगढ़ के एक शूरवीर राजा ने जनता को हाथियों के हमले से पूरी तरह मुक्ती दिला दी थी। एलिफेंट कैचर के रूप में पूरी दुनिया में उनकी ख्याती फैली थी और वे जानवरों का महासंग्राम रोकने के लिए अफ्रीका तक गए थे। 

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    करीब 3 सौ साल पहले की बात है, सरगुजा रियासत सहित मध्यभारत के कई क्षेत्रों में हाथियों का भीषण आतंक था। जंगली हाथी गांवों में घुसते थे और वहां जनजीवन को पूरी तरह तहस-नहस कर देते थे। इस समय सरगुजा रियासत के महाराज रघुनाथ शरण सिंह देव ही ऐसे व्यक्ति थे जो जनता को इस आतंक से मुक्ती दिला सकते थे। उन्हें उस जमाने में देश का सबसे सिद्धहस्त एलिफेंट कैचर माना जाता था। सरगुजा महाराज ने हाथियों के आतंक से जनता को मुक्ती दिलाने की ठानी और स्वयं एक हाथी पर सवार होकर हाथियों को खदेड़ने के लिए निकले। कहा जाता है कि महाराजा के व्यक्तित्व में बड़ा ही अनोखा जादू था। उनके सामने आते ही हाथी खुद-ब-खुद काबू में आ जाते थे।

    गैंडे और हाथियों के लिए बनाई गई थी विशेष गन

    उनके बेटे महाराजा रामानुज शहर सिंहदेव भी अपने जमाने के सिद्ध हस्त एलिफेंट कैचर थे। महाराज रघुनाथ शरण के दौर में पूरा मध्यभारत हाथियों के आतंक से मुक्त हो गया था। उनके पुत्र महाराज रामानुज शरण सिंह देव को ब्रिटिश सरकार ने अफ्रीका में एक दुर्दांत गैंडे का शिकार करने और हाथियों को नियंत्रित करने के लिए भेजा था। सरगुजा रियासत के इतिहासकार पं. गोविंद शर्मा बताते हैं कि उस वक्त सरकार ने उनके कहने पर एक डबल बैरल वाली विशेष गन उनके लिए तैयार करवाई थी। यह अपने तरह की दुनिया की इकलौती गन थी। बाद में इस गन की कॉपी न हो सके, इसलिए उसे नष्ट कर दिया गया था।

    महाराजा रामानुज शरण सिंह देव ने दिलाई थी जानवरों के आतंक से मुक्ती 

    उस वक्त केनिया, तंजानिया और युगांडा की सीमा पर एक दुर्दांत गेंडे का आतंक था। यह गैंडा घायल था और इधर से उधर बेलगाम दौड़ता था। इस गैंडे ने वहां कई हाथियों को भी घायल कर दिया था। इसके चलते यहां इन दो विशालकाय जीवों के बीच एक महासंग्राम छिड़ गया था, जिसके बीच वहां की जनता पिस रही थी। अपनी विशेष डबल बैरल गन के साथ वहां पहुंचे महाराजा रामानुज शरण सिंहदेव ने इस महासंग्राम को सफलता पूर्वक खत्म करते हुए वहां की जनता को दुर्दांत जानवरों के आतंक से मुक्ती दिलाई थी।

    महाराजा रघुनाथ शहर सिंहदेव राज्य सरकार के वर्तमान कृषि एवं ग्रामीण विकास मंत्री टीएस सिंहदेव के दादा के दादा और महाराजा रामानुज शरण सिंहदेव, टीएस सिंहदेव के दादा के पिता थे। वर्तमान में टीएस सिंहदेव भी राज्य में हाथियों के हमले को लेकर चिंतित नजर आ रहे हैं और ठोस रणनीतियां बनाने में जुटे हैं। उनकी पहल पर सरगुजा क्षेत्र में आठ गजराज वाहनों का दल लोगों को हाथियों के हमले से सुरक्षित रखने के लिए तैनात किया गया है।