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    Munshi Premchand Death Anniversary: धनपत राय श्रीवास्तव से मुंशी प्रेमचंद बनने की ये है कहानी

    By Sonu GuptaEdited By:
    Updated: Sat, 08 Oct 2022 04:07 PM (IST)

    उपन्यास और कहानियों के सम्राट मुंशी प्रेमचंद को हिंदी और उर्दू के महानतम लेखकों में से एक माना जाता है। मुंशी प्रेमचंद को शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने एक बार उपन्यास सम्राट कहकर भी संबोधित किया था। प्रेमचंद का बचपन का नाम धनपत राय श्रीवास्तव है।

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    धनपत राय श्रीवास्तव को ही मुंशी प्रेमचंद के नाम से जानते हैं।

    नई दिल्ली, आनलाइन डेस्क। उपन्यास और कहानियों के सम्राट मुंशी प्रेमचंद को हिंदी और उर्दू के महानतम लेखकों में से एक माना जाता है। मुंशी प्रेमचंद को शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने एक बार उपन्यास सम्राट कहकर भी संबोधित किया था। उन्होंने आपने लेखनी के माध्यम से हिंदी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा को शुरु किया, जिसके कारण लोगों ने पूरी सदी तक साहित्य का मार्गदर्शन किया। हिंदी साहित्य में उनका लेखन इसके विकास यात्रा में एक संपूर्णता का बोध कराती है।

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    वाराणसी जिले के लमही गांव में हुआ था जन्म

    मुंशी प्रेमचंद नाम से शायद ही कोई परिचित ना हो, लेकिन धनपत राय श्रीवास्तव से कई लोग अपरिचित हो सकते हैं। मुंशी प्रेमचंद नाम आते ही उनके बारे में और ज्यादा जानने की उत्सुक्ता होती है। आज यानी आठ अक्टूबर को मुंशी प्रेमचंद की पुण्यतिथि है। उनका जन्म 31 जुलाई 1880 को उत्तर प्रदेश में वाराणसी जिले के पास लमही गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम अजायब राय था और वह लमही गांव में ही एक डाकघर में बतौर मुंशी का काम करते थे।

    धनपत राय श्रीवास्तव से मुंशी प्रेमचंद बनने की कहानी

    पिता अजायब राय ने अपने बेटे का नाम धनपत राय रखा, लेकिन बाद में यही धनपत राय पहले नवाब राय और फिर मुंशी प्रेमचंद के नाम से जाने गए। अधिकतर लोग ये जानते हैं कि उनके पिता डाकघर में बतौर मुंशी के तौर पर कार्यरत थे इसी कारण उनके नाम में मुंशी शब्द जूड़ गया। हालांकि यह सच नहीं है। मुंशी प्रेमचंद उस समय हंस नामक अखबार में काम करते थे उनके साथ एक और व्यक्ति कन्हैया लाल मुंशी भी उसी अखबार में काम करते थे। जब अखबार में संपादकीय छपता तो दोनों व्यक्तियों का नाम एक साथ छप जाता था। कई बार कन्हैया लाल मुंशी का नाम छपता तो मुंशी के बाद कामा नहीं लगता था, जिसके कारण पाठक मुंशी को प्रेमचंद का ही हिस्सा समझ लेते थे। लंबे समय तक यह चलने के कारण पाठक ने प्रेमचंद को मुंशी प्रेमचंद के नाम से पहचानने लगे।

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