अब नहीं होगी पानी के लिए परेशानी, देश के लिए बनाया जा रहा नया मॉडल; जानिए कैसे करेगा काम?
जल्द ही एक नया बदलाव देखने को मिल सकता है। केंद्र सरकार पानी के पूरे ढांचे को पूरी तरह नया रूप देने की योजना पर काम कर रही है। नई व्यवस्था के तहत राज्य स्तरीय व्यवस्था की तर्ज पर ग्राम पंचायत ब्लाक शहर और जिलों के स्तर पर भी जल संसाधन प्रबंधन परिषद बनाई जाएंगी। जिससे परिषद के स्तर पर ही पानी के संदर्भ में सभी निर्णय लिए जाएंगे।
मनीष तिवारी, नई दिल्ली। देश में पानी के पूरे ढांचे को पूरी तरह नया रूप देने के लिए केंद्र सरकार ने राज्यों में एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन से संबंधित प्राधिकरण और परिषद का पूरा ढांचा साझा किया है। प्राधिकरण और परिषद का गठन राज्यों के स्तर पर होगा। राज्य परिषद में मुख्यमंत्री के अलावा 12 मंत्रालयों के प्रभारी मंत्री शामिल होंगे।
राज्य स्तरीय व्यवस्था की तर्ज पर ग्राम पंचायत, ब्लाक, शहर और जिलों के स्तर पर भी जल संसाधन प्रबंधन परिषद बनाई जाएंगी। इन प्राधिकरण और परिषद के स्तर पर ही पानी के संदर्भ में सभी निर्णय लिए जाएंगे। इन्हीं पर नियम-कायदे तय करने की जिम्मेदारी होगी और इस्तेमाल के तौर-तरीकों की निगरानी भी उनकी ओर से की जाएंगी।
जानिए क्या है नया मॉडल?
भूजल के संरक्षण से लेकर बाढ़ प्रबंधन का दायित्व भी जल संसाधन प्रबंधन प्राधिकरण के पास होगा। इसका मतलब है कि अगर केंद्र सरकार की ओर से सुझाए गए बिल (राज्य जल संसाधन प्रबंधन विधेयक, 2024) के अनुरूप राज्यों ने अपने यहां व्यवस्था की तो कम से कम पानी के मामले में विभागों के बीच जिम्मेदारियों को लेकर न तो खींचतान होगी और न ही सब चलता है वाली प्रवृत्ति चल पाएगी।
दैनिक जागरण को मिले बिल के मसौदे के अनुसार राज्य एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन परिषद के अध्यक्ष मुख्यमंत्री और उपाध्यक्ष संबंधित राज्य के जल संसाधन मंत्री होंगे। इसके अलावा परिषद में भूजल प्रबंधन, सिंचाई, कृषि, ग्रामीण पेयजल और स्वच्छता, शहरी पेयजल और स्वच्छता, उद्योग, वन एवं पर्यावरण, ग्रामीण विकास और पंचायती राज, शहरी विकास और नगर नियोजन, वित्त और कानून मंत्री शामिल होंगे। राज्य परिषद में ग्राम पंचायत और शहरी जल संसाधन प्रबंधन परिषद के प्रतिनिधियों के साथ जिला स्तरीय समिति का भी एक सदस्य होगा।
बड़े राज्यों में बनेंगे क्षेत्रीय कार्यालय
इसके साथ ही राज्य के मुख्य सचिव और जल संसाधन प्राधिकरण के अध्यक्ष को भी इसमें जगह दी जाएगी। इस परिषद की साल में दो बार बैठक जरूरी है। यह परिषद ही राज्य में जल नीति बनाएगी या उसमें संशोधन करेगी। पूरे राज्य के लिए जल प्रबंधन योजना को मंजूरी देगी। भूजल संरक्षण क्षेत्र, बाढ़ प्रभावित क्षेत्र और नदी संरक्षण क्षेत्र का निर्धारण भी यही परिषद करेगी। इसी तरह नए कानून में जल संसाधन संरक्षण प्राधिकरण के गठन का भी प्रस्ताव किया गया है। इसमें अध्यक्ष समेत अधिकतम पांच या न्यूनतम तीन सदस्य होंगे। उत्तर प्रदेश सरीखे बड़े राज्यों में इस प्राधिकरण के क्षेत्रीय कार्यालय भी बनाए जा सकते हैं।
पानी की बढ़ती मांग को देखते हुए फैसला
इस प्राधिकरण के अध्यक्ष और सदस्यों का चयन एक समिति के जरिये किया जाएगा। प्रस्तावित ड्राफ्ट बिल में कहा गया है कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में पानी की मांग लगातार तेजी से बढ़ने के साथ प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता घटती जा रही है। आने वाले दशकों में इस मांग को पूरा करने के लिए देश के सीमित जल संसाधनों का दक्षता के साथ प्रयोग करना होगा। पानी के सभी क्षेत्रों को एक जगह लाने की आवश्यकता है। जल को लेकर प्राथमिकता तय करनी होगी, जीने के लिए पानी की जरूरत सर्वोपरि है। इसके बाद खाद्य सुरक्षा, पर्यावरण अनुकूल आजीविका और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए जल की जरूरत इसके बाद आते हैं।
पानी के प्रबंधन और उसके संरक्षण में महिलाओं की केंद्रीय भूमिका है। छह माह में लेनी होगी जरूरी मंजूरीराज्यों की ओर से इस बिल को अपना लेने के बाद पानी का इस्तेमाल करने वाले सभी लोगों को इसके नियमन के दायरे में आने के लिए छह माह का समय मिलेगा। यानी घरेलू से लेकर कृषि, उद्योग, इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्टों समेत सभी क्षेत्रों में पानी का उपयोग करने वालों को जरूरी अनुमतियां प्राप्त करनी होंगी।
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