इन्हें कोई क्यों न करेगा सल्यूट आखिर हमारा काम भी ये इतनी जिम्मेदारी से कर रहे हैं
दादाभाई की जहां तक बात है तो वह पिछले तीन वर्षों से लगातार सड़कों के गड्ढ़ों को भरने का काम बिना किसी की मदद से करते आ रहे हैं। इसके पीछे वजह बेहद साफ है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। पीलीभीत के छोटेलाल का नाम तो आपने सुना ही होगा। हाल ही में छोटेलाल का नाम उस वक्त सुर्खियों में आया था जब उन्हें डीएम द्वारा सम्मानित किए जाने और इसके बाद उन्हें पीएम और राष्ट्रपति से मुलाकात करवाए जाने की बात सामने आई थी। जो लोग उनके नाम से अब भी अंजान हैं तो हम बता दें कि दरअसल, 80 वर्षीय छोटेलाल वर्षों अपने यहां पर बिना किसी की मदद के सड़क पर निस्वार्थ भाव से सफाई करते हैं। हालांकि वह कोई सफाईकर्मी नहीं है लेकिन यह उनके जीवन का एक मिशन बन चुका है, जिसकी बदौलत उनका नाम पीएम ऑफिस तक में गूंजा है। बहरहाल, सफाई के मिशन में सिर्फ एक छोटेलाल ही नहीं शामिल हैं बल्कि कई दूसरे नाम भी शामिल हैं।
बेटे की जान जाने के बाद संभाला जिम्मा
इनमें से एक नाम 48 वर्षीय दादाभाई भिल्लौरे और दूसरा नाम ललितपुर के 79 वर्षीय रूपनारायण निरंजन का है। दादाभाई की जहां तक बात है तो वह पिछले तीन वर्षों से लगातार सड़कों के गड्ढ़ों को भरने का काम बिना किसी की मदद से करते आ रहे हैं। इसके पीछे वजह बेहद साफ है। वह नहीं चाहते हैं कि जिस तरह से एक सड़क दुर्घटना में गडढ़े की वजह से उनके 16 साल के बेटे की जान चली गई थी, उस वजह से किसी दूसरे की जान न जा सके। दरअसल, 28 जुलाई 2018 को दादाभाई के बेटे की जान एक सड़क हादसे में चली गई थी। इस घटना से वह उबर भी नहीं पाए थे कि उसी जगह पर कुछ दिनों में एक और व्यक्ति की जान चली गई। इस घटना ने उनके जीवन पर गहरा असर डाला और उन्होंने सड़कों के गडढ़ों को भरने का एक मिशन बना लिया। इसके लिए उन्होंने मकान और इमारतों के मलबे का इस्तेमाल किया। वह जहां से निकलते वहां के गडढ़ों को चिन्हित करते जाते और उसको भरने में जुट जाते।
बेटे को सच्ची श्रद्धांजलि
दादाभाई का कहना है कि उनका यह काम सही मायने में उनके बेटे प्रकाश को श्रद्धांजलि है। अब जबकि उनके बेटे को गुजरे तीन वर्ष पूरे हो चुके हैं तो वह अपने मिशन में अकेले नहीं रह गए हैं। अब करीब 120 लोग उनके साथ जुड़ चुके हैं जो सड़कों के गडढ़े भरने का काम कर रहे हैं। इनकी बदौलत जुहू विकरोली लिंक रोड के करीब सौ से अधिक गडढ़ों को भरा जा चुका है। उनका कहना है कि एक दिन सड़कों पर न कोई गडढ़ा रहेगा और न ही इससे किसी की जान ही जाएगी। उनकी इस कहानी को प्रकाश झा के एक शो सारे जहां से अच्छा में भी दिखाया गया था।
जीवन का बना लिया मिशन
दादाभाई के अलावा निरंजन की बात करें तो सफाई का मुद्दा उनके जीवन के लिए सबसे बड़ा मिशन है। 79 वर्षीय निरंजन उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के रहने वाले हैं। हर रोज निरंजन अपने मिशन पर निकलते हैं और सड़कों के गडढ़े भरने से लेकर कूड़ा हटाने तक का काम करते हैं। वर्ष 2000 में वह बतौर टीचर रिटायर्ड हुए थे। निरंजन को वर्ष 1999 में राष्ट्रपति की तरफ से राष्ट्रीय पुरस्कार भी दिया जा चुका है। अपने शिक्षक जीवन में भी वह बच्चों को सड़कों पर सही तरह से चलने और साफ-सफाई रखने का ज्ञान देते थे। अपने शिक्षक जीवन के दौरान उन्होंने अपने स्कूल की सड़क की मरम्मत के लिए कई बार प्रशासन का दरवाजा खटखटाया। लेकिन जब बात नहीं बनी तो उन्होंने बिना किसी की मदद लिए न सिर्फ खुद से सड़क सही की, बल्कि स्कूल में टॉयलेट और साफ पानी पीने की सुविधा मुहैया करवाई। इसका खर्च भी उन्होंने खुद ही उठाया।
हर सुबह निकलते हैं मिशन पर
आज भी वह हर सुबह निक्कर और बनियान में अपने मिशन को पूरा करने के लिए निकल जाते हैं। उनका कहना है कि उन्हें रिटायर होने के बाद पेंशन मिलती है तो हमारी भी जिम्मेदारी है कि टेक्स के तौर पर हम लोगों के लिए कुछ काम करें। अपने इस काम से उन्हें शांति के अलावा एक सुकून भी मिलता है। इतना ही नहीं इन सबके बीच वह स्कूल में बच्चों को पढ़ाने के लिए भी वक्त निकाल लेते हैं। अपने घर के पास बहने वाले लंबे से नाले की सफाई का जिम्मा वह हर रोज निभाते हैं। हर रोज वह नाले से कूड़ा साफ करते हैं। ललितपुर के लिए निरंजन एक अनमोल धरोहर हैं जो सफाई का मंत्र दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाने में लगे हैं। इन लोगों पर किसी को भी नाज हो सकता है।
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