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खबरदार! यहां होती है रावण की पूजा इसलिए नहीं जलाते इनके पुतले, जानें कई और खास बातें

देश में ऐसी एक नहीं कई जगह हैं जहां पर दशहरा इस रूप में नहीं मनाया जाता है। इतना ही नहीं कुछ जगह ऐसी भी हैं जहां पर रावण, मेघनाथ और कुंभकरण का पुतला तक जलाना निषेध है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Thu, 18 Oct 2018 10:51 PM (IST)Updated: Fri, 19 Oct 2018 12:45 PM (IST)
खबरदार! यहां होती है रावण की पूजा इसलिए नहीं जलाते इनके पुतले, जानें कई और खास बातें
खबरदार! यहां होती है रावण की पूजा इसलिए नहीं जलाते इनके पुतले, जानें कई और खास बातें

नई दिल्ली [जागरण स्‍पेशल]। दशहरा का आयोजन लगभग पूरे देश में किया जा रहा है। इसको बुराई पर अच्‍छाई का प्रतीक माना जाता है। लेकिन आज भी देश में ऐसी एक नहीं कई जगह हैं जहां पर दशहरा इस रूप में नहीं मनाया जाता है। इतना ही नहीं कुछ जगह ऐसी भी हैं जहां पर रावण, मेघनाथ और कुंभकरण का पुतला तक जलाना निषेध है। इसके अलावा कुछ जगह ऐसी भी हैं जहां रावण की पूजा होती है और दशहरा वाले दिन उसके निधन पर शोक मनाया जाता है। आप सभी इस बात को भली भांति जानते हैं कि रावण जैसा विद्वान आज तक दूसरा कोई नहीं हुआ। इसके अलावा उसकी बराबर शिवभक्‍त भी कोई नहीं हुआ है। रावण को लेकर कई तरह की बातें कही जाती हैं, लेकिन आप इनके बारे में कितना कुछ जानते हैं। यदि नहीं जानते हैं तो आज हम आपको दशहरा और रावण से जुड़ी कुछ ऐसी बातों के बारे में बताएंगे जिन्‍हें जानकर आप भी निश्चित तौर पर कहेंगे कि अच्‍छा ऐसा भी होता है।

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दिल्‍ली के नजदीक है रावण का गांव
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ग्रेटर नोएडा से 10 किलोमीटर दूर है रावण का पैतृक गांव बिसरख। यहां न रामलीला होती है, न ही रावण दहन किया जाता है। यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है। मान्यता यह भी है कि जो यहां कुछ मांगता है, उसकी मुराद पूरी हो जाती है। इसलिए साल भर देश के कोने-कोने से यहां आने-जाने वालों का तांता लगा रहता है। साल में दो बार मेला भी लगता है। इस गांव में शिव मंदिर तो है, लेकिन भगवान राम का कोई मंदिर नहीं है।

जब देशभर में जहां दशहरा असत्य पर सत्य की और बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, वहीं रावण के पैतृक गांव नोएडा जिले के बिसरख में इस दिन उदासी का माहौल रहता है। यहां पर रावण का पुतला जलाना अपशकुन माना जाता है। माना जाता है कि रावण के पिता विशरवा मुनि के नाम पर ही गांव का नाम पड़ा। गांव में रावण का मंदिर बना हुआ है। मान्यता है कि रावण के पिता विशरवा मुनि ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए बिसरख गांव में अष्टभुजा धारी शिवलिग स्थापित कर मंदिर का निर्माण किया था। पूर्व में यह क्षेत्र यमुना नदी के किनारे घने जंगल में आच्छादित था।

रावण की होती है पूजा
लुधियाना जिले में स्थित दोराहा के साथ लगते कस्बा पायल में बना रावण का 25 फुट ऊंचा बुत अपनेआप में इतिहास समेटे हुए हैं। 180 साल पुराना यह बुत दशहरे के दिन खास आकर्षण का केंद्र होता है। यहां रावण की पूजा अर्चना की जाती है। दशहरे के दिन पंजाब और देश के अन्य स्थानों से आकर दुबे परिवार के लोग 10 से 12 दिन तक प्राचीन राम मंदिर में रुकते हैं और रावण के बुत की पूजा-अर्चना करते हैं। यह बुत उनके पड़दादा हकीम वीरबल दास ने बनवाया था और तब से लेकर अब तक उनकी छठी पीढ़ी भी रावण के बुत की पूजा करती आ रही है।

यहां निकाली जाती है रावण की शवयात्रा
दशहरा पर्व पर रावण का पुतला फूंके जाने की परंपरा तो देशभर में मिलती है। इससे इतर कौशांबी के नारा गांव में रावण की शवयात्रा निकाली जाती है। यह परंपरा यहां दशकों से चली आ रही है। इसके गवाह बनते हैं आसपास के कई गांवों से हजारों श्रद्धालु। नवरात्र में रामलीला का मंचन नारा गांव में होता है। विजयदशमी के दिन मेला लगता है और शाम को रावण दहन होता है। फिर सांस्कृतिक कार्यक्रम के बाद रात करीब 12 बजे रावण की अर्थी निकाली जाती है। ग्रामीणों ने बताया कि इसकी पहल गांव के ही देउवा बाबा ने शुरू की थी। उन्होंने इसे घइयल का जुलूस नाम दिए था, जो आज भी जारी है। इसमें एक व्यक्ति को चारपाई पर लिटा दिया जाता है और उसके ऊपर कफन व फूलमाला डाला जाता है। इसके बाद शव यात्रा पूरे गांव में घुमाई जाती है। इस दौरान जय श्रीराम के उद्घोष के माध्यम से असत्य पर सत्य की जीत की सीख दी जाती है।

कुल्लू का दशहरा
अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कुल्लू दशहरा की यह विशेषता है कि रावण, कुंभकर्ण, मेघनाद के पुतले नहीं जलाए जाते हैं। सात दिनों तक मुहल्ला, लंका आदि उत्सव मनाए जाते हैं। सातवें दिन तीन झाडिय़ों को जलाया जाता है जो रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के प्रतीक माने जाते हैं। जब भगवान रघुनाथ जी की मूर्ति अयोध्या से पौणीहारी बाबा और दामोदर दास ने कुल्लू पहुंचाई थी और राजा जगत सिंह का कुष्ठ रोग मूर्ति के चरणामृत को पीने से ठीक हो गया था तब राजा जगत सिंह ने कुल्लू में प्रचलित शैव मत के स्थान पर वैष्णव मत की स्थापना की। तब से निरंतर कुल्लू दशहरा का आयोजन होता रहा।

बस्‍तर का दशहरा
अपनी अनोखी संस्कृति की वजह से बस्तर वैश्विक स्तर पर हमेशा चर्चा में रहा है। चींटी के अंडे की चटनी, भूल-भुलैया वाले जंगल, सल्फी, आदिवासी, यहां की लाल मिट्टी और नक्सलवाद के साथ ही बस्तर का दशहरा दुनिया के लिए चर्चा का विषय है। 75 दिनों तक चलने वाले बस्तर दशहरा को दुनिया का सबसे लंबी अवधी तक चलने वाला लोकपर्व माना जाता है। इसकी खासियत के कारण ही यहां देश-विदेश से लोग आते हैं।

बैजनाथ में नहीं जलता रावण का पुतला
हिमाचल प्रदेश बैजनाथ में रावण समेत मेघनाथ और कुंभकरण का पुतला नहीं जलाया जाता है। यहां भगवान भोलेनाथ का हजारों वर्ष पुराना बैजनाथ मंदिर है। ऐसा विश्वास है कि यहां जिसने भी रावण को जलाया, उसकी मौत तय है। इस कारण यहां कई सालों से रावण के पुतले को नहीं जलाया जाता है।

रावण के मंदिर
आपको यहां पर ये भी बता दें कि देश में कई जगहों पर रावण के मंदिर मौजूद हैं जहां पर शिव के साथ रावण की भी पूजा अर्चना नियमित तौर पर की जाती है। ऐसे मंदिर रावण के गांव बिसरख के अलावा गुजरात के कोटेश्‍वर‍, विदिशा रावणग्राम और मुरुदेश्‍वरा मंदिर में रावण की मूर्तियां हैं। श्रीलंका के कोणेश्‍वरम मंदिर में भी रावण की मूर्ति है। यह दुनिया में रावण के सबसे महत्‍वपूर्ण मंदिरों में से एक है। इसके अलावा आंध्र प्रदेश के काकीनादा में भी रावण का मंदिर मौजूद है। जोधपुर के माउदगिल ब्रह्माण रावण के ही वंशज माने जाते हैं। उन्‍होंने जोधपुर में रावण के मंदिर का निर्माण करवाया है। कहा ये भी जाता है कि रावण की पत्‍नी मंदोदरी यहां की ही थी। यहां पर रहने वाले करीब 200 परिवार खुद को रावण का वशंज बताते हैं और रावण की पूजा करते हैं।

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