फिर दिखी न्यायपालिका और कार्यपालिका में तनातनी
ध्यान रहे कि कुछ दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट में जजों के नाम पर रिश्वतखोरी का मामला आया था। उसे लेकर कोर्ट के अंदर ही माहौल गर्म था।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के बीच चलती रही तनातनी की झलक विधि दिवस की पूर्व संध्या पर भी दिखी। इस मौके पर आयोजित सम्मेलन के उद्घाटन भाषण में ही राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने न्याय में होने वाली देरी, गरीबों को न्याय मिलने में आने वाली समस्याओं और पारदर्शिता की सीख दी।
वहीं लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने उस कोलेजियम व्यवस्था को बदलने की जरूरत बताई, जिसका कोर्ट बहुत सख्ती से बचाव करता रहा है। केंद्र सरकार में कानून राज्य मंत्री पीपी चौधरी ने न्यायिक सक्रियता का सवाल उठाया। रविवार को सम्मेलन का समापन प्रधानमंत्री करेंगे।
विधि दिवस के अवसर पर शनिवार को दो दिवसीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। राष्ट्रपति कोविंद ने बहुत ही सटीक लहजे में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अपनी बात रख दी। उन्होंने कहा, 'सार्वजनिक जीवन शीशे के घर की तरह है। इसमें पारदर्शिता और निगरानी की मांग लगातार उठ रही है। न्यायिक व्यवस्था को इसके प्रति बहुत सतर्क होना चाहिए।'
ध्यान रहे कि कुछ दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट में जजों के नाम पर रिश्वतखोरी का मामला आया था। उसे लेकर कोर्ट के अंदर ही माहौल गर्म था। राष्ट्रपति ने गरीबों को न्याय मिलने में कठिनाई, देरी और न्यायिक व्यवस्था में निचले वर्ग के कम प्रतिनिधित्व का भी सवाल उठाया। उन्होंने अपील की कि सरकार के तीनों अंगों को मिलकर इसका रास्ता निकालना चाहिए।
उन्होंने खासतौर से महिलाओं के प्रतिनिधित्व का उल्लेख किया और कहा हर चार न्यायाधीशों में से केवल एक महिला होती है। उन्होंने कहा कि तीनों अंगों- न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका को अच्छे व्यवहार का मॉडल बनना होगा।
सुमित्रा महाजन और कानून राज्य मंत्री पीपी चौधरी ने न्यायाधीशों की नियुक्ति के कोलेजियम सिस्टम और न्यायिक सक्रियता पर भी सवाल उठाए। महाजन ने कहा कि इसमें बदलाव की जरूरत है। ध्यान रहे कि कोलेजियम व्यवस्था में बदलाव सरकार और न्यायपालिका के बीच बड़ी तकरार का कारण रहा था।
न्यायिक सक्रियता पर आमने-सामने, कानून राज्य मंत्री ने उठाया सवाल
- कानून राज्य मंत्री पीपी चौधरी ने बार-बार याद दिलाया कि न्यायपालिका को अपनी विश्वसनीयता बरकरार रखनी होगी।
- उन्होंने न्यायिक सक्रियता पर सवाल उठाते हुए कहा कि न्यायपालिका को नीति निर्धारण के क्षेत्र में दखल नहीं देना चाहिए।
- चौधरी ने कहा कि न्यायपालिका की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए जरूरी है कि नियुक्तियों पर बारीकी से काम हो।
मुख्य न्यायाधीश का जवाब
सम्मेलन में मौजूद मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने भी न्यायिक सक्रियता पर अपना पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि प्रत्येक नागरिक के मौलिक अधिकारों की रक्षा करना न्यायपालिका का संविधान प्रदत्त कर्तव्य है। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका न तो नीति बनाती है और न ही उसमें हस्तक्षेप की मंशा होती है। लेकिन, अगर किसी नीति से आम जनता के मौलिक अधिकारों का हनन होता है तो उसकी व्याख्या करना हमारा कर्तव्य है।
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