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रिश्तों को जोड़ती जंस्कार की सफेद चादर, परीलोक सी सुंदर है ये दुनिया

जंस्कार वेली! लद्दाख की खूबसूरत वादियों में परी लोक सी सुंदर दुनिया। मानों प्रकृति ने कदम-कदम पर खूबसूरती लुटा दी है, पर इस खूबसूरत दुनिया का अपना दर्द भी है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sun, 06 Jan 2019 09:22 AM (IST)Updated: Sun, 06 Jan 2019 09:26 AM (IST)
रिश्तों को जोड़ती जंस्कार की सफेद चादर, परीलोक सी सुंदर है ये दुनिया
रिश्तों को जोड़ती जंस्कार की सफेद चादर, परीलोक सी सुंदर है ये दुनिया

जम्मू, राहुल शर्मा। जंस्कार वेली! लद्दाख की खूबसूरत वादियों में परी लोक सी सुंदर दुनिया। मानों प्रकृति ने कदम-कदम पर खूबसूरती लुटा दी है, पर इस खूबसूरत दुनिया का अपना दर्द भी है। साल में करीब आठ माह तक बर्फबारी के कारण यह वेली लेह और पूरी दुनिया से कटी रहती है। ऐसे में दिसंबर के अंत में जब कश्मीर और लद्दाख में जिंदगी जमने लग जाती है, तब प्रकृति की सफेद चादर रिश्तों को फिर से जोड़ने की उम्मीद जगाती है।

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वेली का नाम इसके साथ बहने वाली जंस्कार नदी के नाम पर पड़ा। सिंधु की सहायक नदी यहां की लाइफलाइन है। गर्मियों में वेग के साथ बहने वाली जंस्कार नदी अब जम चुकी है। मानो किसी ने बर्फीली चादर बिछा दी हो। इस बर्फीली राह को दुनिया चद्दर (चादर) ट्रैक के नाम से जानती है।

जब सब दुनिया से रिश्ते कट जाते हैं, उस समय यह चद्दर ट्रैक जंस्कार वेली के लोगों में उम्मीद की नई किरण बनकर आता है। सदियों से यहां के लोग इस ट्रैक को आवगमन के तौर पर प्रयोग करते हैं और यहीं से व्यापार भी चलता था। बर्फ की चादर पर ट्रैकिंग अब पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। देश-विदेश से हजारों पर्यटक यहां के खूबसूरत नजारों का आनंद लेने पहुंचते हैं। इस बार हुई भारी बर्फबारी ने इसका आकर्षण और बढ़ा दिया है।

105 किलोमीटर लंबा यह मार्ग लेह और जंस्कार को आपस में जोड़ता है। जंस्कार घाटी के निवासी इस रास्ते को लेह आने-जाने के लिए अब भी इस्तेमाल करते हैं। जनवरी तक जैसे ही जंस्कार नदी पूरी तरह जम जाती है तो स्थानीय लोगों के लिए इस ट्रैक पर चलकर लेह पहुंचना आसान हो जाता है। इससे पहले ये लोग सीधे खड़े पहाड़ों को लांघ पैदल सफर तय कर चौथे या पाचवें दिन लेह पहुंचते थे।

चादर ट्रैक का एडवेंचर ही इसे लोकप्रिय बनाता है। यह ट्रैक देखने में सरल और खूबसूरत दिखता है, लेकिन यह जोखिम से भरा है। लद्दाख निवासी मीफम ओतसल बताते हैं कि चद्दर (चादर) का कौन सा हिस्सा मजबूत है, किस हिस्से में चलना है या कौन सा हिस्सा कमजोर है, यह सबसे आगे चल रहा गाइड ही तय करता है। यही वजह है कि जिला प्रशासन ने ट्रैकिंग के लिए गाइड का होना अनिवार्य कर दिया है। दुर्घटनाओं को देखते हुए हेल्थ इंश्योरेंस भी अनिवार्य कर दिया गया है। अब ट्रैकर को यात्रा शुरू करने से पहले स्वास्थ्य की जांच भी करवानी होगी। दुनिया भर से पहुंचने वाले पर्यटक पहले लेह पहुंचते हैं। यहां बेस बनाने और हेल्थ सर्टिफिकेट हासिल करने के बाद ट्रैकर को परमिट दिया जाता है।

चादर ट्रैक लेह से सत्तर किलोमीटर दूर चिलिंग गांव से शुरू होता है। यहीं सिंधु और जंस्कार नदी का संगम भी है। चिलिंग गांव की खोज नेपाली तांबे के कारीगर ने की थी। कारीगर अब भी इस गांव में रहते हैं। चिलिंग से चालीस किलोमीटर दूर नेरक या फिर सौ किलोमीटर से भी ज्यादा दूर पदुम तक ट्रैकिंग की जाती है। पदुम तक आना-जाना 200 किलोमीटर से ज्यादा का होता है। ज्यादातर लोग नेरक तक ही जाते हैं।

रोमांच के शौकीनों की जन्नत

यह इलाका पिछले कुछ सालों में एडवेंचर टूरिज्म का हब बन चुका है। रोमांच के शौकीनों में चद्दर ट्रैक काफी लोकप्रिय हो रहा है। इसके खतरों को न भांपने के कारण दुर्घटनाओं का ग्राफ भी बढ़ा है। इन दुर्घटनाओं से सबक लेते हुए इस साल लद्दाख प्रशासन ने कई कदम उठाए हैं। ट्रैक की लोकप्रियता को कायम रखने और यहां देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों की सुरक्षा को मद्देनजर रख जनवरी व फरवरी में इस ट्रैक को खोलने की अनुमति दी गई है। 

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