TET की अनिवार्यता का देशभर में विरोध, शिक्षकों ने सरकार से की कानून में संशोधन की मांग
टीईटी अनिवार्यता मामले में शिक्षक संघ ने सरकार पर दबाव बनाने की तैयारी कर ली है। संघ नियम-कानूनों में संशोधन की मांग करेगा ताकि पुरानी सेवा शर्तों के अनुसार शिक्षकों की नौकरी जारी रहे और प्रोन्नति मिले। नियुक्ति के समय टीईटी अनिवार्य नहीं था तो अब नहीं होना चाहिए। संघ कानूनी विकल्पों पर भी विचार कर रहा है।

माला दीक्षित, नई दिल्ली। नौकरी में बने रहने के लिए टीईटी की अनिवार्यता के मामले में शिक्षक संघ ने लंबी लड़ाई के लिए कमर कस ली है। शिक्षकों को राहत दिलाने के लिए अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ सरकार पर नियम कानून में संशोधन करने का दबाव बनाएगा। शिक्षक संघ मांग करेगा कि जिन शर्तों पर नियुक्ति हुई थी उन्हीं पर उनकी नौकरी जारी रहनी चाहिए और उसी पर उन्हें प्रोन्नति मिलनी चाहिए।
अगर नियुक्ति के समय टीईटी (शिक्षक पात्रता परीक्षा) जरूरी नहीं था तो अब इसे अनिवार्य नहीं किया जा सकता। हालांकि सरकार पर राहत देने का दबाव बनाने के साथ-साथ शिक्षक संघ ने कानूनी विकल्प भी तलाशने शुरू कर दिए हैं और वकीलों से विचार विमर्श चल रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने दिया था फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने गत एक सितंबर को दिए फैसले में कहा है कि कक्षा एक से कक्षा आठ तक को पढ़ाने वाले सभी शिक्षकों को दो वर्ष के भीतर टीईटी परीक्षा पास करनी होगी। इसमें नाकाम रहने वालों को अनिवार्य सेवानिवृति दे दी जाएगी। प्रोन्नति के लिए भी टीईटी पास करना अनिवार्य है। सिर्फ जिनकी नौकरी पांच वर्ष से कम बची है उन्हें टीईटी से छूट है लेकिन प्रोन्नति पाने के लिए उन्हें भी टीईटी पास करना होगा।
कोर्ट का आदेश पूरे देश के लिए है। आदेश से शिक्षकों में हड़कंप है क्योंकि देश भर में लाखों शिक्षक हैं जिन्होंने टीईटी नहीं किया है। 2011 से पहले नियुक्त हुए शिक्षकों की नौकरी पर तलवार लटक गई है। शिक्षकों की नौकरी पर संकट को देखते हुए अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ सक्रिय हो गया है। इस संकट का हल ढूंढने और वकीलों से विचार विमर्श के लिए संघ के अध्यक्ष सुशील पांडेय, सचिव मनोज कुमार सहित विभिन्न राज्यों से कई शिक्षक नेता दिल्ली आए हुए हैं।
टीईटी अनिवार्य करने पर आपत्ति
सुशील पांडेय कहते हैं कि शिक्षक संघ टीईटी अनिवार्य करने के कोर्ट के फैसले से राहत के लिए सरकार से बात करेगा और दबाव बनाएगा। संघ का कहना है कि जो शिक्षक पहले भर्ती हुए थे, वे उस समय के नियमों और सेवा शर्तों के साथ नियुक्ति हुए थे। उनका अधिकार है कि उनकी नौकरी उन्हीं सेवा शर्तों के मुताबिक जारी रहे और उसी पर उन्हें प्रोन्नति दी जाए। उनकी नियुक्ति के समय टीईटी अनिवार्य नहीं था तो अब उसे अनिवार्य नहीं किया जा सकता।
कोर्ट का आदेश आया है ऐसे में संघ राज्य सरकारों से और केंद्र से मांग करेगा कि वे नियम कानूनों में संशोधन कर ये घोषित करें कि जिन नियमों और सेवा शर्तों के तहत शिक्षकों की नियुक्ति हुई थी, उनकी नौकरी उसी के तहत जारी रहेगी और उसी के मुताबिक उन्हें प्रोन्नति मिलेगी। शिक्षक संघ का पहला जोर सरकार से राहत पाने का होगा लेकिन वे इसके साथ ही कानूनी विकल्पों पर भी विचार कर रहे हैं और इसके लिए वकीलों से विचार विमर्श चल रहा है।
सरकार और कोर्ट से ध्यान देने की अपील
शिक्षक संघ का कहना है कि शिक्षकों की कई श्रेणियां है जो टीईटी के लिए आवेदन ही नहीं कर सकते। जैसे मृतक आश्रित शिक्षक जिन्हें प्रशिक्षण से छूट दी गई थी वो अब टीईटी आवेदन नहीं कर सकते। टीईटी के लिए हर राज्य में आयु सीमा तय है और सीटीईटी के लिए भी आयु सीमा तय है तो जो उस आयु सीमा को पार कर चुके हैं वे भी टीईटी नहीं कर सकते। इंटरमीडिएट के बाद नौकरी पाने वाले और बीएड व बीपीएड उत्तीर्ण शिक्षक भी टीईटी के लिए आवेदन नहीं कर सकते, क्योंकि टीईटी के लिए स्नातक के साथ बीटीसी या डीएलएड होनी चाहिए। इसके लिए टीईटी की नियमावली में संशोधन करना पड़ेगा।
इन दिक्कतों पर सरकार और कोर्ट को ध्यान देना होगा। इसके लिए कोर्ट में भी पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल की जाएंगी। उधर सरकारों ने भी कोर्ट आदेश के बाद तैयारियां शुरू कर दी हैं। उत्तराखंड सरकार ने फैसले के अगले ही दिन जिला शिक्षा अधिकारियों को पत्र और मेल भेजकर टीईटी पास और टीईटी नहीं करने वाले शिक्षकों का ब्योरा मांगा था ताकि स्थिति की समीक्षा की जा सके। उत्तर प्रदेश में भी सरकार स्थिति पर नजर बनाए है।आल इंडिया बीटीसी शिक्षक संघ के अध्यक्ष अनिल यादव का कहना है कि सरकार ने आश्वासन दिया है कि वह मामले को देखेगी।
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