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    तेलंगाना में 17 साल के अलगाव के बाद कपल का तलाक, HC ने फैमिली कोर्ट के फैसले को रखा बरकरार; देना होगा 50 लाख का गुजारा भत्ता

    Updated: Mon, 29 Dec 2025 11:56 AM (IST)

    तेलंगाना उच्च न्यायालय ने 17 साल पुराने वैवाहिक विवाद में फैमिली कोर्ट के तलाक के फैसले को बरकरार रखा है। कोर्ट ने पति को अपनी दूर रह रही पत्नी को 50 ...और पढ़ें

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    तेलंगाना में 17 साल के अलगाव के बाद कपल का तलाक। (प्रतीकात्मक तस्वीर)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। तेलंगाना उच्च न्यायालय ने करीब 17 साल पुराने एक वैवाहिक विवाद में फैमली कोर्ट के तलाक के फैसले को बरकरार रखा है। वहीं, उच्च न्यायालय ने यह भी आदेश दिया कि पति अपने दूर रह रही पत्नी को 50 लाख रुपये का स्थायी गुजारा भत्ता दे।

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    दरअसल, जस्टिस के लक्ष्मण और जस्टिस नरसिंग राव नंदिकोंडा की बेंच ने फैसले में कहा कि द्रोणमराजू विजया लक्ष्मी और द्रोणमराजू श्रीकांत फणी कुमार के बीच रिश्ता पूरी तरीके से खत्म हो चुका है। कोर्ट ने यह भी माना कि दोनों के बीच एकजुट होने की कोई संभावना नहीं है।

    22 साल पुराना है मामला

    उल्लेखनीय है कि यह पूरा मामला मई साल 2002 में हुई शादी से जुड़ा हुआ है। दंपति की एक बेटी साल 2003 में पैदा हुई, लेकिन जन्म के तुरंत बात दंपती अलग-अलग रहने लगे। पूरा मामला कोर्ट पहुंचा।

    साल 2008 में पति ने क्रूरता और परित्याग के आधार पर तलाक की अर्जी दी। वहीं, पत्नि ने वैवाहिक अधिकारों की बहाली की याचिका दायर की। दोनों पक्षों के बीच वर्षों तक केस चला, इस दौरान पत्नी की ओर आईपीसी की कई धाराओं के तहच केस दायर किया गया।

    फैमली कोर्ट के आदेश को HC ने रखा बरकरार

    साल 2015 में फैमली कोर्ट ने तलाक का आदेश दिया था, जिसके खिलाफ पत्नी ने हाईकोर्ट में अपील की। तेलंगाना उच्च न्यायालय ने अपनी की सुनवाई के दौरान पाया कि शुरू में पत्नी बेटी के भविष्य के लिए एक होने की इच्छा जताती रही, लेकिन लंबे अलगाव के बाद अब वह भी पति के साथ रहने में रुचि नहीं दिखा रही

    मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि दोनों पक्षों के बीच गहरा अविश्वास पैदा हो चुका है और इतनी मुकदमेबाजी हुई कि रिश्ते की मरम्मत कर पाना संभव नहीं है। ऐसे में उच्च न्यायालय ने भी फैमली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा।

    अपने फैसले में के लक्ष्मण ने लिखा कि विश्वास, प्रेम और एक दूसरे के साथ रहने की इच्छा के अभाव में दोनों पक्षों को वैवाहिक जीवन जीने का निर्देश देना सही नहीं होगा। ऐसा करने पर विवश करना दोनों पक्षों में अविश्वास को जन्म देता है। कोर्ट ने अपने फैसले में माना कि दोनों के बीच पुनर्मिलन की कोई संभावना नहीं बची।

    50 लाख का गुजारा भत्ता एकसाथ देना होगा

    हाईकोर्ट ने फैमली कोर्ट की डिक्री को बरकरार रखा, हालांकि, फैमली कोर्ट द्वारा पत्नी को स्थायी गुजारा भत्ता और बेटी के भरण पोषण का कोई प्रावधान न करने पर आपत्ति जताई।

    अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि उक्त 50 लाख रुपये की राशि पत्नी और उनकी बेटी के स्थायी गुजारा भत्ता तथा भरण-पोषण सहित पूर्ण और अंतिम निपटारे के रूप में होगी। कोर्ट ने आदेश दिया कि पत्नी को ये राशि तीन महीने के भीतर चुकानी होगी।