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    शिक्षकों के लिए TET की अनिवार्यता के आदेश पर SC से पुनर्विचार का अनुरोध, याचिका की दाखिल

    Updated: Wed, 01 Oct 2025 03:59 PM (IST)

    टीईटी की अनिवार्यता के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ शिक्षकों ने कानूनी लड़ाई का मन बना लिया है। अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की है जिसमें कोर्ट से 1 सितंबर के आदेश पर पुनर्विचार करने की गुहार लगाई गई है। सरकार का कहना है कि टीईटी की अनिवार्यता केवल आरटीई कानून लागू होने के बाद नियुक्त शिक्षकों पर लागू होती है।

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    शिक्षकों के लिए TET की अनिवार्यता के आदेश पर SC से पुनर्विचार का अनुरोध (फाइल फोटो)

    माला दीक्षित, नई दिल्ली। टीईटी की अनिवार्यता के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ शिक्षकों ने कानूनी लड़ाई का मन बनाया है। सरकार के छोर पर राहत का दबाव बनाने के साथ ही शिक्षकों ने सुप्रीम कोर्ट में भी पुनर्विचार याचिका दाखिल कर दी है।

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    अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल कर कोर्ट से गत एक सितंबर के टीईटी की अनिवार्यता के आदेश पर पुनर्विचार करने की गुहार लगाई है। शिक्षक संघ के अलावा उत्तर प्रदेश सरकार और तमिलनाडु सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल की हैं।

    सरकार ने क्या कहा?

    सरकार का भी यही कहना है कि टीईटी की अनिवार्यता उन्हीं शिक्षकों पर लागू होती है जिनकी नियुक्ति आरटीई कानून लागू होने के बाद हुई है। यह अनिवार्यता उन शिक्षकों पर लागू नहीं होती जिनकी नियुक्ति इस कानून के लागू होने के पहले नियम कानूनों के तहत हुई है।

    सुप्रीम कोर्ट ने गत एक सितंबर को आदेश दिया था जिसमें कक्षा एक से आठ तक को पढ़ाने वाले सभी शिक्षकों, जिनकी नौकरी पांच वर्ष से ज्यादा बची है, दो वर्ष के भीतर टीईटी पास करना अनिवार्य है। यहां तक कि जिनकी नौकरी पांच वर्ष से कम बची है उन्हें भी अगर प्रोन्नति पानी है तो टीईटी पास करना अनिवार्य है।

    आदेश से मचा हड़कंप

    कोर्ट के इस आदेश से पूरे देश में प्राथमिक और जूनियर कक्षाओं को पढ़ाने वाले पुरानी नियुक्ति के शिक्षकों में हड़कंप मचा है क्योंकि आदेश का सबसे ज्यादा असर उन लोगों पर हो रहा है जिनकी नियुक्ति आरटीई कानून लागू होने से पहले यानी 2010 से पहले हुई है।

    अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ ने सुप्रीम कोर्ट से टीईटी की अनिवार्यता के आदेश पर पुनर्विचार का अनुरोध करते हुए कहा है कि इस फैसले का देश भर में करीब 10 लाख उन शिक्षकों पर प्रभाव पड़ रहा है, जिनकी नियुक्ति शिक्षा का अधिकार (आरटीई) कानून लागू होने से पहले यानी 23 अगस्त 2010 से पहले हुई है और उस समय लागू नियम कानूनों के मुताबिक हुई है।

    याचिका में कहा गया है कि उन शिक्षकों के लिए नियुक्ति के समय टीईटी (शिक्षक पात्रता परीक्षा) की अनिवार्यता नहीं थी और अब उनमें से ज्यादातर शिक्षक 50 ‌वर्ष से ज्यादा आयु के हो चुके हैं। संघ का कहना है कि ये ऐसा मामला नहीं है कि जिन शिक्षकों ने टीईटी पास नहीं किया है उनकी परफारमेंस में किसी तरह का प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

    शिक्षक लगातार कर रहे विरोध प्रदर्शन

    कहा है कि टीईटी की अनिवार्यता को पूर्व प्रभाव (रिट्रोस्पेक्टेवली) से लागू करने से बड़ी संख्या में शिक्षक बर्खास्त जो जाएंगे, उन्हें प्रोन्नति देने से इन्कार कर दिया जाएगा। उनका अपमान होगा और उनका गरिमा व जीवनयापन का अधिकार प्रभावित होगा। अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष सुशील कुमार पांडेय का कहना है कि यह पुनर्विचार याचिका दाखिल करने के अलावा शिक्षकों का काली पट्टी बांध कर किया जा रहा विरोध प्रदर्शन और हस्ताक्षर अभियान भी जारी रहेगा।

    शिक्षक संघ ने वकील आरके सिंह के जरिए सुप्रीम कोर्ट में दाखिल पुनर्विचार याचिका में कहा है कि आरटीई एक्ट की धारा 23 में जो योजना दी गई है उसमें केंद्र सरकार को किसी एकेडेमिक अथारिटी को न्यूनतम योग्यता मानदंड तय करने के लिए अधिकृत करने की शक्ति दी गई थी और केंद्र ने 31 अक्टूबर 2010 को अधिसूचना जारी करके इसके लिए एनसीटीई को अधिकृत किया।

    एनसीटीई ने 23 अगस्त 2010 को अधिसूचना जारी कर न्यूनतम योग्यता में टीईटी को जोड़ दिया। लेकिन उस अधिसूचना का पैरा चार नयी तय की गई न्यूनतम योग्यता से विशेष तौर पर उन शिक्षको को छूट देता है जो अधिसूचना जारी होने की तारीख से पहले नियुक्ति हो चुके हैं और नौकरी कर रहे हैं।

    किन चीजों की हुई अनदेखी?

    इसलिए जो शिक्षक 23 अगस्त 2010 से पहले नियुक्त हुए हैं उन्हें टीईटी से छूट मिली हुई है और सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में उस पैरा चार को नजरअंदाज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अधिसूचना को ऐसे पढ़ा है जैसे कि कभी कोई छूट थी ही नहीं, ऐसे में फैसले में स्पष्ट रूप से खामी है जिस पर पुनर्विचार किए जाने की जरूरत है। कम से कम कोर्ट आदेश के उस भाग पर पुनर्विचार करे जिसमें टीईटी की अनिवार्यता सभी के लिए की गई है।

    यह भी कहा गया है कि बाद में आये विधायी और कार्यकारी आदेशों में भी एनसीटीई द्वारा दी गई छूट जारी रखी गई। यहां तक कि एनसीटीई ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में भी स्पष्ट किया था कि जिन शिक्षकों की नियुक्ति 23 अगस्त 2010 के पहले हुई है उन्हें नौकरी में बने रहने या प्रोन्नति पाने के लिए टीईटी पास करने की जरूरत नहीं है। जजमेंट में इन चीजों की अनदेखी की गई है।

    ये भी कहा गया है कि दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड आदि कई राज्यों में शिक्षकों की भर्तियां नियम कानून के तहत संबंधित लोक सेवा आयोगों द्वारा कराई जाने वाली प्रतियोगी परीक्षा से होती हैं, जो कि कई बार टीईटी से ज्यादा कड़ी होती है।

    क्या-क्या दलीलें दी गई?

    इन मेरिट आधारित चयन में शिक्षकों की गुणवत्ता सुनिश्चित होती है ऐसे में पूर्व तिथि से टीईटी की अनिवार्यता लागू करना गलत और मनमाना होगा। यहां तक कि जिन शिक्षकों की नियुक्ति अनुकंपा के आधार पर होती है उन्हें भी समय समय पर तय प्रशिक्षण कार्यक्रम कराए जाते हैं। याचिका में और भी बहुत सी दलीलें दी गई हैं।

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