नई दिल्ली पहुंचे तालिबान के विदेश मंत्री, जयशंकर से होगी मुलाकात; पाक की बढ़ी बेचैनी
तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी की भारत यात्रा दक्षिण एशिया में बदलते समीकरण का संकेत है। विदेश मंत्री एस जयशंकर और एनएसए अजीत डोभाल के साथ उनकी वार्ता पर पाकिस्तान की नजर है। भारत सरकार मानवीय मदद भेज रही है, पर तालिबान सरकार को मान्यता देने पर अभी कोई फैसला नहीं हुआ है। भारत, अफगानिस्तान में रुकी हुई परियोजनाओं को फिर से शुरू करने और चाबहार पोर्ट को जोड़ने की दिशा में काम कर सकता है।

नई दिल्ली पहुंचे तालिबान के विदेश मंत्री
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। गुरुवार (9 अक्टूबर) को सुबह नई दिल्ली एयरपोर्ट पर तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी की आगवानी विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव (पाकिस्तान, अफगानिस्तान व ईरान) आनंद प्रकाश ने की। कभी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की तरफ से प्रतिबंधित आतंकवादियों की सूची में शामिल मुत्तकी की यह पहली भारत यात्रा तालिबान को लेकर दक्षिण एशिया में बदलते समीकरण को बता रहा है। अगस्त, 2021 में काबुल पर तालिबान के कब्जे तक मुत्तकी और उनके दूसरे तमाम सहयोगी पाकिस्तान के सबसे करीबी सहयोगी रहे और पाकिस्तान हुक्मरानों के इशारे पर भारत व अमेरिका के हितों के खिलाफ काम करते रहे। आज तालिबान सरकार के संबंध पाकिस्तान के बेहद खराब हो चुके हैं। तालिबान भारत के साथ संबंध बेहतर करने को तत्पर है। ऐसे में अगले दो दिनों तक नई दिल्ली में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर, एनएसए अजीत डोभाल के साथ विदेश मंत्री मुत्तकी की होने वाली वार्ता पर पाकिस्तान की भी पैनी नजर रहेगी।
क्या तालिबान सरकार को मिलेगी मान्यता:
देश के प्रमुख रणनीतिक सलाहकार ब्रह्मा चेलानी का मानना है कि, “मुत्तकी की भारत यात्रा पाकिस्तान के लिए एक बड़ा झटका है। लेकिन मुत्तकी का स्वागत करना तालिबान को मान्यता देने की दिशा में भारत के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।” मुत्तकी की इस यात्रा के साथ ही यह सवाल उठ गया है कि क्या भारत सरकार अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को मान्यता देगी। भारत तालिबान सरकार के साथ संपर्क में है। वहां मानवीय आधार पर मदद भेजी जा रही है। विदेश सचिव विक्रम मिसरी काबुल की यात्रा कर चुके हैं। वहां स्थित भारतीय दूतावास का काम भी शुरु हो गया है। इसके बावजूद भारत ने सरकार को मान्यता नहीं दी है। संयुक्त राष्ट्र भी तालिबान सरकार को वैध नहीं मानता। इस वजह से भारत में तालिबान की तरफ से निर्धारित झंडे को मान्यता नहीं दी जाती। नई दिल्ली स्थित अफगानिस्तान के दूतावास के बाहर अभी भी पूर्व अशरफ घनी सरकार के कार्यकाल के अफगानी झंडे का ही इस्तेमाल किया जाता है।
पाकिस्तान क्यों है परेशान:
तालिबान ने जब काबुल की सत्ता पर कब्जा जमाया तो उसका सबसे ज्यादा स्वागत पाकिस्तान ने किया। पाकिस्तान सरकार को यह लगा कि तालिबान के साथ मिल कर वह भारत के हितों के खिलाफ काम कर सकेगा। भारत को भी यह डर था कि कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ाने के लिए पाकिस्तान सेना तालिबानी लड़ानों का इस्तेमाल कर सकती है। लेकिन वर्ष 2022 के अंत में ही पाकिस्तान और तालिबान के रिश्तों मे दरार आनी शुरू हो गई। दोनों देशों की सेनाओं के बीच सीमा पर कई बार झड़पें भी हुई हैं। भारत ने आपरेशन सिंदूर के दौरान जब पाकिस्तान के सैन्य ठिकानों पर हमला किया तो पाक ने यह दुष्प्रचार किया कि भारत के कई मिसाइल अफगानिस्तान में गिरे हैं। तालिबान ने बगैर किसी देरी का इसका खंडन किया। पाकिस्तान हमेशा से भारत और अफगानिस्तान के बीच अच्छे संबंधों से डरता रहा है। यही वजह है कि तालिबान के विदेश मंत्री की इस यात्रा के दौरान होने वाली घोषणाओं पर पाकिस्तान की पैनी नजर रहेगी।
आर्थिक मदद के लिए झोली खोलेगा भारत:
मान्यता दी जाए या नहीं लेकिन एक बात तय है कि भारत की तरफ से अफगानिस्तान के लोगों की मदद के लिए कुछ बड़ी घोषणाएं अगले कुछ दिनों में की जाएंगी। भारत की पहले से ही यह नीति रही है कि वह अफगानिस्तान की जनता की भलाई के लिए काम करेगा। तालिबान ने जब काबुल पर कब्जा किया उस समय समुचे अफगानिस्तान में भारत की मदद से कम से कम 500 छोटी-बड़ी परियोजनाओं पर काम चल रहा था। इनमें बिजली, संचार, समाजिक विकास आदि से जुड़ी परियोजनाएं थी जिनकी वजह से वहां के लोगों के बीच भारत की बहुत ही अच्छी छवि बनी है। इन परियोजनाओं पर काम बंद है। वर्ष 2021 में भारत ने काबुल में 20 लाख लोगों को पीने का साफ पानी देने के लिए 24 करोड़ डॉलर की मदद से एक परियोजना शुरू करने का भी ऐलान किया था, इसका काम भी अधूरा है। उम्मीद है कि तालिबान की मदद से इन सभी पर काम शुरू होगा।
तालिबान नहीं, अफगानिस्तान की है भारत को जरूरत
भारत के रणनीतिक हितों के लिए तालिबान की नहीं बल्कि अफगानिस्तान की जरूरत है। ऐसे में यह भारत के कूटनीतिक हित में है कि चाहे वहां की जो भी सरकार हो, उसके साथ संबंध बेहतर रखे जाए। भारत भविष्य में ईरान में चाबहार पोर्ट को अफगानिस्तान से जोड़ने की मंशा रखता है। इसके जरिए भारतीय उत्पादों को बहुत ही आसानी से पहले मध्य एशियाई देशों और उसके बाद यूरोपीय बाजार में भेजा जा सकेगा। चाबहार पोर्ट का इस्तेमाल मध्य एशिया के वह सभी देश कर सकते हैं जिनके पास अपना बंदरगाह नहीं है। यही नहीं तालिबान से बेहत संबंध होने की वजह से पाकिस्तान उनका इस्तेमाल भारत के खिलाफ नहीं कर सकेगा।
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