Suryakant Tripathi 'Nirala' Death Anniversary: अपनी हर काव्य रचना में मन को गुदगुदाते-झकझोरते हैं निराला
Suryakant Tripathi Nirala Death Anniversary आज हिंदी के महान कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की पुण्यतिथि है। निराला जी की रचनाओं का केंद्र सदैव राष्ट्रीयता के ओतप्रोत रहा है। ओजस्वी लेखन ने छायावादी युग के प्रमुख स्तंभ निराला को कालजयी बना दिया।
जागो फिर एक बार
प्यार जगाते हुए हारे सब तारे तुम्हें,
अरुण पंख तरुण-किरण
खड़ी खोल रही द्वार
जागो फिर एक बार
मलय बाजपेयी। साहित्य साधना के अनेक रास्तों से होकर गुजरने वाली रचनाओं में छंदमुक्त काव्य, भाषागत कोमलता, लयबद्धता और ओजस्वी लेखन ने छायावादी युग के प्रमुख स्तंभ सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' को कालजयी बना दिया। साहित्य की हर विधा से समाज को जाग्रत करने वाले निराला जी की रचनाओं का केंद्र सदैव राष्ट्रीयता के ओतप्रोत रहा है। 'वर दे वीणावादिनी वर दे' में देश के लिए प्रार्थना का स्वर, 'बादल राग' में हृदय का प्रफुल्लित भाव हो या 'दीन' में उत्पीड़न सहने की व्यथा, अपनी हर काव्य रचना में निराला जी मन को गुदगुदाते-झकझोरते हैं।
'होगी जय, होगी जय, हे पुरुषोत्तम नवीन' कह महाशक्ति राम के वदन में हुई लीन। यहां 'राम की शक्ति पूजा' कविता की चर्चा विशेष तौर पर जरूरी है, वह इसलिए, क्योंकि एक ऐसी लंबी कविता जिसमें संवेदना की अनंत गहराई है तो महाकाव्य रामायण के संक्षिप्त सार के साथ ही महाशक्ति देवी दुर्गा के विराट रूप की अर्चना और और साधना का दृश्यांकन भी। आगे बढ़ती कविता के शब्द भावविभोर करते हैं। सामाजिक रूढ़िवादिता को दर्शाती, धर्म और विधर्म के मध्य कश्मकश की कहानियां हों या 'रवीन्द्र कविता कानन' में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर के काव्य की विस्तृत समीक्षा, निराला जी की पैनी और निष्पक्ष आलोचक दृष्टि के दर्शन होते हैं तो बच्चों के लिए भी प्रेरक कहानियां वे लिखते हैं।
सामाजिक तानेबाने को दर्शाते उनके उपन्यास और रुचिकर लेखों का संग्रह 'चाबुक' निराला जी को असाधारण साहित्य साधना के सर्वोच्च शिखर पर ले जाता है। निराला जी के लेखों का तीसरा संग्रह बने 'चाबुक' के नौ लेख काव्य और गद्य साहित्य को साथ में संजोकर हिंदी साहित्य की अनमोल धरोहर बनते हैं। अपने सामाजिक उपन्यास 'अप्सरा' के 'वक्तव्य' में निराला जी बेहद स्पष्ट तौर पर कहते हैं, 'मैंने किसी विचार से अप्सरा नहीं लिखी, किसी उद्देश्य की पुष्टि इसमें नहीं। अप्सरा स्वयं मुझे जिस-जिस ओर ले गई, मैं दीपक-पतंग की तरह उसके साथ रहा। अपनी ही इच्छा से अपने मुक्त जीवन-प्रसंग का प्रांगण छोड़ प्रेम की सीमित पर, द्रढ़ बाहों में सुरक्षित, वैध रहना उसने पसंद किया...।'
अपने दूसरे उपन्यास 'अलका' में निराला जी 'वेदना' से स्वर मुखर करते हैं। अलका में किसानों की दयनीय स्थिति और स्वाधीनता आंदोलन की पृष्ठभूमि का चित्रण है, तो तत्कालीन संपन्न समाज के निहित स्वार्थ का उल्लेख भी। निराला जी के कथानक साहित्य 'लिली' की आठ कहानियां मन को झंकृत कर देती हैं, तो 'सुकुल की बीबी' की चार कहानियां कला साहित्य का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। जीवनकाल में अनेक विषमताओं के बावजूद निराला जी का साहित्य सृजन मन की असीम जिज्ञासा को शांत करते हुए साहित्य जगत को प्रकाशित कर रहा है। यह सच है- तुमने जो दिया दान-दान वह, हिंदी के हित का अभिमान वह, जनता का जन-ताका ज्ञान वह, सच्चा कल्याण वह अथच है...यह सच है!
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