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    सूरत: पिता हीरा उद्योगपति; बेटे जय को घड़ियों का शौक; अब 18 वर्षीय युवक लेगा दीक्षा

    Updated: Mon, 17 Nov 2025 05:58 PM (IST)

    सूरत के हीरा व्यापारी जतिन मेहता के 18 वर्षीय बेटे जश मेहता सांसारिक मोह त्यागकर दीक्षा लेंगे। 23 नवंबर को सूरत में दीक्षा कार्यक्रम आयोजित है। जश को महंगी घड़ियों और गहनों का शौक था, पर अब वे भक्ति योगाचार्य आचार्य भगवंत यशोविजयसूरि महाराज साहेब के सानिध्य में संयम का मार्ग अपनाएंगे। उन्होंने भौतिक सुखों की नश्वरता का अनुभव किया है।

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    हीरा व्यापारी का बेटा लेगा दीक्षा।

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हीरा नगरी सूरत में उद्योगपति जतिन मेहता के 18 वर्षीय बेटे जश मेहता ने दीक्षा लेने और इस सांसारिक सुखों से दूर संयमित जीवन जीने का फैसला किया है। 23 नवंबर को सूरत के पाल इलाके में एक भव्य दीक्षा कार्यक्रम का आयोजन किया गया है।

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    एक भव्य दीक्षा कार्यक्रम में, जश मेहता भक्ति योगाचार्य आचार्य भगवंत यशोविजयसूरि महाराज साहेब की पावन निश्रा में दीक्षा ग्रहण करेंगे और संयम पथ पर चलेंगे। जश को महंगे फोन, ब्रांडेड चश्मे और खासकर हीरे जड़ित घड़ियों और गहनों का बहुत शौक था। ढाई लाख रुपये की घड़ी पहनने वाले जश ने अब यह सब छोड़कर संयम पथ अपना लिया है।

    कहां दीक्षा लेंगे जश मेहता?

    सूरत शहर को हीरों की नगरी के नाम से जाना जाता है, सूरत शहर में प्रसिद्ध हीरा उद्योगपति जतिन मेहता के 18 वर्षीय पुत्र जश मेहता दीक्षा लेकर संयम पथ पर निकलेंगे। सूरत के पाल क्षेत्र में 23 नवंबर को भव्य दीक्षा कार्यक्रम का आयोजन किया गया है, जहां जश मेहता भक्ति योगाचार्य आचार्य भगवंत यशोविजयसूरी महाराज साहेब की पावन धाम में दीक्षा लेंगे और संयम पथ पर निकलेंगे।

    पिता हीरा व्यापारी

    जश मेहता का पालन-पोषण एक बेहद अमीर परिवार में हुआ था। उनके पिता एक हीरा व्यवसायी हैं। जश को महंगे ब्रांडेड चश्मे, लेटेस्ट आईफोन और क्रिकेट का बहुत शौक था। लेकिन उनका सबसे बड़ा शौक असली हीरे के गहने और लग्जरी घड़ियां पहनना था। जश के पास डेढ़ लाख रुपये की असली हीरे की घड़ी थी और वह अपने हीरे के सोने के गहने पहनते थे।

    दसवीं की बोर्ड परीक्षा में उसे 75% जैसे अच्छे अंक मिले थे। लेकिन भौतिक पढ़ाई से ज़्यादा उसका मन आध्यात्मिक शांति की ओर लगा। बोर्ड की पढ़ाई के बाद, वह महाराज साहब के संपर्क में आया और उनके साथ विहार में रहने लगा। इस दौरान उसे जीवन की क्षणभंगुरता और भौतिक सुखों की नश्वरता का एहसास हुआ। जिन आलीशान घड़ियों और गहनों से उसे कभी प्यार था, वे अब उसे बंधन लगने लगे।

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