संवेदनशील मामलों में दिन-प्रतिदिन सुनवाई की प्रथा पर लौटें अदालतें, सुप्रीम कोर्ट ने दिए फास्ट ट्रायल के लिए निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने संवेदनशील मामलों में दिन-प्रतिदिन सुनवाई की प्रथा को पुन अपनाने की आवश्यकता बताई है। कोर्ट ने त्वरित सुनवाई के अधिकार को अनुच्छेद-21 में निहित बताते हुए हाई कोर्टों को जिला अदालतों के लिए एक समिति गठित करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि आपराधिक मुकदमों की निरंतर सुनवाई न करना न्याय में देरी का कारण है।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दिन-प्रतिदिन की सुनवाई की प्रथा, विशेष रूप से संवेदनशील मामलों में, को पूरी तरह से खत्म कर दिया गया है। अदालतों को इसे पुन: अपनाना चाहिए। कोर्ट ने त्वरित सुनवाई के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद-21 में अंतर्निहित मानते हुए कहा कि सभी हाई कोर्टों को संबंधित जिला अदालतों के लाभ के लिए इस मुद्दे पर गंभीरता से चर्चा करने के वास्ते एक समिति गठित करनी चाहिए।
जस्टिस जेबी पार्डीवाला और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि दिन-प्रतिदिन के आधार पर सुनवाई करने की पुरानी प्रथा पर लौटने के लिए, पुलिस के कामकाज के तरीके सहित वर्तमान सामाजिक, राजनीतिक और प्रशासनिक परिदृश्य को समझना आवश्यक है। शीर्ष अदालत का यह आदेश सीबीआइ की उस याचिका पर आया है, जिसमें पिछले वर्ष सितंबर में दुष्कर्म के मामले में कलकत्ता हाई कोर्ट द्वारा एक आरोपित को जमानत देने के आदेश को चुनौती दी गई थी।
आपराधिक मुकदमों की निरंतर सुनवाई न करना न्याय में देरी का कारण- कोर्ट
पीठ ने कहा कि न्याय प्रणाली में देरी के लिए जिम्मेदार प्रमुख कारकों में से एक है आपराधिक मुकदमों की निरंतर सुनवाई न करना। पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में भी अदालतें विवेकाधिकार का इस्तेमाल करके साक्ष्यों पर 'टुकड़ों में' विचार करती हैं और मामले प्रभावी रूप से कई महीनों या वर्षों तक चलते रहते हैं।
'अदालत को दिन-प्रतिदिन सुनवाई जारी रखनी चाहिए'
पीठ ने कहा कि कानूनी स्थिति यह है कि एक बार गवाहों के बयान के बाद संबंधित अदालत को दिन-प्रतिदिन सुनवाई जारी रखनी चाहिए, जब तक कि सभी गवाहों के बयान न हो जाए, सिवाय उन गवाहों के जिन्हें सरकारी वकील ने छोड़ दिया हो।
पीठ ने कहा कि हाई कोर्टों के मुख्य न्यायाधीश अपने प्रशासनिक पक्ष को संबंधित जिला न्यायपालिकाओं को एक परिपत्र जारी करने का निर्देश दे सकते हैं, जिसमें अन्य बातों के अलावा इस बात का भी जिक्र किया गया हो कि प्रत्येक जांच या सुनवाई शीघ्रता से की जानी चाहिए। पीठ ने कहा कि मामले की सुनवाई 31 दिसंबर तक पूरी की जाए।
(समाचार एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)
यह भी पढ़ें- 'अदालतें वसूली के लिए रिकवरी एजेंट नहीं', SC ने किस मामले में की सख्त टिप्पणी?
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।