मेस के खाने से खुश नहीं था सैनिक, साथियों पर AK-47 से चलाई थी गोली; सु्प्रीम कोर्ट ने सजा को रखा बरकरार
पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट ने आईपीसी की धारा 307 और शस्त्र अधिनियम 1959 की धारा 27 के तहत अपराध से आरोपी को बरी करने में महत्वपूर्ण पहलुओं की अनदेखी की। ...और पढ़ें

पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मेस के खाने से असंतुष्ट होकर सहकर्मियों पर एके-47 से गोली चलाने वाले सेना के कांस्टेबल की सजा को बरकरार रखा है। पीठ ने हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के 2014 के फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें आरोपी को बरी कर दिया गया था।
न्यायालय ने कहा कि तथ्यों और परिस्थितियों से पता चलता है कि आरोपी ने गुस्से में एके-47 से अंधाधुंध गोलीबारी की थी। वह अच्छी तरह जानता था कि गोलियां किसी सहकर्मी को घायल कर सकती हैं, जिससे मौत भी हो सकती है।
हाईकोर्ट ने कर दिया था बरी
पीठ ने 17 अप्रैल के फैसले में कहा कि ऐसा लगता है कि घटना को आरोपी कांस्टेबल ने सहकर्मियों को शारीरिक चोट पहुंचाने के इरादे से अंजाम दिया। पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट ने आईपीसी की धारा 307 और शस्त्र अधिनियम, 1959 की धारा 27 के तहत अपराध से आरोपी को बरी करने में महत्वपूर्ण पहलुओं की अनदेखी की।
पीठ ने कहा कि 20 मार्च 2013 के ट्रायल कोर्ट के फैसले और आदेश को बहाल किया जाता है। हालांकि, शीर्ष अदालत ने सजा में संशोधन किया है। साथ ही कहा कि धारा 307 के तहत कोई न्यूनतम सजा निर्धारित नहीं है। न्याय के हित में हम सजा को सात साल के कठोर कारावास के स्थान पर पहले से ही काटे गए कारावास (लगभग एक वर्ष पांच महीने) तक कम करते हैं।

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