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    माता या पिता की ईमानदारी बच्चे की कस्टडी तय करने का आधार नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला

    Updated: Wed, 30 Apr 2025 12:03 AM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि अलग-अलग रह रहे माता-पिता के बीच बच्चों की कस्टडी को लेकर कानूनी लड़ाई में बच्चों का कल्याण सर्वोपरि है। कोर्ट ने कहा कि बच्चे की कस्टडी तय करते समय माता या पिता का सबसे उच्च दर्जे की ईमानदारी प्रेम और स्नेह दिखाना आधार नहीं हो सकता। जानिए क्या है पूरा मामला?

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    कस्टडी को लेकर माता-पिता की लड़ाई में बच्चे का कल्याण सर्वोपरि।

    पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि अलग-अलग रह रहे माता-पिता के बीच बच्चों की कस्टडी को लेकर कानूनी लड़ाई में बच्चों का कल्याण सुनिश्चित करना सर्वोपरि है। जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि बच्चे की कस्टडी के मामलों में, सर्वोपरि ध्यान बच्चे के कल्याण पर होना चाहिए। माता या पिता का सबसे उच्च दर्जे की ईमानदारी, प्रेम और स्नेह दिखाना, बच्चे की कस्टडी तय करने का आधार नहीं हो सकता।

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    सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी केरल हाई कोर्ट के 11 दिसंबर 2024 को दिए गए आदेश को खारिज करते हुए आई है। हाई कोर्ट ने हर माह 15 दिन के लिए दो नाबालिग बच्चों की अंतरिम कस्टडी पिता को सौंपी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे बच्चों की भलाई के लिए हानिकारक और अव्यवहारिक बताया।

    जानिए क्या है पूरा मामला? 

    सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला हाई कोर्ट के आदेश को मां द्वारा चुनौती देने पर आया। अदालत पहुंचे इस जोड़े की शादी 2014 में हुई 2016 में एक लड़की का जन्म हुआ। मनमुटाव के चलते 2017 से दोनों अलग रहने लगे, लेकिन 2021 में हुई छोटी सुलह के बाद 2022 में एक लड़के के रूप में दूसरे बच्चे का जन्म हुआ। पिता ने 2024 में तिरुवनंतपुरम के एक पारिवारिक न्यायालय में बच्चे की कस्टडी की मांग की। अदालत ने पिता को सीमित मुलाकात का अधिकार दिया। बाद में हाई कोर्ट ने 15 दिनों के लिए इस शर्त पर कस्टडी दी कि एक फ्लैट किराये पर ले, आया रखे और बच्चों के लिए परिवहन का इंतजाम करे।

    सुप्रीम कोर्ट ने खारिज किया HC का आदेश

    इस आदेश को खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि बच्चों की शारीरिक-मानसिक भलाई के लिए अंतरिम व्यवस्था ना तो संभव है और ना ही अनुकूल। इसमें बच्चों के विकास से जुड़ी जरूरतों, विशेषरूप से स्थायित्व, पोषण और भावनात्मक सुरक्षा पर ध्यान देने में अदालत विफल रही। हालांकि, हम इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि पिता भी बहुत प्रेम करने वाला है जिसने बच्चों को बड़ा करने में बराबरी और असरदार भूमिका निभाने की इच्छा दिखाई। इसलिए उसे कस्टडी नहीं देना न तो स्वीकार्य है और न ही न्यायोचित और यह परिवार को जोड़ने की सभी संभावनाएं खत्म कर सकता है।

    पीठ ने कहा हर दूसरे शनिवार और रविवार को पिता के पास बेटी की कस्टडी होगी और इन दिनों वह एक काउंसलर की मौजूदगी में बेटे से भी चार घंटे के लिए मिल सकता है। पिता हर मंगलवार और गुरुवार को 15 मिनट के लिए बेटे से वीडियो काल में बात कर सकता है।

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