सुप्रीम कोर्ट करेगा राजद्रोह कानून की समीक्षा, केंद्र सरकार से मांगा जवाब; पढ़ें क्या कहती है BNS की धारा 152
सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय न्याय संहिता 2023 के तहत लाए गए राजद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने पर विचार करने के लिए सहमति दी है। अदालत ने केंद्र सरकार से इस मामले पर जवाब मांगा है। अदालत ने इस याचिका को राजद्रोह संबंधी आइपीसी की धारा 124ए को चुनौती देने वाली एक लंबित याचिका से जोड़ दिया है।

पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को 2023 में भारतीय न्याय संहिता के तहत लाए गए राजद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने पर विचार करने के लिए सहमति व्यक्त की है और इसी आधार पर केंद्र सरकार से जवाब तलब किया है।
जनहित याचिका में राजद्रोह संबंधी नए कानून को उपनिवेशी युग के कानून का उत्तराधिकारी ठहराया है। प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई, जस्टिस के. विनोद चंद्रन और एनवी अंजरिया की खंडपीठ ने विशिष्ट सेवा पदक से सम्मानित सेवानिवृत्त मेजर जनरल एसजी वोंबटकेरे की दायर जनहित याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया है। इसमें भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 152 (राजद्रोह) की वैधता को चुनौती दी गई है।
अदालत ने यह भी आदेश दिया कि इस याचिका को एक लंबित याचिका से जोड़ा जाए जो राजद्रोह संबंधी आइपीसी की पूर्ववर्ती धारा 124ए को चुनौती देती है, जिसे बीएनएस की ओर से नए रूप और स्वरूप में फिर से संयोजित किया है।
क्या है बीएनएस की धारा 152?
बीएनएस की धारा 152 ''भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कार्य'' से संबंधित है। इसमें कहा गया है, ''जो कोई भी जानबूझकर शब्दों द्वारा चाहे वह बोले गए हों या लिखित, या संकेतों द्वारा, या दृश्य प्रतिनिधित्व द्वारा, या इलेक्ट्रानिक संचार द्वारा या वित्तीय साधनों के उपयोग द्वारा, या अलगाव या सशस्त्र विद्रोह या उपद्रवी गतिविधियों को उत्तेजित करता है या उसका प्रयास करता है, या अलगाववादी गतिविधियों की भावनाओं को प्रोत्साहित करता है या भारत की संप्रभुता, एकता व अखंडता को खतरे में डालता है तो उसे आजीवन कारावास या सात साल तक कैद होगी और जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी होगा।''
याचिका में इस प्रविधान को ''पुन: ब्रांडेड संस्करण'' कहा गया, जो पहले जुलाई, 2022 में सुप्रीम कोर्ट की विधायी समीक्षा के लिए स्थगित किया गया था। नया कानून एक नए लेबल के तहत राजद्रोह को पुनस्र्थापित करता है।
जुलाई 2022 में पूर्व सीजेआइ एनवी रमना की अध्यक्षता में तीन जजों की पीठ ने आइपीसी के तहत राजद्रोह प्रविधान को स्थगित किया था। याचिका में कहा गया कि बीएनएस का प्रविधान संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 19(1)(क) (वाणी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और 21 (जीवन का अधिकार) का उल्लंघन करता है।

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