Exclusive: बीएनएस की धारा 113 का दुरुपयोग रोकने के लिए UP शासन ने जारी किए दिशा-निर्देश, 'असहमति-आलोचना आतंकवाद नहीं'
शासन ने बीएनएस की धारा 113 के दुरुपयोग को रोकने के लिए निर्देश जारी किए हैं। आलोचना विरोध या सामाजिक आंदोलनों में भाग लेना आतंकवाद नहीं माना जाएगा। मुकदमा दर्ज करने से पहले पुलिस अधीक्षक स्तर के अधिकारी को साक्ष्यों का परीक्षण करना होगा। राजनीतिक मतभेद या वैचारिक असहमति को राष्ट्रविरोधी नहीं माना जाएगा और संदेह के आधार पर कोई कार्रवाई नहीं होगी।

सतीश पांडेय, जागरण गोरखपुर। आलोचना करना, सरकार की नीतियों का विरोध करना या सामाजिक आंदोलनों में भाग लेना आतंकवाद नहीं माना जाएगा। भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की नई धारा 113 को लेकर शासन ने स्पष्ट निर्देश जारी कर यह सुनिश्चित कर दिया है कि लोकतांत्रिक अधिकारों की आड़ में कानून का दुरुपयोग न हो।
यह फैसला ऐसे वक्त में आया है जब इस धारा को लेकर संशय था- कहीं यह व्यापक अधिकारों के दमन का उपकरण न बन जाए। लेकिन अब शासन के ताजा आदेश से तस्वीर साफ हो गई है कि धारा 113 सिर्फ उन्हीं लोगों पर लागू होगी जिनकी गतिविधियां वाकई देश की एकता, संप्रभुता और सुरक्षा के विरुद्ध होंगी।
बीएनएस की धारा 113 आतंकवादी कृत्य को परिभाषित करती है। इसमें ऐसे कार्यों को शामिल किया गया है जो देश में भय, अराजकता, अव्यवस्था फैलाते हैं या सरकार को नीतिगत निर्णयों से रोकने के लिए हिंसा या धमकी का सहारा लेते हैं। इन कृत्यों के लिए मृत्युदंड या उम्रकैद तक की सजा का प्रविधान है। लेकिन असहमति, आलोचना या विचारों का मतभेद जो लोकतंत्र की आत्मा हैं, उन्हें आतंकवाद की श्रेणी में डालने की आशंका को लेकर अब गृह विभाग ने स्पष्टीकरण जारी कर दिया है।
गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव संजय प्रसाद द्वारा जारी निर्देश में कहा गया है कि अब धारा 113 के तहत मुकदमा दर्ज करने से पहले जिले के पुलिस अधीक्षक स्तर के अधिकारी का सभी साक्ष्यों का गहन परीक्षण करना अनिवार्य होगा।
वे तब ही अनुमति देंगे जब स्पष्ट रूप से यह प्रमाणित हो कि आरोपित की गतिविधियां वास्तव में आतंकवादी प्रकृति की हैं। निर्देश में यह भी स्पष्ट किया गया है कि राजनीतिक मतभेद, सामाजिक आंदोलन, या धार्मिक कार्यक्रमों में भाग लेना आतंकवाद नहीं है।
न ही वैचारिक असहमति को किसी राष्ट्रविरोधी मानसिकता का प्रमाण माना जाएगा। सरकार का मानना है कि इस धारा के कठोर दंड प्रविधान (मृत्युदंड या आजीवन कारावास) के चलते यह जरूरी है कि किसी भी मामले में जल्दबाजी या राजनीतिक दुर्भावना से ग्रसित होकर केस न दर्ज किया जाए। हर केस में साक्ष्यों का गहन मूल्यांकन होगा। संदेह या अनुमान के आधार पर कोई कार्रवाई नहीं की जा सकेगी।
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