सुप्रीम कोर्ट सहमति से यौन संबंध की कानूनी आयु घटाने पर करेगा विचार, 18 से 16 साल करने की मांग
सुप्रीम कोर्ट किशोरों के लिए सहमति से यौन संबंध की कानूनी उम्र 18 से घटाकर 16 करने के मुद्दे पर सुनवाई करेगा जिसकी तिथि 12 नवंबर तय की गई है। अदालत ने कहा कि मामले की सुनवाई लगातार होगी। केंद्र सरकार ने वर्तमान कानूनी उम्र का बचाव किया है जबकि न्यायमित्र इंदिरा जयसिंह ने उम्र घटाने का समर्थन किया है।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट किशोरों के लिए सहमति से यौन संबंध की कानूनी आयु 18 वर्ष से घटाकर 16 वर्ष करने के मुद्दे पर सुनवाई करेगा। इसके लिए उसने 12 नवंबर की तिथि तय की है। कोर्ट ने कहा कि वह इस मामले की सुनवाई टुकड़ों में करने के बजाय लगातार करेगा। जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ इस मामले पर सुनवाई कर रही है।
केंद्र ने सहमति से यौन संबंध की कानूनी आयु 18 वर्ष निर्धारित करने का बचाव करते हुए कहा कि यह निर्णय नाबालिगों को यौन शोषण से बचाने के उद्देश्य से जानबूझकर, सुविचारित और सुसंगत नीति के तहत लिया गया है। केंद्र ने एडिशनल सालिसिटर जनरल ऐश्वर्य भाटी के जरिये लिखित निवेदन में कहा कि किशोर प्रेम संबंधों की आड़ में सहमति की उम्र को कम करना या अपवाद पेश करना न केवल कानूनी रूप से अनुचित, बल्कि खतरनाक भी होगा।
सहमति से यौन संबंध की उम्र घटाने की मांग
इस मामले में न्यायमित्र व वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कानूनी आयु 18 वर्ष से घटाकर 16 वर्ष करने का आग्रह किया है। जयसिंह ने अपने लिखित निवेदन में यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पाक्सो) अधिनियम, 2012 और आइपीसी की धारा-375 के तहत 16 से 18 वर्ष की आयु के किशोरों से जुड़ी यौन गतिविधियों को अपराध घोषित करने का विरोध किया है। जयसिंह ने बुधवार को सुनवाई के दौरान एक ऐसी स्थिति का उल्लेख किया, जिसमें 16 से 18 वर्ष की आयु का एक किशोर सहमति से संबंध बनाता है और उस पर मुकदमा चलाया जाता है।
उन्होंने कहा कि 'निपुण सक्सेना एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य' मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अलग-अलग मुद्दों पर फैसला सुनाया था। जयसिंह ने कहा कि 'निपुण सक्सेना मामला' और यौन अपराधों से निपटने में आपराधिक न्याय प्रणाली के आकलन पर स्वत: संज्ञान का मामला पीठ के समक्ष एक साथ सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है।
मौजूदा आयु को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए- केंद्र
पीठ ने कहा, 'हम इसे समग्र रूप से देखेंगे। हम मुद्दों को अलग-अलग नहीं करेंगे। इस पर सुनवाई शुरू होने दीजिए, फिर देखेंगे।' केंद्र ने कहा है कि सहमति की मौजूदा वैधानिक आयु को सख्ती से और समान रूप से लागू किया जाना चाहिए। सुधार या किशोरों की स्वायत्तता के नाम पर इस मानक में कोई भी छूट बाल संरक्षण कानून में हुई प्रगति को दशकों पीछे धकेलने जैसा होगा।
साथ ही पोक्सो और भारतीय न्याय संहिता जैसे कानूनों के निवारक चरित्र को कमजोर करेगी। कानून को थोड़ा भी शिथिल करने से सहमति की आड़ में बाल तस्करी और बच्चों के साथ दुर्व्यवहार के मामलों में बढ़ोतरी हो जाएगी। लिहाजा विधायी मंशा के अनुरूप सहमति की वर्तमान उम्र कायम रखनी चाहिए।
(समाचार एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)
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