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    अंतर-धार्मिक विवाह के कारण धर्मांतरण को विनियमित करने वाले कानूनों को चुनौती, 2 जनवरी को SC में होगी सुनवाई

    By AgencyEdited By: Devshanker Chovdhary
    Updated: Tue, 27 Dec 2022 05:48 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट दो जनवरी को को उन याचिकाओं पर सुनवाई करेगा जिनमें अंतर-धार्मिक विवाह के कारण धर्मांतरण को विनियमित करने वाले विवादास्पद राज्य कानूनों को चुनौती दी गई है। सीजेआइ डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ मामले की सुनवाई करेगी।

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    अंतर-धार्मिक विवाह के कारण धर्मांतरण को विनियमित वाले कानूनों को चुनौती, 2 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई।

    नई दिल्ली, पीटीआइ। सुप्रीम कोर्ट दो जनवरी को को उन याचिकाओं पर सुनवाई करेगा, जिनमें अंतर-धार्मिक विवाह के कारण धर्मांतरण को विनियमित करने वाले विवादास्पद राज्य कानूनों को चुनौती दी गई है। सीजेआइ डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ अधिवक्ता विशाल ठाकरे और एक गैर सरकारी संगठन 'सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस' द्वारा दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करेगी।

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    मुस्लिम संगठन ने भी दी थी दलील

    बता दें कि सुप्रीम कोर्ट मुस्लिम संगठन 'जमीयत उलेमा-ए-हिंद' की एक याचिका परभी सुनवाई करेगा, जिसे उसने पिछले साल याचिकाओं में पक्षकार बनने की अनुमति दी थी। जमीयत उलेमा ए हिंद ने दावा किया था कि देश भर में इन कानूनों के तहत बड़ी संख्या में मुसलमानों को परेशान किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड की गई रिपोर्ट के अनुसार, अब तक केंद्र या किसी भी राज्य द्वारा कोई जवाब दाखिल नहीं किया गया है, जिन्हें इस मामले में पक्षकार बनाया गया है।

    इससे पहले मामले में क्या हुआ था?

    सुप्रीम कोर्ट ने 17 फरवरी, 2021 को एनजीओ को अपनी लंबित याचिका में हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश को पक्षकार बनाने की अनुमति दी थी, जिसके द्वारा उसने अंतर-धार्मिक विवाहों के कारण धर्मांतरण को विनियमित करने वाले कुछ विवादास्पद राज्य कानूनों को चुनौती दी थी। शीर्ष अदालत ने 6 जनवरी, 2021 को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुछ विवादास्पद नए कानूनों की जांच करने पर सहमति व्यक्त की थी, जो इस तरह के विवाहों के कारण होने वाले धर्मांतरण को नियंत्रित करते हैं।

    एनजीओ ने पिछली सुनवाई के दौरान कहा था कि हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश दोनों को उसकी याचिका में पक्षकार बनाया जाना चाहिए क्योंकि उन्होंने भी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की तर्ज पर कानून बनाए हैं। विवादास्पद यूपी अध्यादेश न केवल अंतर-धार्मिक विवाह बल्कि सभी धर्म परिवर्तन से संबंधित है और किसी भी व्यक्ति के लिए विस्तृत प्रक्रियाओं को निर्धारित करता है, जो दूसरे धर्म में परिवर्तित होना चाहता है।

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