Supreme Court: आरक्षण कार्यपालिका के कार्य का हिस्सा, हाई कोर्ट ऐसा आदेश कैसे पारित कर सकता है?
सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार को राहत देते हुए ओबीसी सूची पर कलकत्ता हाई कोर्ट के रोक के फैसले को पलट दिया। चीफ जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने कहा कि प्रथम दृष्टया हाई कोर्ट का आदेश त्रुटिपूर्ण लगता है। कोर्ट ने कहा कि आरक्षण कार्यपालिका का हिस्सा है और इसके लिए कानून की आवश्यकता नहीं है।

पीटीआई, नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल सरकार को राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को 17 जून के कलकत्ता हाई कोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी, जिसमें अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की संशोधित सूची के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी गई थी।
चीफ जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ ने राज्य की अपील पर सुनवाई करते हुए कहा, ''प्रथम दृष्टया, हाई कोर्ट का आदेश त्रुटिपूर्ण प्रतीत होता है।''
हाई कोर्ट ने अंतरिम रोक लगाने का दिया था आदेश
गौरतलब है कि हाई कोर्ट की एक खंडपीठ ने 17 जून को राज्य सरकार की ओर से ओबीसी-ए और ओबीसी-बी श्रेणियों के तहत 140 उपवर्गों को आरक्षण के संबंध में जारी अधिसूचनाओं पर अंतरिम रोक लगाने का आदेश दिया था।
हाई कोर्ट ने 31 जुलाई तक अंतरिम रोक लगाते हुए निर्देश दिया था कि राज्य सरकार की ओर से ओबीसी श्रेणियों के संबंध में आठ मई से 13 जून के बीच जारी कार्यकारी अधिसूचनाएं उस तिथि तक प्रभावी नहीं होंगी।
चीफ जस्टिस ने क्या कहा?
बहरहाल, चीफ जस्टिस गवई ने सुझाव दिया कि यदि पक्षकार इच्छुक हों तो वह हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से अनुरोध करेंगे कि वे इस मुद्दे पर छह सप्ताह के भीतर निर्धारित समय-सीमा में निर्णय लेने के लिए एक नई पीठ गठित करें।
'हाई कोर्ट कैसे पारित कर सकता है ऐसा आदेश?'
इससे पहले, पीठ ने राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की दलीलों पर गौर किया और विवादित फैसले के कुछ हिस्सों का हवाला देते हुए कहा, ''यह आश्चर्यजनक है। हाई कोर्ट ऐसा आदेश कैसे पारित कर सकता है? आरक्षण कार्यपालिका के कार्य का हिस्सा है। इंदिरा साहनी (मंडल फैसले) से ही यह स्थापित कानून है।''
आदेश पर रोक लगाने वाली याचिका का विरोध
पीठ ने कहा कि आरक्षण प्रदान करने के लिए कार्यकारी निर्देश पर्याप्त हैं और इसके लिए कानून बनाने की आवश्यकता नहीं है। प्रतिवादियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार और गुरु कृष्णकुमार ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की याचिका का विरोध किया।
कृष्णकुमार ने कहा कि राज्य कार्यकारी आदेश द्वारा आरक्षण प्रदान करने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन कुछ निर्णय ऐसे भी हैं जो कहते हैं कि यदि इसे नियंत्रित करने वाला कोई विधायी ढांचा है तो कानून की कठोरता का पालन किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि नई ओबीसी सूची बिना किसी आंकड़े के तैयार की गई थी।
हालांकि, सिब्बल ने दलील दी कि नई सूची राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की ओर से किए गए एक नए सर्वेक्षण और रिपोर्ट के आधार पर तैयार की गई थी।
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