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    गोल्डन आवर कैशलेस इलाज स्कीम में देरी पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को फटकार लगाई, कहा- आपको कानूनों की परवाह नहीं

    सुप्रीम कोर्ट ने सड़क दुर्घटना पीड़ितों के इलाज के लिए कैशलेस स्कीम बनाने में देरी पर केंद्र सरकार को फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि हाईवे तो बन रहे हैं लेकिन इलाज की सुविधा के अभाव में लोग मर रहे हैं। गोल्डन आवर के दौरान इलाज सुनिश्चित करने के लिए बनाई जाने वाली स्कीम को एक सप्ताह में लागू करने का आदेश दिया गया है।

    By Agency Edited By: Chandan Kumar Updated: Mon, 28 Apr 2025 10:55 PM (IST)
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    सुप्रीम कोर्ट ने सड़क दुर्घटना पीड़ितों के त्वरित इलाज के लिए कैशलेस स्कीम लागू करने का आदेश दिया।

    पीटीआई, नई दिल्ली। वाहन दुर्घटना पीड़ितों के इलाज की कैशलेस स्कीम बनाने में देरी के लिए केंद्र सरकार की खिंचाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि आप बड़े-बड़े हाईवे बना रहे हैं, लेकिन सुविधाओं के अभाव में लोग मर रहे हैं।

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    जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि आठ जनवरी के उसके आदेश के बावजूद केंद्र ने न तो निर्देश का अनुपालन किया और न ही समय बढ़ाने की मांग की। कोर्ट ने कहा कि मोटर वाहन अधिनियम, 2022 की धारा-164ए तीन वर्षों के लिए एक अप्रैल, 2022 को प्रभावी हुई थी, लेकिन दावेदारों को अंतरिम राहत देने के लिए केंद्र ने स्कीम बनाकर इसे लागू नहीं किया।

    सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराजगी, पूछा- स्कीम कब बनेगी?

    पीठ ने सड़क परिवहन मंत्रालय के सचिव से कहा, "आपने अवमानना की है। आपने समय मांगने की भी परवाह नहीं की। चल क्या रहा है? हमें बताइए कि आप स्कीम कब बनाएंगे? आपको अपने ही कानूनों की परवाह नहीं है। तीन वर्ष पहले यह प्रविधान अस्तित्व में आया था। क्या आप वास्तव में सामान्य जन के कल्याण के लिए काम कर रहे हैं?"

    "आप इतने बेपरवाह कैसे हो सकते हैं? क्या आप इस प्रविधान के प्रति गंभीर नहीं हैं? लोग सड़क दुर्घटनाओं में मर रहे हैं। आप बड़े-बड़े हाईवे बना रहे हैं, लेकिन लोग मर रहे हैं क्योंकि वहां कोई सुविधा नहीं है। गोल्डन आवर में इलाज के लिए कोई स्कीम ही नहीं है। इतने सारे हाईवे बनाने का क्या मतलब है?" सुप्रीम कोर्ट

    गौरतलब है कि मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा-2(12-ए) के तहत गोल्डन आवर घायल होने के बाद उस एक घंटे को कहते हैं जिसमें समय से इलाज प्रदान कर व्यक्ति की जान बचाई जा सकती है। शीर्ष अदालत ने मंत्रालय के सचिव को स्कीम में देरी का कारण बताने के लिए समन किया था। सचिव ने सोमवार को बताया कि स्कीम का मसौदा तैयार किया गया था, लेकिन जनरल इंश्योरेंस काउंसिल (जीआइसी) की ओर से आपत्तियों के बाद इसमें बाधा आ गई।

    जीआइसी की आपत्ति से अटका स्कीम का मसौदा

    उन्होंने कहा, 'जीआइसी सहयोग नहीं कर रही है। उसकी दलील है कि उसे दुर्घटना में शामिल वाहन की बीमा पालिसी की स्थिति जांचने की अनुमति मिलनी चाहिए।' शीर्ष अदालत ने इस बात को रिकार्ड पर दर्ज किया कि गोल्डन आवर के लिए स्कीम सोमवार से एक हफ्ते के भीतर प्रभावी की जाएगी। साथ ही निर्देश दिया कि अधिसूचित स्कीम को नौ मई तक रिकार्ड पर रखा जाए और मामले की सुनवाई 13 मई तक के लिए स्थगित कर दी।

    सुप्रीम कोर्ट ने आठ जनवरी को केंद्र सरकार को कानून के अनुसार गोल्डन आवर अवधि में मोटर वाहन पीडि़तों के कैशलेस इलाज के लिए केंद्र को स्कीम बनाने के निर्देश दिए थे। पीठ ने अधिनियम की धारा-162(2) का हवाला दिया था और सरकार को आदेश दिया था कि वह 14 मार्च तक स्कीम बनाए जो दुर्घटना पीड़ितों को तत्काल मेडिकल केयर उपलब्ध कराकर कई जीवन बचा सके।

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