SC ने बिहार मतदाता सूची से हटाए गए 3.66 लाख मतदाताओं का मांगा ब्योरा, अदालत ने कहा- SIR चुनाव आयोग का विशेषाधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण के बाद हटाये गए 3.66 लाख मतदाताओं का ब्योरा माँगा है। कोर्ट ने भ्रम की स्थिति बताते हुए पूछा कि क्या अंतिम सूची में जोड़े गए नाम मसौदा सूची से हटाए गए नाम हैं या नए। आयोग ने कहा कि ज्यादातर नए नाम हैं। मामले पर गुरुवार को फिर सुनवाई होगी।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को चुनाव आयोग से बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया के बाद तैयार अंतिम मतदाता सूची से बाहर किए गए 3.66 लाख मतदाताओं का ब्योरा मांगा।
कोर्ट ने कहा कि इस मामले में भ्रम की स्थिति है और सवाल किया कि क्या अंतिम सूची में जोड़े गए नाम मसौदा सूची से हटाए गए नाम हैं या फिर नए नाम हैं। इस पर चुनाव आयोग ने कहा कि ज्यादातर नए नाम हैं।
सुनवाई के दौरान जब पांच राज्यों में एसआईआर की बात उठी तो शीर्ष अदालत ने कहा कि आप क्यों चाहते हैं कि हर चीज में कोर्ट हस्तक्षेप करे। एक राज्य में एसआइआर शुरू हो चुका था, वहां का मुद्दा था तो कोर्ट ने सुना। एसआइआर कराना चुनाव आयोग का विशेषाधिकार है और आयोग को निर्देश जारी करना हस्तक्षेप होगा।
गुरुवार को फिर होगी सुनवाई
मामले पर कोर्ट गुरुवार को फिर सुनवाई करेगा। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जोयमाल्या बागची की पीठ के समक्ष सुनवाई के दौरान एडीआर के वकील प्रशांत भूषण एवं अन्य याचिकाकर्ताओं के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने लोगों के नाम मतदाता सूची से हटाने और ब्योरा नहीं देने का आरोप लगाया।
भूषण ने कहा कि आयोग अपने ही दिशानिर्देशों का पालन नहीं कर रहा। जो अंतिम सूची जारी हुई है, उसमें कहा गया है कि 3.66 लाख मतदाताओं के नाम आपत्ति के चलते हटाए गए हैं, लेकिन इनके कोई आदेश जारी नहीं किए गए। आयोग ने ब्योरा सार्वजनिक नहीं किया है।जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि अगर 3.66 लाख मतदाताओं में से उन नामों की सूची दी जाती है कि जिनके नाम हटाए गए हैं, लेकिन आदेश नहीं मिला तो कोर्ट आयोग को आदेश देगा।
कोर्ट ने पूछा- किनके नाम हटे हैं
भूषण ने कहा कि उन्होंने अर्जी दाखिल की है जिस पर कोर्ट ने आयोग को नोटिस जारी किया। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि हलफनामा दाखिल कर स्पष्ट रूप से बताएं कि किनके नाम हटे हैं, लेकिन उन्हें आदेश नहीं मिले हैं। कोर्ट तभी आदेश देगा, जब तथ्य देखकर संतुष्ट होगा। इस तरह बात को घुमा-घुमाकर अंतहीन जांच नहीं हो सकती। वरिष्ठ वकील मनिंदर सिंह ने कहा कि जिन दो लोगों को कोर्ट में पेश किया गया था कि उनका नाम हटा दिया गया है, लेकिन ब्योरा नहीं दिया गया।
इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि उनमें से एक के बारे में उन्हें मालूम है, लेकिन वह कुछ कहना नहीं चाहते। पीठ ने कहा कि चुनाव आयोग गुरुवार तक सूची से बाहर किए गए मतदाताओं के बारे में जानकारी प्रस्तुत करेगा। सभी के पास मसौदा मतदाता सूची है और अंतिम सूची भी 30 सितंबर को प्रकाशित हो चुकी है, इसलिए तुलनात्मक विश्लेषण के माध्यम से आवश्यक डाटा प्रस्तुत किया जा सकता है।
'मतदाताओं की पहचान हो उजागर'
पीठ ने कहा कि अंतिम सूची में मतदाताओं की संख्या से ऐसा प्रतीत होता है कि मसौदा सूची से यह संख्या बढ़ी है, इसलिए भ्रम से बचने के लिए जोड़े गए मतदाताओं की पहचान उजागर की जानी चाहिए। इस पर चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि जोड़े गए अधिकांश नाम नए मतदाताओं के हैं और कुछ पुराने मतदाता भी हैं।
उन्होंने कहा कि सूची से बाहर किए गए किसी भी मतदाता ने शिकायत नहीं की है। द्विवेदी ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति जिसका नाम हटाया गया है, उसके बारे में आदेश जारी किया गया है। शीर्ष अदालत ने अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर भी नोटिस जारी किया, जिसमें मतदाता सूची में नाम जोड़ने के लिए उपयोग किए जाने वाले फार्म-6 के बारे में स्पष्टीकरण मांगा गया था।
'आधार नागरिकता का प्रमाण पत्र नहीं'
उपाध्याय के वकील विजय हंसारिया ने कहा कि आधार के बारे में आदेश स्पष्ट करके घोषित किया जाए कि आधार नागरिकता की प्रमाणपत्र नहीं माना जाएगा, और न ही निवास या जन्मतिथि का प्रमाणपत्र माना जा सकता है। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि वह पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि आधार नागरिकता का प्रमाणपत्र नहीं है। लेकिन जब हंसारिया ने निवास और जन्मतिथि के बारे में भी स्पष्ट करने का अनुरोध किया तो कोर्ट ने आयोग को नोटिस जारी कर एक सप्ताह में जवाब मांगा।
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