सुप्रीम कोर्ट ने कहा- चैरिटी का उद्देश्य मतांतरण नहीं होना चाहिए, प्रलोभन खतरनाक चीज
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक बार फिर धोखा लालच दबाव में जबरन मतांतरण को गंभीर मुद्दा बताते हुए चिंता जताई है। कोर्ट ने सोमवार को जबरन मतांतरण को खतरनाक बताते हुए इसे संविधान के विरुद्ध कहा। File Photo

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर धोखा, लालच, दबाव में जबरन मतांतरण को गंभीर मुद्दा बताते हुए चिंता जताई है। कोर्ट ने सोमवार को जबरन मतांतरण को खतरनाक बताते हुए इसे संविधान के विरुद्ध कहा। कोर्ट ने कहा कि अगर किसी की मदद करना चाहते हैं तो करें, लेकिन ये मतांतरण के लिए नहीं हो सकता। चैरिटी का उद्देश्य मतांतरण नहीं होना चाहिए। प्रलोभन खतरनाक चीज है। यह बहुत गंभीर मुद्दा है और संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है। अगर मदद का उद्देश्य अच्छा है तो उसका स्वागत है, लेकिन इसके पीछे की मंशा पर विचार किए जाने की जरूरत है। कोर्ट ने यह भी कहा कि भारत में रहने वालों को यहां की संस्कृति के अनुरूप काम करना होगा।
कोर्ट ने जबरन मतांतरण पर रोक की मांग वाली याचिका पर सुनवाई के विरोध को खारिज करते हुए कहा, 'हम यहां समाधान तलाशने के लिए हैं, यह बहुत ही गंभीर मुद्दा है। हम यहां यह देखने के लिए नहीं हैं कि कौन सही है या गलत है, बल्कि चीजों को ठीक करने के लिए हैं।' साथ ही मामले को 12 दिसंबर को फिर सुनवाई पर लगाने का निर्देश देते हुए केंद्र सरकार को राज्यों से सूचना एकत्र करने के लिए एक हफ्ते का समय दे दिया। ये निर्देश और टिप्पणियां जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रवि कुमार की पीठ ने भाजपा नेता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई के दौरान सोमवार को दिए। सोमवार को मामला जब सुनवाई पर आया तो केंद्र सरकार की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि केंद्र सरकार अभी राज्यों से सूचना एकत्र कर रही है और इसमें एक सप्ताह का समय और लगेगा।
इसके साथ ही मेहता ने गुजरात सरकार की ओर से दाखिल हलफनामे का जिक्र किया। गुजरात के जबरन मतांतरण पर रोक लगाने वाले कानून के उपबंधों पर हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी। मेहता ने कहा कि हाई कोर्ट के उस रोक आदेश के विरुद्ध गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल कर रखी है। पीठ ने कहा कि गुजरात सरकार की याचिका फिलहाल उनके सामने सुनवाई के लिए नहीं है। उस याचिका को सुनवाई के लिए लगाने का निर्णय प्रधान न्यायाधीश लेंगे। पीठ ने मेहता से कहा कि हम पहले भी कह चुके हैं कि यह बहुत गंभीर मामला है। किसी व्यक्ति का किसी धर्म में आस्था रखना ठीक है, लेकिन इसके लिए प्रलोभन बहुत खतरनाक है।
पीठ ने कहा कि पिछली सुनवाई पर एक हस्तक्षेप अर्जीकर्ता के वकील संजय हेगड़े ने मतांतरण पर कुछ कहा था। हेगड़े ने कहा, उन्होंने कहा था कि मतांतरण के कई कारण हो सकते हैं। जैसे लोग मतांतरित होते हैं क्योंकि वे मानते हैं कि ईश्वर उन्हें कुछ देगा। हेगड़े ने कहा कि उन्हें पक्ष रखने का समय दिया जाए। हेगड़े एक ईसाई संस्था की ओर से पेश हुए। लेकिन सालिसिटर जनरल मेहता ने कहा कि प्रलोभन देकर मतांतरण नहीं कराया जा सकता। पीठ ने पक्षकारों से यह भी कहा कि वे इस मामले को प्रतिकूल न लें। ये बहुत गंभीर मुद्दा है और संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है।
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