Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    'पूर्व में हुई सजा किसी को मृत्युदंड देने का एकमात्र आधार नहीं हो सकती', सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा?

    सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के दोषी की मृत्यु दंड की सजा को उम्रकैद में बदल दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि पूर्व में हुई सजा किसी को फांसी की सजा देने का एकमात्र आधार नही हो सकती। शीर्ष अदालत ने यह बात उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में छह लोगों की हत्या से जुड़े मामले में कही।

    By Jagran NewsEdited By: Achyut KumarUpdated: Sat, 11 Nov 2023 09:54 PM (IST)
    Hero Image
    सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के दोषी की मृत्यु दंड की सजा उम्रकैद में बदली

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि दोषी का आपराधिक इतिहास अपने आप में मौत की सजा देने का एकमात्र आधार नहीं हो सकता। कोर्ट ने इसके साथ ही दोषी मदन की मौत की सजा उम्रकैद में तब्दील कर दी है। हालांकि, शीर्ष अदालत ने फैसले में कहा है कि दोषी मदन की समय पूर्व रिहाई की अर्जी पर 20 वर्ष का वास्तविक कारावास काट लेने से पहले विचार नहीं किया जाएगा।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    छह लोगों की हत्या से जुड़ा है मामला

    उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर का यह मामला छह लोगों की हत्या का था जिसमें सत्र अदालत ने तीन दोषियों को सजा सुनाई गई थी, ईश्वर, मदन और सुदेश पाल। सत्र अदालत ने ईश्वर को उम्रकैद की सजा दी थी और मदन व सुदेश पाल को मृत्युदंड दिया था, जबकि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुदेश पाल की मौत की सजा उम्रकैद में तब्दील कर दी थी, लेकिन मदन का मृत्युदंड बरकरार रखा था।

    सुप्रीम कोर्ट में मदन और सुरेश ने की अपील

    मदन और सुदेश पाल दोनों ही सजा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, जिस पर न्यायमूर्ति बीआर गवई, बी.वी. नागरत्ना और प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने गत नौ नवंबर को यह फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने मदन की अपील आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए उसकी मौत की सजा उम्रकैद में तब्दील कर दी है, जबकि दूसरे दोषी सुदेश पाल की अपील खारिज करते हुए उसकी उम्रकैद की सजा पर अपनी मुहर लगा दी है। हालांकि, कोर्ट ने दोषी दोनों को माना है।

    सुप्रीम कोर्ट ने मदन की फांसी की सजा उम्रकैद में तब्दील करते हुए कहा है कि हाई कोर्ट ने समान साक्ष्यों के आधार पर पर विचार करने के बाद मदन को मृत्युदंड दिया, जबकि दोषी सुदेश पाल की अपील आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए मृत्युदंड को उम्रकैद में तब्दील कर दिया था।

    यह भी पढ़ें: Stubble Burning: 'क्यों न पंजाब में धान की खेती ही खत्म कर दी जाए...' पराली जलाने के बढ़ते मामलों पर सुप्रीम कोर्ट की नसीहत

    'हाई कोर्ट ने एक आधार पर किया अंतर'

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट का फैसला देखने से पता चलता है कि हाई कोर्ट ने सुदेश पाल और मदन के मामले में सिर्फ एक आधार पर अंतर किया है और वह ये है कि मदन को एक अन्य मामले में पहले ही उम्रकैद की सजा हो चुकी है।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह राजेन्द्र प्रल्हादराओ वासनिक के पूर्व केस में पहले ही कह चुका है कि किसी को मृत्युदंड की सजा देते वक्त उसका पूर्व आचरण यानी पूर्व आपराधिक इतिहास विचार का मुद्दा नहीं होता। स कोर्ट ने कहा कि इस मौजूदा मामले में चश्मदीद के बयानों के आधार पर सभी दोषियों की भूमिका समान थी। इन चीजों के देखते हुए उनका मानना है कि हाई कोर्ट का मदन की मौत की सजा पर मुहर लगाने और सुदेश पाल को उम्रकैद की सजा देने का फैसला न्यायोचित नहीं है।

    स्वामी श्रद्धानंद के केस का जिक्र

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर हाई कोर्ट के फैसले को बनाए रखा जाएगा तो यह बहुत ही विसंगत स्थितियां पैदा करेगा। जिसमें दोषी सुदेश पाल के पास निश्चित समय तक सजा भुगतने के बाद नियमों के तहत समय पूर्व रिहाई पर विचार का अधिकार होगा, जबकि मदन को मृत्युदंड का सामना करना होगा। शीर्ष अदालत ने मदन के मामले में कहा कि यह मामला बीच का रास्ता अपनाने का है, जैसा कि स्वामी श्रद्धानंद के केस में सुप्रीम कोर्ट कह चुका है।

    यह भी पढ़ें: 'लोगों की प्रार्थना शायद भगवान ने सुन ली...' सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा; दिल्ली में प्रदूषण पर अब 21 नवंबर को सुनवाई

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मदन को मिले मृत्युदंड को उम्रकैद में तब्दील करना और 20 साल तक वास्तविक कारावास की सजा देना न्याय के हित में होगा। यह कहते हुए कोर्ट ने मदन की अपील आंशिक रूप से स्वीकार कर लीऔर उसका मृत्युदंड उम्रकैद जिसमें 20 वर्ष का निश्चित कारावास कर दिया है।

    14 अक्टूबर 2023 का मामला

    सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में मृत्युदंड पर विचार करते हुए अन्य भी कई पहलुओं पर गौर किया है और जेल में मदन के आचरण पर प्रोबेशन आफीसर की रिपोर्ट भी मंगा कर देखी थी। छह लोगों की हत्या का यह मामला 14 अक्टूबर 2003 का है, जिसमें कथित तौर पर राजनीतिक और पारिवारिक दुश्मनी के चलते गोलीबारी हुई थी।