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सुप्रीम कोर्ट ने कहा, गैर-समझौतावादी अपराधों में सुलह को रिकॉर्ड में लेने की अनुमति नहीं दी सकती

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आइपीसी की धारा 307 गैर-समझौतावादी है। इसलिए इसके तहत पक्षों के बीच हुए समझौते को रिकॉर्ड में लेने की अनुमति नहीं दी सकती है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Thu, 25 Jul 2019 12:25 AM (IST)Updated: Thu, 25 Jul 2019 12:25 AM (IST)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, गैर-समझौतावादी अपराधों में सुलह को रिकॉर्ड में लेने की अनुमति नहीं दी सकती

नई दिल्ली, आइएएनएस। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि गैर-समझौतावादी अपराधों में पक्षों के बीच हुए समझौते को रिकॉर्ड में लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

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जस्टिस आर भानुमति और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने मंजीत सिंह मामले में पंजाब व हरियाणा हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए यह टिप्पणी की। हाई कोर्ट ने मंजीत सिंह को भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) की धारा 307 (हत्या का प्रयास) और 324 (जानबूझकर चोट पहुंचाना) के तहत अपराधी ठहराते हुए सजा सुनाई थी।

परंतु, पीठ ने कहा कि गैर समझौतावादी अपराध में सजा की मात्रा तय करते समय पक्षों के बीच हुए समझौते को ध्यान में रखना प्रासंगिक है। इसके बाद पीठ ने सजा को घटाकर मंजीत सिंह द्वारा काटी गई जेल की सजा की अवधि के बराबर कर दिया। मंजीत सिंह 17 महीने कैद की सजा काट चुका था, जबकि उसे दोनों धाराओं के तहत क्रमश: पांच साल और दो साल कैद की सजा हुई थी।

पीठ ने 22 जुलाई को दिए अपने आदेश में कहा कि मंजीत सिंह द्वारा शीर्ष अदालत में दाखिल अपील के लंबित रहने के दौरान पक्षों के बीच समझौता हो गया। लेकिन आइपीसी की धारा 307 गैर समझौतावादी है। इसलिए इसके तहत पक्षों के बीच हुए समझौते को रिकॉर्ड में लेने की अनुमति नहीं दी सकती है। 


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