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    'बिना स्टांप वाले समझौते में भी प्रभावी होगा मध्यस्थता का प्रविधान' सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय पीठ का फैसला

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की सात सदस्यीय संविधान पीठ ने बुधवार को कहा कि बिना स्टांप वाले या अपर्याप्त स्टांप वाले दो पक्षों के बीच हुए समझौते में मध्यस्थता का प्रविधान लागू करने योग्य है। इस फैसले के जरिये सुप्रीम कोर्ट ने इसी वर्ष अप्रैल में पांच सदस्यीय पीठ द्वारा सुनाए गए फैसले को निरस्त कर दिया है। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने सर्वसम्मत फैसला सुनाया।

    By AgencyEdited By: Nidhi AvinashUpdated: Wed, 13 Dec 2023 07:47 PM (IST)
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    'बिना स्टांप वाले समझौते में भी प्रभावी होगा मध्यस्थता का प्रविधान' (Image: ANI)

    पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय संविधान पीठ ने बुधवार को कहा कि बिना स्टांप वाले या अपर्याप्त स्टांप वाले दो पक्षों के बीच हुए समझौते में मध्यस्थता का प्रविधान लागू करने योग्य है और इस तरह की खामी सुधार योग्य है। इससे समझौता अवैध नहीं हो जाता।

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    इस फैसले के जरिये सुप्रीम कोर्ट ने इसी वर्ष अप्रैल में पांच सदस्यीय पीठ द्वारा सुनाए गए फैसले को निरस्त कर दिया है और इसके कॉरपोरेट एवं समझौता करने वाले पक्षकारों के बीच विवाद सुलझाने के लिए मध्यस्थता प्रविधान वाले अन्य समझौतों पर उल्लेखनीय व दूरगामी प्रभाव होंगे।

    दस्तावेज की वैधता से कोई लेना-देना नहीं

    शीर्ष अदालत ने मैसर्स एनएन ग्लोबल मर्केंटाइल प्राइवेट लिमिटेड बनाम मैसर्स इंडो यूनीक फ्लेम लिमिटेड एवं अन्य के मामले में 3:2 के बहुमत से फैसला सुनाया था कि मध्यस्थता प्रविधान वाले बिना स्टांप या अपर्याप्त स्टांप वाले समझौते लागू करने योग्य नहीं हैं। उक्त फैसले को निरस्त करते हुए प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने सर्वसम्मत फैसला सुनाया और कहा कि समझौते पर स्टांप नहीं होने या अपर्याप्त स्टांप होने का दस्तावेज की वैधता से कोई लेना-देना नहीं है क्योंकि यह दूर करने योग्य खामी है।

    मध्यस्थता न्यायाधिकरण के दायरे में आती है

    जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जेबी पार्डीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा और स्वयं की ओर से फैसला लिखते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि अपर्याप्त स्टांप से समझौता अमान्य (अवैध) या लागू करने के अयोग्य नहीं हो जाता, बल्कि इससे वह साक्ष्य के तौर पर अस्वीकार्य हो जाता है। उन्होंने कहा, 'समझौते की स्टांपिंग से संबंधित कोई भी आपत्ति मध्यस्थता न्यायाधिकरण के दायरे में आती है।'

    फैसला 12 अक्टूबर को सुरक्षित रखा गया 

    पीठ में शामिल जस्टिस संजीव खन्ना ने अलग, लेकिन बाकी न्यायाधीशों से सहमति जताते हुए फैसला लिखा। अदालत का विस्तृत फैसला अभी आना बाकी है। शीर्ष अदालत ने अपनी पांच सदस्यीय पीठ के पूर्व आदेश के पुनर्विचार पर अपने फैसला 12 अक्टूबर को सुरक्षित रख लिया था। पांच सदस्यीय पीठ ने अपने उस फैसले में कहा था कि बिना स्टांप वाले मध्यस्थता समझौते कानून के तहत लागू करने योग्य नहीं हैं।

    शीर्ष अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रखने से पहले डेरियस खंबाटा एवं श्याम दीवान समेत विभिन्न वरिष्ठ वकीलों की दलीलें सुनी थीं।शीर्ष अदालत ने 26 सितंबर को पांच सदस्यीय पीठ द्वारा सुनाए गए फैसले की शुद्धता पर पुनर्विचार का मुद्दा सात सदस्यीय पीठ को संदर्भित किया था।

    18 जुलाई को शीर्ष अदालत ने जारी किया नोटिस

    यह आदेश प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने उस सुधारात्मक याचिका पर विचार करते हुए जारी किया था जिसमें पांच सदस्यीय पीठ द्वारा 25 अप्रैल को सुनाए गए फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत का मुद्दा उठाया गया था। 18 जुलाई को शीर्ष अदालत ने सुधारात्मक याचिका पर नोटिस जारी किया था और उसे खुली अदालत में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया था।

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