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    'सिंघम की याद दिला दी', महाराष्ट्र पुलिस स्टेशन में हुई गोलीबारी पर सुप्रीम कोर्ट ने क्यों की ये टिप्पणी

    Updated: Tue, 09 Sep 2025 05:27 AM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के एक आदेश के खिलाफ याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि उल्हासनगर पुलिस स्टेशन में गोलीबारी की घटना उन्हें हिंदी फिल्म सिंघम की याद दिलाती है। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता की बेंच ने कहा कि यह घटना इतनी फिल्मी है कि इस पर एक अलग फिल्म बनाई जा सकती है।

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    पुलिस स्टेशन में फायरिंग पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी।

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। पुलिस स्टेशन में गोलीबारी की घटना से जुड़े एक मामले में आरोपी व्यक्ति को जमानत न देने के बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह मामला उन्हें हिंदी फिल्म 'सिंघम' की याद दिलाता है।

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    न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता की बेंच महाराष्ट्र के उल्हासनगर पुलिस स्टेशन में पिछले साल पूर्व कॉर्पोरेटर और शिवसेना नेता महेश गायकवाड़ पर पूर्व बीजेपी विधायक गणपत गायकवाड़ की गोलीबारी की घटना के आरोपी कुणाल दिलीप पाटिल की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। पाटिल पर गोलीबारी के दौरान महेश गायकवाड़ के बॉडीगार्ड को रोकने का आरोप है।

    'एक अलग फिल्म बनाई जा सकती है'

    बताया जा रहा है कि यह गोलीबारी दो नेताओं के बीच पुरानी दुश्मनी और जमीन के विवाद के कारण हुई। बेंच ने कहा कि यह घटना इतनी फिल्मी है कि इससे एक अलग फिल्म की स्क्रिप्ट बनाई जा सके।

    जस्टिस मेहता ने कहा, "इससे हमें 'सिंघम' फिल्म की याद आ गई। यह एक ऐसी कहानी है जिसका एक टैगलाइन भी हो सकता है।"

    इस बात पर हंसते हुए, पाटिल के वकील सिद्धार्थ दवे ने कहा कि ऐसी कहानी से कुछ सालों में शायद एक फिल्म भी बन जाए।

    कोर्ट ने मांगा सरकार से जवाब

    दवे ने दलील दी कि उनके मुवक्किल उस केबिन के अंदर नहीं था जहां से बीजेपी नेता ने गोली चलाई थी और मूल एफआईआर में उनका नाम भी नहीं था।

    उन्होंने आगे कहा कि पाटिल की भूमिका अन्य सह-आरोपियों जैसी ही थी, जिन्हें इस मामले में जमानत मिल चुकी है। न्यायालय ने आरोपी की जमानत याचिका पर महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा।

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