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    सावरकर के नाम का दुरुपयोग रोकने की मांग वाली याचिका खारिज, CJI गवई बोले- ये मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं

    Updated: Tue, 27 May 2025 09:14 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने विनायक दामोदर सावरकर के नाम के दुरुपयोग को रोकने की याचिका खारिज कर दी। याचिका में सावरकर के नाम को प्रतीक और नाम (अनुचित प्रयोग रोकथाम) कानून के तहत शामिल करने की मांग की गई थी। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं हुआ है।

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    पंकज पांडियन पिछले 30 साल से सावरकर पर शोध कर रहे हैं।

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को विनायक दामोदर सावरकर के नाम का दुरुपयोग रोकने की मांग वाली याचिका पर विचार करने से इन्कार करते हुए याचिका खारिज कर दी। याचिका में मांग की गई थी कि सावरकर का नाम प्रतीक और नाम (अनुचित प्रयोग रोकथाम) कानून के तहत शेड्यूल में शामिल किया जाए ताकि उनके नाम का दुरुपयोग न हो।

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    मामले पर सुनवाई के बाद प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और जार्ज आगस्टिन जार्ज मसीह की पीठ ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि इस मामले में याचिकाकर्ता के किसी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं हुआ है और अनुच्छेद 32 के तहत दाखिल याचिका पर तभी विचार हो सकता है जबकि याचिकाकर्ता के किसी मौलिक अधिकार का उल्लंघन हुआ हो। इससे पहले याचिकाकर्ता पंकज पांडियन ने याचिका पर स्वयं बहस करते हुए कहा कि वह 65 वर्ष के हैं और पिछले 30 वर्षों से सावरकर पर शोध कर रहे हैं।

    अनुच्छेद 51 में दिए गए मौलिक कर्तव्यों का हवाला दिया

    पंकज ने कोर्ट से अनुरोध किया कि कोर्ट निर्देश जारी करे कि सावरकर का नाम प्रतीक और नाम (अनुचित प्रयोग) रोकथाम कानून के तहत शेड्यूल में शामिल किया जाए। जब कोर्ट ने याचिकाकर्ता से सवाल किया कि इस मामले में आपको कौन से मौलिक अधिकार का उल्लंघन हुआ है तो याचिकाकर्ता ने संविधान के अनुच्छेद 51 में दिए गए मौलिक कर्तव्यों का हवाला दिया और कहा कि लोकसभा में नेता विपक्ष मेरे मौलिक कर्तव्यों में बाधा नहीं डाल सकते।

    कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी

    याचिकाकर्ता का इशारा लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी की ओर था जिन्होंने पूर्व में सावरकर के बारे में टिप्पणी की थी। और उनके खिलाफ इस बारे में निचली अदालत में मामला भी लंबित है। इस याचिका में पंकज ने लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी को भी पक्षकार बनाया था। साथ ही सरकार को भी पक्षकार बनाया था। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि उसे इस संबंध में सरकार के समक्ष ज्ञापन देना चाहिए। याचिकाकर्ता का कहना था कि वह पहले ही इस संबंध में ज्ञापन दे चुका है लेकिन अंत में कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।

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