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    क्या राजनीतिक दलों में भी लागू होगा POSH Act? याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला

    Updated: Fri, 01 Aug 2025 08:48 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न कानून के दायरे में लाने की मांग पर विचार करने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि यह संसद का मामला है और विधायी नीति का विषय है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को कानून में उपलब्ध उपायों को अपनाने की छूट दी। याचिका में राजनीतिक दलों को आंतरिक जांच कमेटी गठित करने के निर्देश देने की मांग की गई थी।

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    ये आदेश प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और के. विनोद चंद्रन की पीठ ने दिया है।

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को राजनीतिक दलों को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न रोक कानून के दायरे में लाने की मांग पर विचार करने से इनकार कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह मुद्दा संसद के क्षेत्राधिकार में आता है यह विधायी नीति का मामला है कोर्ट इस बारे में आदेश नहीं दे सकता। हालांकि बाद में कोर्ट ने याचिकाकर्ता को कानून में उपलब्ध उपायों को अपनाने की छूट देते हुए याचिका वापस लेने की इजाजत दे दी।

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    ये आदेश प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और के. विनोद चंद्रन की पीठ ने वकील योगमाया एमजी की ओर से दाखिल रिट याचिका पर सुनवाई के दौरान दिए। जैसे ही याचिका सुनवाई पर आयी और याचिकाकर्ता की वकील शोभा गुप्ता ने राजनीतिक दलों पर कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न रोक कानून लागू करने की मांग की तो चीफ जस्टिस गवई ने कहा कि यह मामला विधायिका के कार्यक्षेत्र में आता है। यह संसद का क्षेत्राधिकार है और विधायी नीति का मुद्दा है। इसमें कोर्ट दखल नहीं दे सकता।

    'महिला सांसदों से कहें वो प्राइवेट बिल लाएं...'

    कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि आप सांसदों को बताएं। संसद में कम से कम 25-30 महिला सांसद होंगी उनसे कहें कि वे इस पर प्राइवेट बिल लाएं। वकील ने कहा कि लेकिन संसद इस पर विचार नहीं कर रही है। कहा कि याचिकाकर्ता ने पहले भी याचिका दाखिल की थी तो कोर्ट ने उसे संबंधित अथॉरिटी के पास जाने को कहा था। उसने चुनाव आयोग को ज्ञापन दिया था लेकिन उसे कोई जवाब नहीं मिला जिसके बाद वह सुप्रीम कोर्ट आयी है।

    लेकिन जब कोर्ट ने विधायिका का मुद्दा बताते हुए याचिका पर विचार करने साफ इनकार कर दिया तो वकील ने कहा कि वह कोर्ट स कानून बनाने का आदेश नहीं मांग रहीं हैं। उनकी मांग है कि कोर्ट इस कानून की व्याख्या करे क्योंकि इस संबंध में केरल हाई कोर्ट ने एक फैसला दिया है जिसमें कहा गया है कि राजनीतिक दल कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न कानून के दायरे में नहीं आते।

    वापस ली गई याचिका

    इस दलील पर पीठ ने कहा कि अगर वह हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देना चाहती हैं तो इसके लिए अलग से अपील दाखिल करें। जिसके बाद वकील ने विशेष अनुमति याचिका दाखिल करने की छूट मांगते हुए अपनी याचिका वापस ले ली।

    कोर्ट ने कानून में उपलब्ध उपाय अपनाने की छूट देते हुए याचिका वापस लेने की इजाजत दे दी। याचिका में राजनीतिक दलों को इस कानून के दायरे में लाने की मांग करते हुए कहा गया था कि राजनैतिक दलों को कानून के तहत आंतरिक जांच कमेटी गठित करने के निर्देश दिये जाएं।

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