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    कारोबारी ने गैरकानूनी गिरफ्तारी के खिलाफ दाखिल की थी याचिका, सुप्रीम कोर्ट का सुनवाई करने से इनकार

    Updated: Wed, 31 Dec 2025 10:07 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने हल्द्वानी के एक व्यवसायी की अवैध गिरफ्तारी के खिलाफ दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया। शीर्ष अदालत ने याचिकाक ...और पढ़ें

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    सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करने से किया इनकार (फोटो-पीटीआई)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के हल्द्वानी निवासी एक व्यवसायी की उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा कथित तौर पर की गई अवैध गिरफ्तारी के खिलाफ दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करने से बुधवार को इनकार कर दिया।

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    शीर्ष अदालत ने मामले में हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की अनुमति दे दी। न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की अवकाशकालीन पीठ ने याचिकाकर्ता उमंग रस्तोगी की ओर से पेश हुए अधिवक्ताओं आनंद कुमार और आदित्य गिरि को राहत के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट का रुख करने को कहा।

    दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका लंबित

    पीठ ने इस तथ्य का संज्ञान लिया कि याचिकाकर्ता के पिता की गिरफ्तारी के संबंध में इसी तरह की एक याचिका दिल्ली हाई कोर्ट में लंबित है। शीर्ष न्यायालय ने टिप्पणी की कि आप पहले ही हाई कोर्ट से संपर्क कर चुके हैं। आदर्श रूप से हाई कोर्ट को इस मामले पर भी विचार करना चाहिए। यह आपके लिए उपयुक्त होगा।

    याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकीलों ने दलील दी कि उत्तर प्रदेश पुलिस की बिसरख पुलिस ने हल्द्वानी से प्रतिशोध की भावना से रस्तोगी को लिखित में कारण बताए बिना अवैध रूप से गिरफ्तार किया है। गिरि ने अदालत को बताया कि रस्तोगी और उनका परिवार उत्तराखंड और दिल्ली में रह रहा है। उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा उन्हें लगातार निशाना बनाया जा रहा है।

    पुलिस पर अवैध गिरफ्तारी का आरोप

    वकील ने दावा किया कि रस्तोगी के पिता को 28 नवंबर को दिल्ली से अवैध रूप से गिरफ्तार किया गया था। उन्हें किसी भी मजिस्ट्रेट के सामने पेश किए बिना पांच दिनों तक ग्रेटर नोएडा के बिसरख पुलिस थाने में हिरासत में रखा गया था।

    अधिवक्ता ने पीठ को सूचित किया कि उनके मुवक्किल के पिता की अवैध गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका दिल्ली हाई कोर्ट में लंबित है, जिस पर आठ जनवरी को सुनवाई होनी है। सुप्रीम कोर्ट ने रस्तोगी को उचित अदालत से राहत पाने की स्वतंत्रता देते हुए मामले का निस्तारण कर दिया।

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