न्यायपालिका में AI के उपयोग पर दिशानिर्देश की मांग, सुप्रीम कोर्ट सुनवाई को तैयार
सुप्रीम कोर्ट ने न्यायपालिका में एआई के इस्तेमाल को लेकर दिशानिर्देश बनाने की याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताई है। चीफ जस्टिस गवई ने एआई के खतरों पर चिंता जताई, खासकर सोशल मीडिया पर गलत सूचना फैलाने वाले वीडियो के बारे में। याचिका में एआई के अनियंत्रित उपयोग के खिलाफ चेतावनी दी गई है और न्यायिक कार्यों में इसके इस्तेमाल को नियंत्रित करने के लिए नीति की मांग की गई है।

सुप्रीम कोर्ट। (फाइल फोटो)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने न्यायपालिका में एआई टूल्स के उपयोग को विनियमित करने के लिए दिशानिर्देश बनाने की मांग वाली एक याचिका पर सुनवाई करने पर सहमति व्यक्त की है। शीर्ष अदालत ने सोमवार को उसे दो सप्ताह बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया।
इस दौरान एआई के खतरों पर प्रकाश डालते हुए प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई ने कहा कि उन्हें इंटरनेट मीडिया पर प्रसारित एक रूपांतरित वीडियो के बारे में पता है, जिसमें उनके अदालत कक्ष में जूता फेंकने की कोशिश करने की घटना को गलत तरीके से दिखाया गया है। प्रधान न्यायाधीश गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ के समक्ष याचिकाकर्ता के वकील ने अदालती प्रक्रियाओं में एआई टूल्स के अनियंत्रित उपयोग के खिलाफ चेतावनी देते हुए कहा, ''यह न्यायालय भी एआइ का उपयोग कर रहा है, लेकिन बुराइयां ऐसी हैं..'' इस पर जस्टिस गवई ने कहा, ''हमें इसकी जानकारी है; हमने हम (दोनों) का रूपांतरित वीडियो देखा है।''
याचिका में क्या कहा गया?
अधिवक्ता अभिनव श्रीवास्तव के जरिये दायर याचिका में न्यायिक कार्यों में एआई के उपयोग को नियंत्रित करने के लिए एक नीति की मांग की गई है। याचिका में चेतावनी दी गई है कि जनरेटिव एआइ सिस्टम्स में ''प्रणालीगत पूर्वाग्रह'' समाहित हो सकते हैं और ये ''ब्लैक बॉक्स'' के रूप में काम कर सकती हैं, जिनका इंटरनल लाजिक उनके निर्माताओं के लिए भी अस्पष्ट रहता है। जनरेटिव एआइ का उपयोग समस्या वाला है क्योंकि इसमें डाटाफिकेशन की जटिल प्रक्रिया होती है, जिससे ऐसे शब्द और चित्र उत्पन्न हो सकते हैं जो यूजर्स के मंतव्य को प्रकट नहीं करते।
पीएम मोदी ने भी की सीजेआई से बात
याचिका में कहा गया है कि न्यायपालिका और न्यायिक कार्यों में प्रयुक्त एआई में पूर्वाग्रह से मुक्त डाटा होना चाहिए और डाटा स्वामित्व इतना पारदर्शी होना चाहिए कि हितधारकों की जिम्मेदारी सुनिश्चित हो सके।
गौरतलब है कि छह अक्टूबर को 71 वर्षीय वकील राकेश किशोर ने प्रधान न्यायाधीश के अदालती कक्ष में उन पर जूता फेंकने का प्रयास किया था, जिसके कारण बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने तत्काल प्रभाव से उनका लाइसेंस निलंबित कर दिया। इस घटना की व्यापक निंदा हुई और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी घटना की निंदा करते हुए सीजेआई से बात की थी।

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