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    सुप्रीम कोर्ट का बड़ा सवाल- क्या कोर्ट तय कर सकता है विधेयकों पर समय सीमा? क्या है पूरा मामला

    Updated: Tue, 02 Sep 2025 11:30 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने प्रेसीडेंशियल रिफरेंस पर सुनवाई करते हुए अपनी शक्तियों पर संदेह जताया। न्यायालय ने विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समय सीमा तय करने और समय के भीतर निर्णय न लेने पर स्वतः मंजूरी मान लेने पर सवाल किया। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि वह केवल संवैधानिक प्रश्नों की व्याख्या करेंगे व्यक्तिगत प्रकरणों पर नहीं।

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    सुप्रीम कोर्ट का सवाल क्या कोर्ट तय कर सकता है विधेयकों पर समय सीमा (फाइल फोटो)

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने प्रेसीडेंशियल रिफरेंस पर सुनवाई के दौरान मंगलवार को अपनी ही शक्तियों पर संदेह व्यक्त किया। विधेयकों पर निर्णय के बारे में कोर्ट द्वारा समय सीमा तय करने और समय के भीतर निर्णय न लेने पर डीम्ड एसेंट (स्वत: मंजूरी ) मान लेने पर सवाल किया।

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    शीर्ष अदालत ने विधेयक पर निर्णय लेने के लिए राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए समय सीमा तय करने का समर्थन कर रहे तमिलनाडु की ओर से पेश वकील अभिषेक मनु ¨सघवी से सवाल किया कि अगर समय सीमा का पालन नहीं किया जाता है तो क्या होगा।

    बुधवार को भी बहस जारी रहेगी

    इसके साथ ही कोर्ट ने मंगलवार को ये भी स्पष्ट किया कि वह प्रेसीडेंशियल रिफरेंस में सिर्फ संवैधानिक प्रश्नों की व्याख्या करेंगे, व्यक्तिगत प्रकरणों पर नहीं जाएंगे। बहस बुधवार को भी जारी रहेगी। सुप्रीम कोर्ट में प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ आजकल प्रेसीडेंशियल रिफरेंस पर सुनवाई कर रही है।

    राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने सुप्रीम कोर्ट को 14 संवैधानिक सवाल भेज कर राय मांगी है। राष्ट्रपति ने पूछा है कि जब संविधान में विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए कोई समय सीमा तय नहीं है तो क्या कोर्ट समय सीमा तय कर सकता है।

    मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने तमिलनाडु के मामले में गत आठ अप्रैल को दिए फैसले में राज्य विधानसभा से पास विधेयकों पर निर्णय लेने के संबंध में राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए समय सीमा तय की है। इसके साथ ही कोर्ट ने तमिलनाडु विधानसभा से पारित दस विधेयक जो लंबे समय से राज्यपाल की मंजूरी के इंतजार में लटके हुए थे उन्हें कोर्ट के आदेश से मंजूर घोषित कर दिया था।

    राष्ट्रपति ने मांगी राय

    सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद ही राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट को रिफरेंस भेज कर 14 संवैधानिक सवालों पर राय मांगी है। रिफरेंस में सीधे तौर पर तो गत आठ अप्रैल के आदेश का जिक्र नहीं किया गया है लेकिन जिन प्रश्नों पर कोर्ट से राय मांगी गई है वे सभी सवाल आठ अप्रैल के फैसले में दी गई व्यवस्था के इर्दगिर्द घूमते हैं।

    मंगलवार को जब तमिलनाडु सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने विधेयकों पर राज्यपाल व राष्ट्रपति के निर्णय लेने के लिए समय सीमा तय किये जाने और तय समय में निर्णय न लेने पर डीम्ड एसेंट को सही ठहराया तो कोर्ट ने अपनी ही शक्ति पर संदेह जताते हुए उनसे कई सवाल पूछे। कोर्ट ने सिंघवी से पूछा कि अगर टाइम लाइन का पालन नहीं किया जाता तो क्या होगा।

    विकल्पों पर हो सकता है विचार

    कोर्ट ने ये भी पूछा कि अगर विधेयकों पर कोई कार्रवाई नहीं होती तो क्या कोर्ट डीम्ड एसेंट दे सकता है। क्या कोर्ट को अनुच्छेद 142 के तहत ऐसा आदेश देने का अधिकार है। पीठ के न्यायाधीश जस्टिस विक्रमनाथ ने डीम्ड एसेंट पर पूछा कि क्या कोर्ट राज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में जाकर तीनों विकल्पों विचार कर सकता है।

    सिंघवी ने कोर्ट द्वारा समय सीमा तय करने को जायज ठहराते हुए कहा कि जहां संविधान मौन है वहां कोर्ट शून्यता भर सकता है और आदेश दे सकता है उन्होंने इस संबंध में चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के बारे में दिए गए कोर्ट के फैसले का उदाहरण दिया।

    सिंघवी ने कहा कि राज्यपाल अनिश्चितकाल तक विधेयकों को नहीं रोक सकते अगर ऐसा होगा तो विधेयक मर जाएगा। राज्यपाल सुपर चीफ मिनिस्टर नहीं हो सकते। विधेयक को समाप्त करने की शक्ति सिर्फ कैबिनेट के पास होती है। राज्यपाल ऐसा नहीं कर सकते। अगर बहुमत से कोई गलत बिल भी पास होता है तो कोर्ट उस पर विचार कर सकता है यही शक्तियों का प्रथकीकरण है।

    सिंघवी ने क्या कहा?

    जब सिंघवी ने टाइम लाइन तय करने का समर्थन किया तो चीफ जस्टिस ने कहा कि अलग अलग मामले में अलग तथ्यों के हिसाब से विचार हो सकता है। सभी बिलों के लिए समान समय सीमा कैसे हो सकती है।

    सिंघवी ने कहा कि हर केस के अनुसार तय होने पर समस्या हल नहीं होगी। राज्य हर बार राज्यपाल के मंजूरी रोकने पर कोर्ट आते रहेंगे। पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने भी कहा कि राज्यपाल के पास विधेयकों के बारे में विवेकाधिकार नहीं है।

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