Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    1 उम्मीदवार वाले चुनाव में NOTA का विकल्प क्यों नहीं? सुप्रीम कोर्ट के सवाल पर क्या बोली केंद्र सरकार?

    Updated: Sat, 09 Aug 2025 09:37 AM (IST)

    Supreme Court Questions NOTA सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा है कि निर्विरोध चुनावों में मतदाताओं को नोटा (NOTA) का विकल्प क्यों नहीं दिया जाता। अदालत में दायर याचिका में जनप्रतिनिधि अधिनियम 1961 की धारा 53(2) को चुनौती दी गई है जो निर्विरोध चुनाव की अनुमति देता है। सरकार का कहना है कि नोटा को उम्मीदवार का दर्जा नहीं दिया जा सकता।

    Hero Image
    NOTA पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई। फाइल फोटो

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। चुनाव के दौरान अगर किसी सीट पर सिर्फ एक ही उम्मीदवार खड़ा है, तो चुनाव आयोग उसे निर्विरोध विजेता घोषित कर देता है और फिर उस सीट पर चुनाव नहीं होते हैं। हालांकि, अब सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग की इस प्रक्रिया पर सवाल खड़े किए हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    सुप्रीम कोर्ट में 3 जजों की बेंच जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस एन कोटेश्वर सिंह की बेंच ने मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि निर्विरोध चुनावों में मतदाताओं को NOTA (इनमें से कोई नहीं) का विकल्प क्यों नहीं दिया जाता? इस पर सरकार का कहना है कि NOTA को उम्मीदवार का दर्जा नहीं दिया जा सकता है।

    यह भी पढ़ें- Shashi Tharoor: 'मेलानिया ही बता पाएंगी कोई तरीका...', ट्रंप से जुड़े सवाल पर शशि थरूर ने कसा तंज

    SC में दायर हुई याचिका

    दरअसल इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी। याचिका में जनप्रतिनिधि अधिनियम, 1961 की धारा 53(2) को चुनौती दी गई थी। इसके तहत अगर किसी सीट पर सिर्फ एक ही उम्मीदवार खड़ा है, तो उसे बिना मतदान के निर्विरोध विजेत घोषित किया जा सकता है।

    SC ने पूछा सवाल

    याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा, NOTA पर वोट देने से पहले किसी उम्मीदवार के प्रति गंभीर आक्रोश होना चाहिए। इसके जवाब में चुनाव आयोग का कहना है कि अगर उम्मीदवार के प्रति गहरा आक्रोश है तो लोग स्वतंत्र उम्मीदवार भी खड़ा कर सकते हैं।

    वहीं केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल करते हुए कहा-

    NOTA को किसी उम्मीदवार के बराबरी का दर्जा नहीं दिया जा सकता है और न ही वो जनप्रतिनिधि अधिनियम, 1951 के तहत माना जाता है। NOTA महज एक विकल्प है, जो उम्मीदवार की परिभाषा में फिट नहीं बैठता है।

    केंद्र सरकार ने दिया जवाब

    कानून एंव न्याय मंत्रालय के अनुसार, वोट देने का अधिकार एक सांविधिक अधिकार है, न कि मौलिक अधिकार। वहीं, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) का पक्ष रखते हुए एडवोकेट प्रशांत भूषण ने कहा, राज्यों ने एक कानून अपनाया है, जिसके अनुसार स्थानीय चुनावों में नोटा को किसी उम्मीदवार से अधिक वोट मिलने पर दोबारा चुनाव करवाया जाता है। मगर, लोकसभा चुनाव में यह नियम लागू नहीं होता है।

    यह भी पढ़ें- Kulgam Encounter: कश्मीर के कुलगाम में आतंकियों से मुठभेड़ में दो जवान शहीद, सुरक्षाबलों ने की इलाके की घेराबंदी