SC: कुलपति के खिलाफ यौन उत्पीड़न के मामले को बायोडाटा का हिस्सा बनाएं, सुप्रीम कोर्ट ने दिया निर्देश
सुप्रीम कोर्ट बोला गलती करने वाले को माफ करना उचित हो सकता है लेकिन गलती को भूलना नहीं चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए निर्देश दिया कि एक विश्वविद्यालय के कुलपति पर लगे यौन उत्पीड़न के आरोपों से जुड़ा उसका फैसला उनके बायोडाटा का हिस्सा बनाया जाए ताकि ये उसे हमेशा परेशान करता रहे भले ही शिकायत समयसीमा से बाहर होने के कारण खारिज हो गई हो।

पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि गलती करने वाले को माफ करना उचित हो सकता है, लेकिन गलती को भूलना नहीं चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए निर्देश दिया कि एक विश्वविद्यालय के कुलपति पर लगे यौन उत्पीड़न के आरोपों से जुड़ा उसका फैसला उनके बायोडाटा का हिस्सा बनाया जाए, ताकि ये उसे हमेशा परेशान करता रहे, भले ही शिकायत समयसीमा से बाहर होने के कारण खारिज हो गई हो।
2023 में कुलपति पर केस दर्ज कराया था
जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने शुक्रवार को बंगाल स्थित एक विश्वविद्यालय के एक संकाय सदस्य की याचिका पर यह आदेश पारित किया। संकाय सदस्य ने दिसंबर 2023 में कुलपति पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई थी।
शीर्ष अदालत ने कहा कि कलकत्ता हाई कोर्ट की खंडपीठ ने स्थानीय शिकायत समिति (एलसीसी) के उस फैसले को बहाल करने में कोई कानूनी त्रुटि नहीं की है, जिसमें कहा गया था कि अपीलकर्ता की ओर से शिकायत किए जाने की समय सीमा समाप्त हो चुकी है और शिकायत को खारिज किया जा सकता है।
अपीलकर्ता के खिलाफ जो गलती हुई है
पीठ ने कहा कि गलती करने वाले को माफ करना उचित हो सकता है, लेकिन गलती को भूलना नहीं चाहिए। अपीलकर्ता के खिलाफ जो गलती हुई है, उसकी तकनीकी आधार पर जांच नहीं की जा सकती, लेकिन उसे भूलना नहीं चाहिए।
पीठ ने हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील को खारिज करते हुए कहा कि इस फैसले को प्रतिवादी संख्या एक के बायोडाटा का हिस्सा बनाया जाए, जिसका अनुपालन वह व्यक्तिगत रूप से सुनिश्चित करें।
क्या था मामला
अपीलकर्ता ने दिसंबर 2023 में एलसीसी में कुलपति पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए एक औपचारिक शिकायत दर्ज कराई थी। कथित घटना अप्रैल 2023 में हुई थी, जबकि शिकायत 26 दिसंबर, 2023 को दर्ज कराई गई थी, जो न केवल तीन महीने की निर्धारित समय अवधि से परे थी, बल्कि छह महीने की विस्तार योग्य सीमा अवधि से भी परे थी। एलसीसी द्वारा अपनी शिकायत खारिज होने से व्यथित होकर पीडि़ता ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
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