भिखारियों के आश्रय गृह संवैधानिक जिम्मेदारी, मानवीय परिस्थितियां बनाए रखने में विफलता मौलिक अधिकार का उल्लंघन- SC
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भिखारियों के लिए राज्य द्वारा संचालित आश्रय गृह कोई दान नहीं बल्कि संवैधानिक जिम्मेदारी है। कोर्ट ने आश्रय गृहों में बेहतर जीवन स्तर के लिए निर्देश जारी किए हैं। यह आदेश दिल्ली के सीलमपुर में भिखारियों के आश्रयगृह में हैजा फैलने के बाद आया। कोर्ट ने केंद्र को तीन महीने में दिशानिर्देश तैयार करने का निर्देश दिया है।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भिखारियों के लिए राज्य द्वारा संचालित आश्रय गृह (बेगर्स होम) कोई विवेकाधीन चैरिटी या इच्छा से दिया गया दान नहीं नहीं है, बल्कि यह संवैधानिक जिम्मेदारी है। न्यायालय ने ऐसे आश्रय गृहों में गरिमापूर्ण जीवन स्तर बनाए रखने के लिए कई निर्देश जारी किए। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश दिल्ली के सीलमपुर में भिखारियों के आश्रयगृह में हैजा और बीमारी के मामले के बाद आया है।
न्यायालय ने केंद्र को सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के माध्यम से तीन महीने के भीतर उपरोक्त निर्देशों के कार्यान्वयन को सुविधाजनक बनाने के लिए माडल दिशानिर्देश तैयार करने का निर्देश दिया। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश भिखारियों के लिए बने आश्रयगृहों में सुधारों को लागू करें।
मानवीय परिस्थितियां बनाए रखने में विफलता मौलिक अधिकार का उल्लंघन- कोर्ट
पीठ ने कहा कि ऐसे आश्रयों केंद्रों में मानवीय परिस्थितियां बनाए रखने में विफलता केवल प्रशासन की लापरवाही नहीं है, बल्कि यह सम्मान के साथ जीवन जीने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। राज्य द्वारा संचालित भिखारियों के आश्रय गृह संवैधानिक ट्रस्ट है, न कि कोई न कि किसी की इच्छा पर आधारित दया। इसके संचालन में सांविधानिक नैतिकता यानी स्वतंत्रता, निजता और गरिमापूर्ण जीवन की शर्ते प्रतिबिंबित होनी चाहिए।
सुप्रीम के प्रमुख निर्देश
- भिखारियों के हर आश्रयगृह में लाए जाने वाले प्रत्येक व्यक्ति का चौबीस घंटे के भीतर मेडिकल परीक्षण कराया जाए।
- हर महीने स्वास्थ्य जांच हो और संक्रामक व पानी से फैलने वाली बीमारियों की रोकथाम की व्यवस्था हो।
- महिलाओं या बच्चों को ऐसे गृहों में रखने पर अलग से सुविधाएं दें। भीख मांगते पाए गए बच्चों को भिक्षावृत्ति गृहों में नहीं रखा जाएगा, बल्कि किशोर न्याय बालकों की देखभाल एवं संरक्षण अधिनियम, 2015 के अंतर्गत बाल कल्याण संस्थानों में भेजा जाएगा।
- भिखारियों के आश्रयगृहों में स्वच्छता और साफ-सफाई के न्यूनतम मानक तय कर उसे सख्ती से लागू करें।
- हर दो साल में भिखारियों के आश्रयगृहों का स्वतंत्र और तीसरे पक्ष से आडिट कराएं।-
- भिखारियों के आश्रय गृह में स्वीकृत क्षमता से अधिक लोग न हों ताकि भीड़भाड़ और संक्रामक रोगों के प्रसार को रोका जा सके।
- भोजन की गुणवत्ता और पोषण संबंधी मानकों की जांच के लिए आहार विशेषज्ञ नियुक्त करें।
- भिखारियों के सभी आश्रय गृहों में व्यावसायिक प्रशिक्षण सुविधाएं हों।
- रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करने के लिए सरकारी एजेंसियों, गैर सरकारी संगठनों और निजी संस्थानों के साथ साझेदारी की संभावनाएं तलाशें।
- आश्रय गृहों में रहने वालों को उनके कानूनी अधिकारों के बारे में जानकारी उसी भाषा में दें जिसे वे समझते हैं।
- राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण वकीलों को नियुक्त करें जो हर तीन महीने में कम से कम एक बार भिखारियों के आश्रय गृहों का दौरा करेंगे।
- भिखारियों के आश्रय गृहों के लिए निगरानी समिति गठित करें, जिसमें समाज कल्याण विभाग के अधिकारी, स्वास्थ्य अधिकारी और स्वतंत्र नागरिक समाज के सदस्य शामिल होंगे। निगरानी समिति भिखारियों के आश्रय गृहों की स्थिति पर वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित करेगी।
- राज्य/केंद्र शासित प्रदेश ऐसे प्रत्येक मामले में उचित मुआवजा देंगे जहां ऐसे आश्रय गृहों में रहने वालों की मौत लापरवाही, बुनियादी सुविधाओं की कमी या समय पर चिकित्सा देखभाल प्रदान करने में विफलता के कारण हुई हो। जरूरत होने पर जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ विभागीय और आपराधिक कार्यवाही शुरू की जाएगी।
दिल्ली के लामपुर में भिखारियों के आश्रय गृह में फैल गई थी हैजा बीमारी
शीर्ष कोर्ट ने ये निर्देश उत्तरी दिल्ली जिले के लामपुर स्थित भिखारियों के आश्रयस्थल में पीने और भोजन बनाने के पानी में कोलीफार्म बैक्टीरिया की वजह से कोलेरा और गैस्ट्रोएंटेराइटिस का प्रकोप फैल गया था।
(समाचार एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)
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