दिव्यांगजनों के उपहास पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, सोशल मीडिया दिशा-निर्देशों पर दिया जोर
सुप्रीम कोर्ट ने दिव्यांगजनों का उपहास करने के मामले में केंद्र सरकार से सोशल मीडिया के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने को कहा है। अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी से बोलने की स्वतंत्रता और दूसरों के अधिकारों के बीच संतुलन बनाने के लिए कहा गया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि एक व्यक्ति की स्वतंत्रता से दूसरे के अधिकारों का हनन नहीं होना चाहिए।

पीटीआई, नई दिल्ली। दिव्यांगजनों का उपहास करने पर सख्त कार्रवाई किए जाने की मांग संबंधी मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र की ओर से पेश अटार्नी जनरल आर. वेंकटरमणी से कहा कि वह बोलने एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और दूसरों के अधिकारों एवं कर्तव्यों के बीच संतुलन बनाते हुए इंटरनेट मीडिया संबंधी दिशा-निर्देश तैयार करें।
वेंकटरमणी ने इस मुद्दे पर कोर्ट की सहायता के लिए समय मांगा और कहा कि दिशा-निर्देशों को लागू करने के लिए विस्तृत विचार-विमर्श की आवश्यकता होगी। कोर्ट ने यह भी कहा कि एक व्यक्ति की स्वतंत्रता से दूसरों के अधिकारों का उल्लंघन नहीं होना चाहिए। हालांकि कोर्ट ने दिशा-निर्देशों को लागू करने को सबसे कठिन हिस्सा बताया।
पांच सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर्स कोर्ट में हुए पेश
गौरतलब है कि पांच इंटरनेट मीडिया इंफ्लूएंसर्स - ''इंडियाज गॉट लेटेंट'' के होस्ट समय रैना, विपुल गोयल, बलराज परमजीत सिंह घई, सोनाली ठक्कर उर्फ सोनाली आदित्य देसाई और निशांत जगदीश तंवर मंगलवार को जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जायमाल्या बागची की पीठ के समक्ष एक ऐसे मामले में पेश हुए जिसमें दिव्यांगजनों - स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी और अंधेपन से पीडि़त लोगों का उपहास करने के आरोप में उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई है।
स्वास्थ्य कारणों से सोनाली वर्चुअल माध्यम से हाजिर हुईं। पीठ ने उन्हें दो सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। इसके बाद उन्हें कोई अतिरिक्त समय नहीं मिलेगा। साथ ही, उन्हें अगली सुनवाई पर फिर से व्यक्तिगत रूप से पेश होने का निर्देश दिया गया।
जस्टिस सूर्यकांत ने क्या कहा?
बहरहाल, जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, ''बाजार में कई मुफ्त सलाहकार हैं। उन्हें नजरअंदाज करें। दिशा-निर्देश संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप होने चाहिए जो व्यक्ति की स्वतंत्रता और अधिकारों एवं कर्तव्यों के बीच संतुलन बनाए रखें। फिर हम इसकी जांच करेंगे। हम ऐसे दिशा-निर्देशों पर खुली बहस करेंगे। बार एसोसिएशन के सभी सदस्यों और सभी हितधारकों को भी इस बाबत खुलकर अपनी राय देनी चाहिए।''
जज ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 19 अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित है और यह जीवन तथा स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करने वाले अनुच्छेद 21 पर हावी नहीं हो सकता। कोर्ट ने तफ्तीश के दायरे में लाए गए व्यक्तिगत कदाचार की जांच पर विचार किया और कहा कि याचिकाकर्ता एनजीओ 'क्योर एसएमए फाउंडेशन आफ इंडिया' ने एक गंभीर मुद्दा उठाया है।
उन्होंने कहा, ''हमें यह समझने की जरूरत है कि गरिमा का अधिकार भी उस अधिकार से उत्पन्न होता है जिसका दावा कोई और कर रहा है। संविधान का अनुच्छेद 19, अनुच्छेद 21 पर हावी नहीं हो सकता। मान लीजिए अनुच्छेद 19 और 21 के बीच प्रतिस्पर्धा होती है, तो अनुच्छेद 21 को अनुच्छेद 19 पर हावी होना होगा।''
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।