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    दुष्कर्म के आरोप के दुरुपयोग पर SC सख्त, मामलों पर जताई चिंता; बताया निंदनीय

    Updated: Mon, 24 Nov 2025 11:30 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने टूटे रिश्तों को दुष्कर्म का रंग देने की प्रवृत्ति पर चिंता जताई है। कोर्ट ने कहा कि आपराधिक न्याय तंत्र का दुरुपयोग निंदनीय है। दुष्कर्म के आरोप केवल यौन हिंसा या सहमति के अभाव में ही लगने चाहिए। कोर्ट ने एक मामले में FIR रद्द करते हुए कहा कि आपसी सहमति से बने रिश्ते को दुष्कर्म कहना गलत है, खासकर जब रिश्ता लंबा चला हो। ऐसे मामलों में अभियोजन अदालती तंत्र का दुरुपयोग है।

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    दुष्कर्म के आरोप के दुरुपयोग पर SC सख्त (फाइल फोटो)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। नाकाम या टूटे हुए रिश्तों को दुष्कर्म जैसे अपराध का रंग देने की परेशान करने वाली प्रवृत्ति की ओर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने ध्यान आकर्षित किया। कहा, इस संबंध में आपराधिक न्याय तंत्र का दुरुपयोग चिंता की बात है और इसकी निंदा की जानी चाहिए।

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    कोर्ट ने दुष्कर्म के एक कथित मामले में एफआईआर रद करते हुए कहा कि हर खराब रिश्ते को दुष्कर्म के अपराध में बदलना न सिर्फ जुर्म की गंभीरता को कम करता है, बल्कि आरोपित पर कभी न मिटने वाला कलंक लगाता है और उसके साथ नाइंसाफी भी करता है।

    दुष्कर्म के मामलों पर कोर्ट ने क्या कहा?

    जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि दुष्कर्म सबसे गंभीर किस्म का अपराध है। इसका आरोप सिर्फ उन्हीं मामलों में लगाया जाना चाहिए जहां वास्तव में यौन हिंसा या जबरदस्ती हुई हो या जहां सहमति का अभाव हो। एक जीवंत रिश्ते के दौरान बनाए गए शारीरिक संबंध को सिर्फ इसलिए दुष्कर्म का अपराध नहीं माना जा सकता क्योंकि वह रिश्ता शादी में नहीं बदल पाया।

    पीठ ने कहा कि कानून को ऐसे वास्तविक मामलों के प्रति संवेदनशील रहना चाहिए जहां भरोसा तोड़ा गया हो और इज्जत भंग की गई हो। इस सिद्धांत का इस्तेमाल विश्वसनीय साक्ष्यों एवं ठोस तथ्यों पर आधारित होना चाहिए, न कि आधारहीन आरोपों पर। शीर्ष अदालत ने एक व्यक्ति की अपील पर यह फैसला सुनाया, जिसने औरंगाबाद स्थित बांबे हाई कोर्ट के मार्च, 2025 के आदेश को चुनौती दी थी।

    हाई कोर्ट ने अगस्त, 2024 में छत्रपति संभाजीनगर में दर्ज एफआइआर को रद करने की उसकी याचिका खारिज कर दी थी।सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में दुष्कर्म का आरोप पूरी तरह शिकायतकर्ता के इस दावे पर टिका है कि आरोपित ने शादी का झूठा बहाना बनाकर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए।

    महिला ने पति के विरुद्ध दर्ज कराई थी शिकायत

    पीठ ने कहा, ''हमें लगता है कि यह ऐसा मामला नहीं है जिसमें अपीलकर्ता ने शिकायतकर्ता को सिर्फ शारीरिक संबंधों के लिए फुसलाया और फिर गायब हो गया। यह रिश्ता तीन वर्षों तक चला, जो काफी लंबा समय है।'' कहा, हाई कोर्ट ने इस बात पर गौर नहीं किया कि एफआईआर में ही लिखा है कि दोनों पक्षों में रिश्ता आपसी सहमति से बना था।

    लिहाजा ऐसे तथ्यों के आधार पर अभियोजन जारी रहना अदालती तंत्र का दुरुपयोग होगा। अभियोजन के अनुसार, महिला ने अपने पति के विरुद्ध शिकायत दर्ज कराई थी और बाद में गुजारे भत्ते की मांग करते हुए कार्यवाही शुरू की थी। इसी दौरान उसकी आरोपित वकील से मुलाकात हुई थी।

    क्या है मामला?

    समय के साथ उनके बीच करीबी रिश्ता बन गया। आरोपित ने उससे शादी करने की इच्छा जताई थी, लेकिन उसने ठुकरा दिया। महिला गर्भवती हो गई। फिर गर्भपात करवा लिया। बाद में जब उसने शादी पर जोर दिया, तो आरोपित ने मना कर दिया।

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