13 साल से हाईकोर्ट में अटका है मामला, याचिकाकर्ता पहुंच गया Supreme Court; अदालत ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित मामलों पर चिंता जताई। कोर्ट ने कहा कि अगर हाईकोर्ट आधी क्षमता पर काम कर रहा है तो उससे सभी मामलों के तेजी से निपटारे की उम्मीद नहीं की जा सकती। 13 साल से लंबित एक अपील पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह टिप्पणी की।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि यदि उच्च न्यायालय केवल आधी क्षमता पर काम कर रहे हैं तो उनसे सभी मामलों का शीघ्र निपटान करने की उम्मीद नहीं की जा सकती है। यह टिप्पणी इलाहाबाद उच्च न्यायालय में 13 साल से लंबित एक अपील के शीघ्र निपटान की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान की गई।
विधि मंत्रालय की वेबसाइट के आंकड़ों के अनुसार, उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या 1,122 है। मगर एक सितंबर तक वे 792 न्यायाधीशों के साथ ही कार्यरत थे, जबकि 330 पद खाली हैं। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय को एक अपील का शीघ्र निपटारा करने का निर्देश देने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करने से यह कहते हुए इन्कार कर दिया कि उच्च न्यायालय उसके पर्यवेक्षी नियंत्रण (सुपर्वाइजरी कंट्रोल) में नहीं हैं और अगर वे अपनी आधी क्षमता में काम कर रहे हैं तो उनसे सभी मामलों का शीघ्र निपटारा करने की उम्मीद नहीं की जा सकती।
13 साल से अधिक समय से लंबित मामला
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि यह मामला 13 साल से अधिक समय से उच्च न्यायालय में लंबित है। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ ने कहा, 'उच्च न्यायालय इस न्यायालय के पर्यवेक्षी नियंत्रण में नहीं हैं।' वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता ने मामले के शीघ्र निपटारे के लिए उच्च न्यायालय में पहले ही दो आवेदन दायर कर दिए हैं।
पीठ ने कहा, 'दावा जारी रखें..अगर उच्च न्यायालय आधी क्षमता पर काम कर रहे हैं तो आप उनसे कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वे सभी मामलों का निपटारा उतनी ही तेजी से करेंगे जितनी आप चाहते हैं? बहुत से मामले पहले से ही लंबित हैं। जाइए और आवेदन दीजिए।' याचिका पर विचार करने से इन्कार करते हुए पीठ ने याचिकाकर्ता को लंबित मामले को शीघ्र सूचीबद्ध करने और निपटारे के लिए उच्च न्यायालय में याचिका दायर करने की अनुमति दे दी। पीठ ने कहा कि ऐसा आवेदन दायर होने पर उस पर तदनुसार विचार किया जाएगा।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ ने वकील से कहा कि उन्होंने वकालत के दौरान कई वर्षों तक इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वकालत की है और वह जानते हैं कि मामलों को सूचीबद्ध कराने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है। उन्होंने कहा, 'दो आवेदन तो कुछ भी नहीं हैं। आपको अपना मामला सूचीबद्ध कराने के लिए सैकड़ों आवेदन दायर करने पड़ सकते हैं।'
(न्यूज एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)
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