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    क्या राज्य विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए तय की जा सकती है समय सीमा? SC ने केंद्र और राज्यों से मांगा जवाब

    Updated: Tue, 22 Jul 2025 07:18 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा भेजे गए संदर्भ पत्र पर केंद्र सरकार और सभी राज्यों को नोटिस जारी किया है। सीजेआई की अध्यक्षता वाली पीठ ने एक सप्ताह में जवाब मांगा है क्योंकि इसमें उठाए गए संवैधानिक प्रश्नों का देश पर प्रभाव होगा। राष्ट्रपति ने पूछा है कि क्या कोर्ट राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए बिलों पर निर्णय लेने की समय सीमा तय कर सकता है।

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    राज्य विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समय सीमा तय करने का मामला।

    माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु की ओर से भेजे गए संदर्भ पत्र (प्रेसीडेंशियल रिफरेंस) पर केंद्र सरकार व सभी राज्यों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

    प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने केंद्र और राज्यों से एक सप्ताह में जवाब मांगते हुए कहा कि राष्ट्रपति के संदर्भ पत्र में उठाए गए संवैधानिक प्रश्नों का पूरे देश पर प्रभाव होगा।

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    मामले की अगली सुनवाई 29 जुलाई को होगी

    कोर्ट ने मामले को अगले सप्ताह 29 जुलाई को फिर सुनवाई पर लगाने का आदेश दिया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट को संदर्भ पत्र भेज कर पूछा है कि जब संविधान में राष्ट्रपति और राज्यपाल को राज्य विधानसभा से पारित बिलों पर निर्णय लेने के लिए कोई समय सीमा तय नहीं है तो क्या कोर्ट समय सीमा तय कर सकता है। राष्ट्रपति ने कुल 14 संवैधानिक सवालों पर सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी है।

    जानिए क्या कहते हैं नियम?

    नियमों के मुताबिक राष्ट्रपति के संदर्भ पत्र पर सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की पीठ सुनवाई करती है और अपनी राय राष्ट्रपति को भेजती है। मंगलवार को राष्ट्रपति की ओर से भेजा गया संदर्भ पत्र प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदुरकर की पीठ में सुनवाई पर लगा था।

    केंद्र और राज्यों को जारी किया जाएगा नोटिस

    पीठ ने कहा कि वह मामले में केंद्र सरकार और सभी राज्यों को नोटिस जारी कर रहे हैं। मामले पर एक सप्ताह बाद 29 जुलाई को फिर सुनवाई होगी और उस दिन सुनवाई की रूपरेखा तय की जाएगी। कोर्ट ने अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी से मामले की सुनवाई में मदद करने का अनुरोध किया। केंद्र सरकार का पक्ष सालिसिटर जनरल तुषार मेहता रखेंगे। कोर्ट ने राज्यों को ईमेल के जरिए नोटिस भेजने का आदेश दिया और साथ ही कहा कि राज्यों के सुप्रीम कोर्ट में स्थाई वकीलों को नोटिस दिया जाए।

    मामले पर हुई संक्षिप्त सुनवाई में केरल राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ वकील केके वेणुगोपाल और तमिलनाडु की ओर से पेश वरिष्ठ वकील पी. विल्सन ने राष्ट्रपति के संदर्भ पत्र का विरोध किया उन्होंने संदर्भ पत्र की सुनवाई योग्यता पर सवाल उठाया और कहा कि इस पर पहले विचार होना चाहिए। उनके अनुरोध पर पीठ ने कहा कि जब मामले पर नियमित सुनवाई हो तब वे ये बातें उठा सकते हैं।

    अगस्त से होगी नियमित सुनवाई

    कोर्ट ने कहा कि मामले पर नियमित सुनवाई अगस्त में होगी। सुप्रीम कोर्ट ने गत आठ अप्रैल को तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा विधेयकों को लंबे समय तक रोके रखने के मामले में दिए फैसले में राज्य के विधेयकों पर मंजूरी के लिए राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए समय सीमा तय कर दी थी। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इसी संबंध में संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत प्राप्त शक्तियों में सुप्रीम कोर्ट को रिफरेंस (राष्ट्रपति प्रपत्र) भेज कर राय मांगी है। राष्ट्रपति ने भेजे गए रिफरेंस में कुल 14 सवालों पर सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी है।

    रिफरेंस में पूछी गई ये बात

    रिफरेंस में पूछा है कि जब संविधान में विधेयकों पर मंजूरी के लिए कोई समय सीमा तय नहीं है तो क्या न्यायिक आदेश के जरिए समय सीमा लगाई जा सकती है। इतना ही नहीं न्यायिक आदेश के जरिए विधेयक को कानून घोषित करने पर सवाल उठाते हुए राष्ट्रपति ने पूछा है कि क्या राज्य विधानमंडल द्वारा बनाया गया कानून संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल की मंजूरी मिले बगैर लागू होगा।

    राष्ट्रपति के रिफरेंस में लगभग सभी सवाल संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 से संबंधित हैं जो राज्य विधानमंडल से पास विधेयकों पर राज्यपाल और राष्ट्रपति की मंजूरी के बारे में हैं। राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से पूछा है कि जब राज्यपाल के समक्ष अनुच्च्छेद 200 के तहत कोई विधेयक मंजूरी के लिए पेश किया जाता है तो उनके पास क्या क्या संवैधानिक विकल्प होते हैं। क्या राज्यपाल मंजूरी के लिए पेश किये गए विधेयकों में संविधान के तहत उपलब्ध सभी विकल्पों का प्रयोग करते समय मंत्रिपरिषद द्वारा दी गई सलाह और सहायता से बंधें हैं।

    यह भी पूछा है कि क्या संविधान का अनुच्छेद 361, राज्यपालों द्वारा अनुच्छेद 200 के तहत किये गए कार्यों के संबंध में न्यायिक समीक्षा पर पूर्ण प्रतिबंध लगाता है। यानी कि क्या राज्यपालों द्वारा अनुच्छेद 200 में विधेयकों की मंजूरी के संबंध में किये गए कार्यों की न्यायिक समीक्षा पर अनुच्छेद 361 पूर्ण प्रतिबंध है। राष्ट्रपति ने रिफरेंस में पूछा है कि जब संविधान में राष्ट्रपति के लिए अनुच्छेद 201 में कार्य करने के लिए प्रक्रिया और समय सीमा तय नहीं है तो क्या न्यायिक आदेश के जरिए शक्तियों के इस्तेमाल के तरीके और समय सीमा तय की जा सकती है।

    जब राज्यपाल ने विधेयक को राष्ट्रपति की सहमति के लिए सुरक्षित रख लिया हो या अन्यथा, तो क्या राष्ट्रपति की शक्तियों को नियंत्रित करने वाली योजना के आलोक में राष्ट्रपति को संविधान के अनुच्छेद 143 के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट से सलाह लेनी चाहिए। क्या किसी विधेयक के कानून बनने से पहले उसकी विषय वस्तु पर न्यायिक निर्णय लेने की अनुमति न्यायालयों को है। क्या संवैधानिक शक्तियों के प्रयोग में राष्ट्रपति और राज्यपाल के आदेशों को संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत किसी तरह प्रस्स्थापित (सब्टीट्यूट) किया जा सकता है।

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