क्या बिलों पर राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए तय होगी टाइमलाइन? सुप्रीम कोर्ट का केंद्र और राज्य सरकारों को नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 143 के तहत भेजे गए रेफरेंस मामले पर सुनवाई करते हुए केंद्र और राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कानूनी वैधता को लेकर गवर्नरों और राष्ट्रपति पर राज्य विधेयकों पर फैसला लेने के लिए टाइमलाइन तय करने का प्रश्न पूछा है।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 143 के तहत भेजे गए रेफरेंस मामले पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया है।
यह रेफरेंस राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु की ओर से भेजे गए एक पत्र के संदर्भ में जवाब मांगा है जिसमें पूछा गया है कि कानूनी वैधता को लेकर है कि क्या राज्य विधेयकों (स्टेट बिल्स) पर फैसला लेने के लिए गवर्नरों और राष्ट्रपति पर कोई टाइमलाइन तय की जा सकती है।
मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की पांच न्यायाधीशों (संवैधानिक) पीठ ने मामले की सुनवाई अगले मंगलवार के लिए लिस्ट की है।
राष्ट्रपति ने रेफरेंस में क्या-क्या पूछा है?
नियम के अनुसार, राष्ट्रपति की ओर से भेजे गए रेफरेंस पर सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ही सुनवाई करती है और अपनी राय राष्ट्रपति को देती है। जो पीठ मामले पर मंगलवार को सुनवाई करेगी, उसमें प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई के अलावा जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा तथा जस्टिस एएस चंदुरकर शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने आठ अप्रैल को तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा विधेयकों को लंबे समय तक रोके रखने के मामले में दिए फैसले में राज्य के विधेयकों पर मंजूरी के लिए राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए समय सीमा तय कर दी थी।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने इस संबंध में संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत प्राप्त शक्तियों में सुप्रीम कोर्ट को रिफरेंस (राष्ट्रपति प्रपत्र) भेज कर राय मांगी है। राष्ट्रपति ने भेजे गए रेफरेंस में कुल 14 सवालों पर सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी है। रेफरेंस में पूछा है कि जब संविधान में विधेयकों पर मंजूरी के लिए कोई समय सीमा तय नहीं है तो क्या न्यायिक आदेश के जरिये समय सीमा लगाई जा सकती है।
इतना ही नहीं, न्यायिक आदेश के जरिये विधेयक को कानून घोषित करने पर सवाल उठाते हुए राष्ट्रपति ने पूछा है कि क्या राज्य विधानमंडल की ओर से बनाया गया कानून संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल की मंजूरी मिले बगैर लागू होगा।
राष्ट्रपति के रेफरेंस में लगभग सभी सवाल संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 से संबंधित हैं जो राज्य विधानमंडल से पास विधेयकों पर राज्यपाल और राष्ट्रपति की मंजूरी के बारे में है।
राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से पूछा है कि जब राज्यपाल के समक्ष अनुच्छेद 200 के तहत कोई विधेयक मंजूरी के लिए पेश किया जाता है तो उनके पास क्या-क्या संवैधानिक विकल्प होते हैं। क्या राज्यपाल मंजूरी के लिए पेश किए गए विधेयकों में संविधान के तहत उपलब्ध सभी विकल्पों का प्रयोग करते समय मंत्रिपरिषद द्वारा दी गई सलाह और सहायता से बंधें हैं। क्या राज्यपाल द्वारा अनुच्छेद 200 के तहत संवैधानिक विवेकाधिकार का प्रयोग करना न्यायोचित है।
यह भी पूछा है कि क्या संविधान का अनुच्छेद 361, राज्यपालों द्वारा अनुच्छेद 200 के तहत किये गए कार्यों के संबंध में न्यायिक समीक्षा पर पूर्ण प्रतिबंध लगाता है। यानी कि क्या राज्यपालों द्वारा अनुच्छेद 200 में विधेयकों की मंजूरी के संबंध में किए गए कार्यों की न्यायिक समीक्षा पर अनुच्छेद 361 पूर्ण प्रतिबंध लगाता है।
राष्ट्रपति ने रेफरेंस में पूछा है कि जब संविधान में राष्ट्रपति के लिए अनुच्छेद 201 में कार्य करने के लिए प्रक्रिया और समय सीमा तय नहीं है तो क्या न्यायिक आदेश के जरिये शक्तियों के इस्तेमाल के तरीके और समय सीमा तय की जा सकती है।
यह भी पूछा है कि जब राज्यपाल ने विधेयक को राष्ट्रपति की सहमति के लिए सुरक्षित रख लिया हो तो क्या राष्ट्रपति की शक्तियों को नियंत्रित करने वाली योजना के आलोक में राष्ट्रपति को संविधान के अनुच्छेद 143 के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट से सलाह लेनी चाहिए। क्या संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 के तहत राज्यपाल और राष्ट्रपति के निर्णय, कानून के लागू होने के पहले के चरण में न्यायोचित हैं। क्या किसी विधेयक के कानून बनने से पहले उसकी विषय वस्तु पर न्यायिक निर्णय लेने की अनुमति न्यायालयों को है।
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