'भारत कोई धर्मशाला नहीं है', श्रीलंकाई शख्स से सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कहा? मिला था Inida छोड़ने का आदेश
SC ने शरणार्थियों के मुद्दे पर सख्त रुख अपनाया है। कोर्ट ने कहा कि भारत दुनिया भर के शरणार्थियों के लिए धर्मशाला नहीं है। अनुच्छेद 19 के तहत भारत में बसने का अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को है। कोर्ट ने श्रीलंकाई तमिल नागरिक की याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की जो निर्वासन पर रोक और भारत में बसने की अनुमति मांग रहा था।

माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने दूसरे देशों के नागरिकों को शरण देने के मामले में सोमवार को सख्त टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत दुनिया भर के शरणार्थियों के लिए धर्मशाला नहीं है। कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 19 के तहत भारत में बसने का अधिकार सिर्फ भारतीय नागरिकों को है। इन टिप्पणियों के साथ कोर्ट ने निर्वासन पर रोक लगाने और भारत में ही बसने की इजाजत मांगने वाली श्रीलंकाई तमिल नागरिक की याचिका खारिज कर दी।
140 करोड़ की आबादी कम है क्या?
ये सख्त टिप्पणियां न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और के. विनोद चंद्रन की पीठ ने सुभास्करन उर्फ जीवन उर्फ राजा उर्फ प्रभा की याचिका खारिज करते हुए कीं। शीर्ष अदालत ने कहा कि क्या भारत को दुनिया भर के शरणार्थियों को शरण देनी चाहिए? हम पहले से ही 140 करोड़ की आबादी से जूझ रहे हैं। यह कोई धर्मशाला नहीं है, जहां हम दुनिया भर से आए विदेशी नागरिकों को शरण दें।
इससे पहले तमिल श्रीलंकन नागरिक सुभास्करन को वापस भेजे जाने पर रोक लगाने और मद्रास हाई कोर्ट का आदेश रद करने की मांग करते हुए उसके वकील वैरावन एएस ने कहा कि अगर उसे वापस श्रीलंका भेजा गया तो उसकी जान को खतरा है। उसका परिवार पत्नी और बच्चा पहले से ही भारत में रहता है उनका स्वास्थ्य खराब है ऐसे में उसे भी भारत में ही रिफ्यूजी कैंप में परिवार के साथ रहने की इजाजत दे दी जाए। लेकिन कोर्ट ने मांग ठुकरा दी।
भारत में बसने का मौलिक अधिकार केवल भारतीय को
कोर्ट ने कहा कि इस मामले में संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन नहीं हुआ है क्योंकि उसकी हिरासत वैध थी। कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 19 में भारत में बसने का मौलिक अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को प्राप्त है। कोर्ट ने सुभास्करन को साफ कर दिया कि उसे वापस जाना होगा। कोर्ट ने कहा कि अगर आप शरणार्थी हैं तो आपको वापस जाना होगा। आप भारत में नहीं रह सकते। जब वकील ने श्रीलंका में उसकी जान को खतरा बताया तब भी कोर्ट ने कहा कि अगर उसकी जान को खतरा है तो वह किसी अन्य देश में शरणार्थी का दर्जा प्राप्त करे। यहां नहीं रह सकता।
इस मामले में याचिकाकर्ता सुभास्करन को यूएपीए कानून (गैर कानूनी गतिविधि अधिनियम) के तहत दोषी ठहराया गया था और उसे निचली अदालत ने दस साल की सजा सुनाई थी जिसे मद्रास हाई कोर्ट ने घटा कर सात साल कर दिया था लेकिन मद्रास हाई कोर्ट ने आदेश में लिखा था कि सजा पूरी होने के बाद उसे तत्काल भारत छोड़ना होगा।
स्पेशल कैंप में रह रहा है श्रीलंकाई नागरिक
सुभास्करन स्पेशल कैंप में रह रहा है। उस पर उग्रवादी संगठन लिबरेशन टाइगर्स आफ तमिल ईलम (लिट्टे) को पुर्नजीवित करने की साजिश का हिस्सा होने का आरोप था। हालांकि उसने याचिका में सभी आरोपों से इनकार करते हुए उसे गलत फंसाए जाने की बात कही थी। हालांकि उसने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में सात साल की सजा को चुनौती नहीं दी थी क्योंकि उसकी सजा 2022 में ही पूरी हो चुकी है।
उसने याचिका में सजा पूरी होने के बाद तत्काल भारत छोड़ने के आदेश के हिस्से को ही चुनौती दी थी। हाई कोर्ट के आदेश के बाद सुभास्करन की पत्नी ने पहले तमिलनाडु सरकार के समक्ष ज्ञापन दिया था जब राज्य सरकार ने ज्ञापन पर कोई जवाब नहीं दिया तो उसने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की और पति के निर्वासन पर रोक लगाने की मांग की लेकिन हाई कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी थी जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका दाखिल की गई थी।
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