'क्या होना चाहिए मूल्यांकन का आधार', SSC महिला अधिकारियों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने क्यों पूछा ये सवाल?
सुप्रीम कोर्ट ने एसएससी की महिला सैन्य अधिकारियों की याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की जिसमें स्थायी कमीशन न दिए जाने का दावा किया गया है। जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने थलसेना अधिकारियों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि बाद में नौसेना और वायुसेना के अधिकारियों की याचिकाओं पर भी सुनवाई होगी।

पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को शॉर्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) की महिला सैन्य अधिकारियों की याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की। इनमें उन्होंने दावा किया है कि पुरुष समकक्षों के मुकाबले भेदभाव के कारण उन्हें स्थायी कमीशन नहीं दिया जा रहा है।
जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने दो वर्गों के थलसेना अधिकारियों (सेवारत और सेवा मुक्त) की याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि थलसेना अधिकारियों के बाद वह नौसेना, फिर वायुसेना अधिकारियों की याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। वे भी उन्हें स्थायी कमीशन नहीं दिए जाने को चुनौती दे रही हैं।
'पुरुष समकक्षों की तुलना में नहीं मिल रहे समान अवसर'
वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी, मेनका गुरुस्वामी, वी. मोहना तथा अन्य वकीलों ने महिला अधिकारियों का प्रतिनिधित्व किया, जिन्होंने तर्क दिया कि उन्हें स्थायी कमीशन न देकर व्यवस्थागत तरीके से भेदभाव किया जा रहा है। महिला अधिकारियों ने तर्क दिया कि उनकी वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) में लापरवाही बरती जा रही है और उन्हें उनके पुरुष समकक्षों की तुलना में समान अवसर नहीं दिए जा रहे हैं।
'क्या होना चाहिए मूल्यांकन का आधार'
पीठ ने स्थायी कमीशन देने के लिए एकसमान दिशा-निर्देश प्रस्तावित किए, लेकिन विशेष प्रशिक्षण जैसे कारकों को भी ध्यान में रखने की बात कही। साथ ही अधिकारियों से पूछा कि उनके अनुसार स्थायी कमीशन के मूल्यांकन का आधार क्या होना चाहिए।
शीर्ष अदालत विभिन्न आधारों पर उन्हें स्थायी कमीशन देने से इन्कार करने को चुनौती देने वाली 75 से अधिक याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। सुनवाई गुरुवार को भी जारी रहेगी। शीर्ष अदालत ने कहा कि पहले पारित अंतरिम आदेश लागू रहेंगे, जिसके तहत याचिकाओं पर निर्णय होने तक केंद्र को अधिकारियों को सेवा मुक्त करने से रोका गया था।
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