'वसुधैव कुटुंबकम मानने वाले देश में सगे परिवार में एकता नहीं', SC की टिप्पणी; जानिए पूरा मामला
68 वर्षीय समतोला देवी अपने बड़े बेटे कृष्ण कुमार को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर स्थित अपने पारिवारिक घर से बेदखल करने की मांग की थी। इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही थी। इस दौरान कोर्ट ने कहा कि परिवार की पूरी अवधारणा ही शिथिल पड़ती जा रही है। हम अब एक व्यक्ति-एक परिवार बनकर ही रह गए हैं।
पीटीआई, नई दिल्ली। परिवार संस्था के विघटन से चिंतित सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत में लोग वसुधैव कुटुंबकम यानी पूरे विश्व को एक परिवार मानने में विश्वास करते हैं। लेकिन अपने करीबी रिश्तेदारों से भी निकटता बनाए रखने में विफल हो रहे हैं।
जस्टिस पंकज मिथल और एसवीएन भट्टी की खंडपीठ ने गुरुवार को उत्तर प्रदेश के जिला सुल्तानपुर के एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि परिवार की अवधारणा अब एक व्यक्ति एक परिवार प्रणाली से छिन्न-भिन्न हो रही है। हम आज अपने सगे परिवार में भी एकता नहीं बनाए रख पा रहे हैं।
घर से निकालने का मामला
कोर्ट ने कहा कि परिवार की पूरी अवधारणा ही शिथिल पड़ती जा रही है। हम अब एक व्यक्ति-एक परिवार बनकर ही रह गए हैं। सर्वोच्च अदालत ने यह गंभीर टिप्पणी एक महिला के अपने सबसे बड़े बेटे को घर से निकालने को लेकर दायर याचिका की सुनवाई के दौरान की है।
सर्वोच्च अदालत ने कहा कि उनके बेटे को घर से बाहर करने का कड़ा कदम उठाने की आवश्यकता नहीं है। बल्कि वरिष्ठ नागरिक कानून के तहत उनका गुजारा भत्ता जारी रहना चाहिए। बताया जाता है कि सुलतानपुर के कल्लूमल के निधन के बाद उनकी पत्नी समतोला देवी और उनके तीन बेटों समेत पांच बच्चे हैं।
संपत्ति को लेकर बढ़ा विवाद
- लेकिन दंपती का अपने सबसे बड़े बेटे से संपत्ति को लेकर विवाद इतना बढ़ा, जो कल्लूमल की मौत के बाद भी जारी है। समतोला देवी ने अपने सबसे बड़े बेटे को अपने घर से बेदखल करने के लिए यह याचिका दायर की है।
- उनके घर के साथ ही कुछ दुकानें भी हैं जो विवाद का मूल कारण हैं। यह मामला निचली अदालत से होते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुंचा जहां बेटे को संपत्ति से बेदखल करने के आदेश को दरकिनार कर दिया गया, जिसके खिलाफ मां समतोला देवी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की है।
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