चुनाव नियम विवाद: EC को तीन सप्ताह में देना होगा जवाब, 21 जुलाई को होगी सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने 1961 के चुनाव नियमों में संशोधन को चुनौती देने वाली जयराम रमेश अंजलि भारद्वाज और श्माम लाल पाल की याचिकाओं पर चुनाव आयोग को तीन सप्ताह का समय दिया। संशोधन से सीसीटीवी और वेबकास्टिंग फुटेज की सार्वजनिक जांच पर रोक लगी। याचिकाकर्ताओं ने इसे पारदर्शिता के खिलाफ बताया। सुनवाई 21 जुलाई को होगी जिससे चुनावी प्रक्रिया पर बहस तेज हो गई है।

पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने 1961 के चुनाव नियमों में हुए हालिया संशोधनों को चुनौती देने वाली कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश और अन्य की याचिकाओं पर जवाब देने के लिए गुरुवार को चुनाव आयोग को तीन सप्ताह का समय और दिया।
21 जुलाई को होगी सुनवाई
प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने जयराम रमेश की याचिका पर 15 जनवरी को केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। श्माम लाल पाल और कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज की भी दो ऐसी ही याचिकाएं लंबित हैं। निर्वाचन आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मनिंदर सिंह ने जवाब दाखिल करने के लिए तीन और सप्ताह का समय मांगा।
पीठ ने अनुरोध स्वीकार करते हुए सुनवाई के लिए 21 जुलाई की तारीख तय की। याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि 1961 की चुनाव संचालन नियमावली में संशोधन बेहद चतुराई से किया गया है। मतदाता की पहचान उजागर होने का दावा करते हुए मतदान के सीसीटीवी फुटेज तक पहुंच पर रोक लगा दी गई है।
सार्वजनिक जांच पर रोक
सरकार ने चुनाव नियमों में बदलाव करते हुए सीसीटीवी कैमरा और 'वेबकांस्टिंग' फुटेज के अलावा उम्मीदवारों की वीडियो रिकार्डिंग जैसे कुछ इलेक्ट्रानिक दस्तावेज की सार्वजनिक जांच पर रोक लगा दी है ताकि उनका दुरुपयोग रोका जा सके।
चुनाव आयोग की सिफारिश के आधार पर दिसंबर में केंद्रीय कानून मंत्रालय ने 1961 की नियमावली के नियम 93(2)(ए) में संशोधन किया था ताकि जांच के दायरे में आने वाले कागजात या दस्तावेज को जनता की पहुंच से प्रतिबंधित किया जा सके।
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