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    Worship Act: 'बहुत हुआ, विचार करना असंभव', पूजा स्थल कानून पर SC ने कहा- 'चार साल हो गए हैं लेकिन...'

    Updated: Mon, 17 Feb 2025 10:00 PM (IST)

    पूजा स्थल विशेष प्रविधान अधिनियम 1991 के मामले में लगातार नई-नई रिट याचिकाएं दाखिल होने पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतराज जताया। सोमवार को शीर्ष अदालत ने उन सभी याचिकाओं पर विचार करने से इनकार कर दिया जिनमें कोर्ट से नोटिस जारी नहीं हुआ था। CJI ने कहा कि याचिकाएं दायर करने की एक सीमा इतनी सारी याचिकाओं पर विचार करना असंभव।

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    पूजा स्थल कानून पर SC ने कही बड़ी बात।

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। पूजा स्थल विशेष प्रविधान अधिनियम 1991 के मामले में लगातार नई-नई रिट याचिकाएं दाखिल होने पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतराज जताया। कोर्ट ने कहा कि याचिकाएं दायर करने की भी एक सीमा होती है, इतनी सारी याचिकाओं पर शायद कोर्ट विचार न कर पाए।

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    शीर्ष अदालत ने उन सभी याचिकाओं पर विचार करने से इनकार कर दिया जिनमें कोर्ट से नोटिस जारी नहीं हुआ था। हालांकि नए कानूनी बिंदुओं उठाने पर हस्तक्षेप अर्जी दाखिल करने की छूट दी है।

    जिन लोगों की याचिकाओं को कोर्ट ने सुनवाई से इनकार करते हुए निपटा दिया है उनमें एआईएमआईएम पार्टी मुखिया असदुद्दीन ओवैसी की याचिका भी शामिल है। हालांकि उनके पास अर्जी दाखिल करने की छूट है।

    क्या है पूजा स्थल कानून?

    पूजा स्थल कानून कहता है कि धार्मिक स्थलों की वही स्थिति रहेगी जो 15 अगस्त 1947 को थी उसमें कोई परिवर्तन नहीं होगा। अयोध्या राम जन्म भूमि को इसमें छूट है। सुप्रीम कोर्ट में बहुत सी याचिकाएं लंबित हैं जिनमें कुछ में कानून को चुनौती दी गई है और कुछ में इसका समर्थन किया गया है। पिछली सुनवाई पर कोर्ट ने देश की विभिन्न अदालतों में धार्मिक स्थलों को लेकर लंबित विवादों पर अदालतों को प्रभावी आदेश पारित करने से रोक दिया था।

    सर्वे आदि का आदेश देने पर भी रोक लगा दी थी। धार्मिक स्थलों के बारे में देश की विभिन्न अदालतों में लंबित मामलों में वाराणसी का ज्ञानवापी और मथुरा का शाही मस्जिद ईदगाह और मध्य प्रदेश का भोजशाला विवाद शामिल है।

    पीठ ने क्या कहा?

    सोमवार को प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और संजय कुमार की दो सदस्यीय पीठ ने कई नई याचिकाएं दाखिल होने पर आपत्ति जताते हुए कहा कि पिछली सुनवाई पर उन्होंने सभी लंबित याचिकाओं पर नोटिस जारी किया था साथ ही सभी हस्तक्षेप अर्जियां मंजूर की थीं लेकिन फिर भी लगातार नई याचिकाएं दाखिल हो रही हैं ऐसे तो मामले पर सुनवाई करना असंभव हो जाएगा। यह कहते हुए कोर्ट ने उन सभी नई याचिकाओं को निस्तारित कर दिया जिनमें नोटिस जारी नहीं हुआ था।

    पीठ ने मामले को तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष एक अप्रैल से शुरू होने वाले सप्ताह में फिर सुनवाई पर लगाने का आदेश दिया और पक्षकारों से कहा कि इस बीच उत्तर प्रति उत्तर दाखिल करने की प्रक्रिया पूरी कर लें।

    कोर्ट ने जारी किया था नोटिस

    मुख्य याचिका वकील अश्वनी उपाध्याय ने 2020 में दाखिल की थी जिसमें कानून को चुनौती दी गई है। मुख्य मामले में केंद्र को 12 मार्च 2021 को नोटिस जारी हुआ था लेकिन केंद्र ने अभी तक जवाब नहीं दिया है। 2022 में जमीयत उलमा-ए-हिन्द ने याचिका दाखिल की थी जिसमें कानून का समर्थन करते हुए उसे लागू करने की मांग की। इसमें भी नोटिस जारी हो चुका है।

    इसके बाद कांग्रेस पार्टी, असदुद्दीन ओवैसी, इकरा चौधरी, मनोज झा आदि बहुत से लोगों ने याचिकाएं और हस्तक्षेप अर्जियां दाखिल कर कानून का समर्थन किया जबकि करुणेश शुक्ला, सुब्रमण्यम स्वामी, विश्वभद्र पुजारी आदि की याचिकाओं में कानून को चुनौती दी गई है।

    सोमवार को वकील विकास सिंह ने बार-बार कहा कि केंद्र से जवाब दाखिल करने को कहा जाए। चार साल हो गए हैं लेकिन केंद्र ने जवाब नहीं दिया है। इस पर सीजेआइ ने कहा कि जब लगातार नयी याचिकाएं दाखिल हो रही हैं तो कैसे जवाब दे। हालांकि बाद में कोर्ट ने केस को अप्रैल में लगाते हुए सभी पक्षकारों से कहा तब तक उत्तर प्रतिउत्तर दाखिल कर लें।

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