आतंकी वारदात के दोषी गुलाम मोहम्मद भट को सुप्रीम कोर्ट से झटका, समय से पहले रिहाई की याचिका खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने आतंकी वारदात के दोषी गुलाम मोहम्मद भट की समय से पहले रिहाई की याचिका खारिज कर दी है। भट तिहरे हत्याकांड का दोषी है और उसने जेल में 27 साल बिताए हैं। अदालत ने उसे जम्मू और कश्मीर की रिमिशन नीति को चुनौती देने की अनुमति दी है ताकि वह एक अन्य लंबित मामले में याचिका दाखिल कर सके।

पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आतंकी वारदात के दोषी गुलाम मोहम्मद भट की समय से पहले रिहाई की याचिका को सोमवार को खारिज कर दिया। भट एक तिहरे हत्याकांड के मामले में दोषी है।
हालांकि जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्ला और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने भट को केंद्र शासित जम्मू और कश्मीर की रिमिशन नीति को चुनौती देने की अनुमति दे दी ताकि वह एक अन्य लंबित मामले में अंतरिम याचिका दाखिल कर सके। भट ने अपनी याचिका में तर्क दिया कि उसने जेल में 27 वर्ष बिताए हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता कालिन गोंसाल्वेस ने भट का प्रतिनिधित्व किया जबकि अतिरिक्त सालिसिटर जनरल (एएसजी) केएम नटराज ने केंद्र शासित प्रदेश का पक्ष रखा।
क्या आरोप हैं भट पर?
भट पर आरोप है कि उसने सेना के एक मुखबिर के घर में घुसकर एके-47 राइफल से गोलीबारी की, जिसमें मुखबिर समेत तीन लोग मारे गए। अभियोजन पक्ष के अनुसार, घटना स्थल से विस्फोटक उपकरण भी बरामद किए गए थे।
'समय से पहले रिहाई न हो'
एएसजी नटराज ने कहा कि सेना को जानकारी दे रहे नागरिकों को मारना एक आतंकी कृत्य है। यह कृत्य भय पैदा करने और सेना या सुरक्षा बलों के साथ सहयोग को रोकने के लिए किया गया था। यह एक साधारण हत्या से परे का मामला है। इसलिए भट को समय से पहले रिहाई का लाभ नहीं दिया जाना चाहिए। पीठ ने इस तर्क से सहमति जताते हुए कहा- 'यदि यह कृत्य भय उत्पन्न करने के लिए किया गया था ताकि कोई भी कानून के साथ सहयोग करने की हिम्मत न करे तो यह निश्चित रूप से एक आतंकी कृत्य है।'
गोंसाल्वेस ने तर्क किया कि भट को केवल आइपीसी की धारा 302 और आर्म्स एक्ट के तहत दोषी ठहराया गया है न किसी आतंकवाद विरोधी कानून यानी टाडा के तहत। ट्रायल कोर्ट या हाई कोर्ट ने भी इसे आतंकी कृत्य नहीं माना।
पीठ ने जताई सहमति
पीठ इस पर सहमत नहीं हुई और कहा कि यह कृत्य उन लोगों को संदेश देने के लिए किया गया प्रतीत होता है जो सेना के साथ सहयोग करते हैं और हम ऐसे निहितार्थों पर आंखें नहीं मूंद सकते। इसके बाद गोंसाल्वेस ने जेएंडके रिमिशन नीति को चुनौती देने की अनुमति मांगी, जिसे पीठ ने स्वीकार कर लिया।
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