'याचिका के मुद्दों तक ही सीमित रहें अदालतें', सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी; क्या था मामला?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालतें याचिका के दायरे से बाहर जाकर पक्षकारों को चौंका नहीं सकतीं और उन्हें याचिका में उठाए गए मुद्दों तक ही सीमित रहना चाहिए। अदालत ने यह भी कहा कि यदि किसी असाधारण मामले में अदालत को याचिका के दायरे से बाहर जाकर टिप्पणियां करने की आवश्यकता महसूस होती है तो पक्षकार को अपना स्पष्टीकरण देने का अवसर मिलना चाहिए।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि अदालतें किसी मामले से संबंधित याचिका के दायरे से बाहर जाकर पक्षकारों को आश्चर्यचकित नहीं कर सकतीं और उन्हें याचिका में उठाए गए मुद्दों तक ही सीमित रहना चाहिए। अगर कोई अदालत किसी याचिका के दायरे से बाहर जाकर संबंधित पक्षों को आश्चर्यचकित करती है और कोई कड़ी टिप्पणी करती है, तो इससे अन्य संभावित वादियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि यदि किसी असाधारण मामले में अदालत को रिट याचिका के दायरे से बाहर जाकर टिप्पणियां करने की आवश्यकता महसूस होती है तो कम से कम पक्षकार को अपना स्पष्टीकरण देने और अपना बचाव करने का अवसर मिलना चाहिए। न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने चिन्मय मिशन एजुकेशनल एंड कल्चरल ट्रस्ट और कोचीन देवस्वम बोर्ड के बीच एक दीवानी विवाद का फैसला करते हुए यह टिप्पणी की।
लाइसेंस शुल्क तय करने का निर्देश
इस मामले में केरल उच्च न्यायालय ने एक भूमि के संबंध में लाइसेंस शुल्क तय करने का निर्देश दिया है और बोर्ड को मुख्य सतर्कता अधिकारी के माध्यम से बोर्ड और ट्रस्ट के बीच हुए लेन-देन की जांच करने और निष्कर्षों के आधार पर आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। चिन्मय मिशन एजुकेशनल एंड कल्चरल ट्रस्ट द्वारा दायर अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए पीठ ने कहा कि इस मामले में उच्च न्यायालय ने अपने पूर्व निर्णयों को ध्यान में रखते हुए लाइसेंस शुल्क निर्धारित करने का निर्देश दिया है, लेकिन ट्रस्ट को यह स्पष्ट करने का कोई अवसर नहीं दिया गया कि पूर्व के निर्णय संबंधित लेनदेन पर लागू होते हैं या नहीं।
पीठ ने कहा कि मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए 'अपीलकर्ता को भूमि पट्टे पर देने से संबंधित मामले' में मुख्य सतर्कता अधिकारी को जांच करने का निर्देश देना उचित नहीं था। इसने कहा, 'इस प्रकार की जांच के निर्देश पक्षकारों की प्रतिष्ठा और चरित्र पर गंभीर रूप से प्रभाव डाल सकते हैं। यहां तक कि किसी मामले में भी यदि उच्च न्यायालय ऐसे निर्देश देने के लिए बाध्य था तो उसे अपीलकर्ताओं को सूचित करना चाहिए था।'
पीठ ने यह भी कहा, 'हमारा मानना है कि उच्च न्यायालय द्वारा निर्देश पारित करना उचित नहीं था.. ये निर्देश रिट याचिका के दायरे से बहुत परे थे। इसके अलावा, ये निर्देश अपीलकर्ताओं को सूचित किए बिना ही जारी कर दिए गए।' पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता उच्च न्यायालय की कार्यवाही से पूरी तरह स्तब्ध हैं।
(न्यूज एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)
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